हैदराबाद : एकनाथ शिंदे के सामने क्या हैं विकल्प : सबसे पहले एकनाथ शिंदे को अपने गुट की मान्यता दिलानी होगी. इसके लिए सूरत और गुवाहाटी से ही प्रयास किए जा रहे हैं. उन्होंने 43 विधायकों के साथ होने का दावा किया है. इन विधायकों को गवर्नर के पास चिट्ठी लिखनी होगी. अगर उनका ग्रुप रिकॉग्नाइज्ड हो जाता है, तभी उनकी सदस्यता बच सकेगी. लेकिन एक दूसरा विकल्प भी उनके सामने है. क्योंकि शिंदे के पीछे शिवसेना के सारे विधायक हैं, लिहाजा वे शिवसेना पर ही दावा ठोंक सकते हैं. अगले एक-दो दिनों में इस पर से तस्वीर साफ हो जाएगी. बागी गुट ने भी चीफ व्हीप नियुक्त किया है. उन्होंने अपनी चिट्ठी राज्यपाल को भेज दी है. तीसरा विकल्प एकनाथ शिंदे के पास है- वह है भाजपा में विलय का.
क्या शिंदे अपनी पहचान खो देंगे - शिंदे भाजपा में शामिल होंगे, इसकी संभावना कम दिखती है. शिंदे कट्टर शिवसैनिक हैं. हाल ही में हिंदुत्व को लेकर उन्होंने जो बयान दिए हैं, उससे भी बहुत कुछ साफ हो जाता है. क्योंकि भाजपा में शामिल होने से उनकी एक शिवसैनिक के रूप में पहचान खत्म हो जाएगी. बात इतनी ही नहीं है, यदि वह भाजपा में जाते हैं, तो क्या उनका कार्यकर्ता और फॉलोअर भी उनकी राह चलेंगे, यह बहुत बड़ा सवाल है. ऐसा कहा जाता है कि थाने क्षेत्र में शिंदा का काफी दबदबा है. बागी विधायकों ने उन्हें अपना नेता घोषित किया है.
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#WATCH | Rebel Maharashtra Shiv Sena MLAs in Guwahati unanimously chose Eknath Shinde their leader. pic.twitter.com/tuhL93rSfV
— ANI (@ANI) June 23, 2022 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
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उद्धव के सामने विकल्प - एक दिन पहले उद्धव ठाकरे ने फेसबुक के जरिए अपनी बात रख दी. उसके बाद उन्होंने सरकारी बंगला भी खाली कर दिया. लेकिन सीएम पद से उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया है. ऐसा लगता है कि वह विधानसभा में ही अपनी स्थिति साफ करेंगे. तब तक सबको इंतजार करना होगा.
भाजपा क्या कर सकती है- केंद्रीय मंत्री रावसाहेब दानवे ने कहा कि उन्होंने पूरे मामले में कुछ भी एक्शन नहीं लिया है. बल्कि भाजपा के कई नेताओं ने इसे शिवसेना का आंतरिक मामला भी बता दिया. दिक्कत ये है कि जब तक उद्धव सरकार आधिकारिक तौर पर बहुमत नहीं खो देती है, तब तक भाजपा को सरकार बनाने के लिए आमंत्रण नहीं दिया जा सकता है. और यदि ऐसा नहीं होता तो भाजपा क्या करेगी. कहा जा रहा है कि देवेंद्र फडणवीस बचे हुए ढाई साल के लिए सीएम बनने को लेकर बहुत अधिक उत्सुक नहीं होंगे. इसलिए वह चुनाव की ओर जाना चाहेंगे. पर सवाल यही है कि क्या विधायक इसके लिए तैयार होंगे.
राज्यपाल की भूमिका- सबसे पहले राज्यपाल को एकनाथ शिंदे की चिट्ठी में शामिल नामों का सत्यापन करना होगा. उसके बाद उन्हें मान्यता देंगे. उसके बाद उद्धव को बहुमत साबित करने के लिए कहा जा सकता है. लेकिन यदि उद्धव इस गुट को मान्यता देने का विरोध करेंगे, तो फिर से अजीब स्थिति हो जाएगी. यह मामला स्पीकर और गवर्नर के बीच का हो जाएगा. यानी अलग गुट को मान्यता कौन देगा, स्पीकर या गवर्नर.
एनसीपी-कांग्रेस की भूमिका- दोनों ही पार्टियों ने साफ कर दिया है कि वे उद्धव सरकार के साथ हैं. वे उद्धव ठाकरे के समर्थन में हैं. दोनों ही पार्टियों ने यह भी कहा है कि चाहे जो भी हो, वे सरकार को बचाने का पूरा प्रयास करेंगे. खुद शरद पवार ने कहा कि विधानसभा में भी बहुमत साबित करना होगा. उन्होंने कहा कि बागी विधायकों को उसकी कीमत भी चुकानी होगी. कांग्रेस नेता भी कह चुके हैं कि वे सरकार के साथ हैं. बल्कि कांग्रेस ने तो यहां तक कह दिया कि शिवसेना जिसे भी नेता चुनेगी, उसे किसी के नाम पर कोई आपत्ति नहीं है.
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