श्रीनगर : उत्तराखंड में बीते दो दिनों के अंदर बादल फटने की पांच घटनाएं हो चुकी हैं. मंगलवार शाम को देवप्रयाग मुख्य बाजार समेत तीन जगहों पर बादल फटने की घटना सामने आई. वहीं बुधवार को नैनीताल जिले में दो जगह बादल फटने की घटना सामने आई है. किसी भी घटना में कोई जनहानी नहीं हुई है. आज हम आपको बादल फटने की घटना के बारे में बताते हैं. बादल फटना किसे कहते हैं? बादल क्यों फटता है? इससे क्या होता है?
गढ़वाल विवि के वैज्ञानिक प्रो आलोक सागर गौतम ने बादल फटने की घटना के बारे में बड़े ही विस्तार से बताया. यहां पहले आपको बता दें कि बादल फटने का मतलब ये नहीं होता कि बादल के टुकड़े हो गए हों. मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार जब एक जगह पर अचानक एकसाथ भारी बारिश हो जाए, तो उसे बादल फटना कहते हैं.
क्या है बादल फटने का मतलब?
वैज्ञानिक आलोक सागर गौतम के मुताबिक अमूमन बादल फटने की घटना में एक घंटे तक 100 मिली मीटर बारिश एक जगह पर होती है. कभी कभी ये एक मिनट में 5 मिली मीटर भी हो सकती है, जिसे आम भाषा में बादल फटने की घटना कहते हैं.
वैज्ञानिक आलोक सागर गौतम ने बताया कि उत्तराखंड में पहाड़ियां कहीं ऊंची और कई जगह पर नीची है. इसीलिए यहां पर वायु का मूवमेंट अलग-अलग तरीके से होता है. कहीं पर तापमान ज्यादा होता है, कहीं पर कम होता है. बादल क्यों बनते हैं इस पर ध्यान दिया जाए तो धरती पर कुछ जगह पर सोलर रेडियेशन 50 प्रतिशत से अधिक होता है. ऐसे में गर्म हवा ऊपर वातावरण में जाती है. जैसे-जैसे हवा ऊपर जाएगी वो ठंडी होती चली जाएगी. इसके साथ ही इसमें थंडर क्लाउड भी जुड़ते जाते हैं. जिनकी लंबाई 14 किमी के आस-पास तक होती है. इसी तरीके से वो आसमान में फैले रहते है.
क्यों फटते हैं पहाड़ों पर बादल?
वैज्ञानिक गौतम के मुताबिक बादल फटने की घटना तब होती है जब काफी ज्यादा नमी वाले बादल एक जगह पर रुक जाते हैं और वहां मौजूद पानी की बूंदें आपस में मिलने लगती हैं. बूंदों के भार से बादल का घनत्व काफी बढ़ जाता है और फिर अचानक भारी बारिश शुरू हो जाती है.
आप इसे ऐसे समझ सकते हैं कि अगर पानी से भरे किसी गुब्बारे को फोड़ दिया जाए तो सारा पानी एक ही जगह तेज़ी से नीचे गिरने लगता है. ठीक वैसे ही बादल फटने से पानी से भरे बादल की बूंदें तेजी से अचानक जमीन पर गिरती हैं. इसे फ्लैश फ्लड या क्लाउड बर्स्ट भी कहते हैं.