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भारत-रूस संबंधों की बात करें तो पश्चिमी मीडिया पक्षपाती है: पूर्व राजनयिक - रूस यूक्रेन के बीच जारी तनाव

रूस-यूक्रेन के बीच जारी तनाव (Tensions continue between Russia Ukraine) के बीच रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पूर्वी यूक्रेन में विद्रोहियों के कब्जे वाले दो क्षेत्रों को स्वतंत्र राज्यों के रूप में मान्यता दी है. साथ ही अपने सैनिकों को वहां स्थानांतरित कर रहे हैं. इस दौरान नई दिल्ली के लिए स्थिति मुश्किल बनी हुई है. पढ़ें पूर्व राजनयिक राजीव भाटिया से ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता सौरभ शर्मा की बातचीत के प्रमुख अंश.

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Published : Feb 23, 2022, 8:12 PM IST

नई दिल्ली: ईटीवी भारत से बात करते हुए म्यांमार, मैक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और केन्या में सेवाएं दे चुके पूर्व राजदूत राजीव भाटिया ने कहा कि भारत-रूस संबंधों की बात करते समय पश्चिमी मीडिया हमेशा पक्षपाती रहा है.

प्रश्न-आप मौजूदा रूस-यूक्रेन संकट पर नई दिल्ली की प्रतिक्रिया का विश्लेषण कैसे करते हैं?

उत्तर- नई दिल्ली की प्रतिक्रिया अपेक्षित तर्ज पर है. मूल रूप से रूस और यूक्रेन के बीच संबंधों का सवाल बहुस्तरीय है. यह यूरोपीय सुरक्षा का भी बड़ा मुद्दा जिसमें रूस और नाटो शामिल हैं, जिसमें निश्चित रूप से अमेरिका भी मुख्य किरदार है. इसलिए अनिवार्य रूप से जब देश ऐसी स्थिति में फंस जाते हैं, जहां सैन्य संघर्ष का खतरा होता है तो भारत हमेशा पारंपरिक रूप से यह मानता है कि कूटनीति ही एकमात्र रास्ता है. भारत मानता है कि देशों के बीच मतभेदों को बातचीत और शांतिपूर्ण तरीकों से सुलझाया जाना चाहिए, मेज के चारों ओर बैठ जाओ और मामले को सुलझाओ, यही नई दिल्ली ने किया है.

प्रश्न- पश्चिमी मीडिया का दावा है कि इस पर नई दिल्ली की प्रतिक्रिया रूस के प्रति झुकाव को दर्शाती है, आप इस कथन का विश्लेषण कैसे करते हैं?

उत्तर- जब भारत-रूस संबंधों की बात आती है तो पश्चिमी मीडिया हमेशा पक्षपाती होता है. आप रिश्ते की वास्तविकता, इसके पीछे प्रेरक आवेगों को नहीं समझते हैं और इसलिए मुझे लगता है कि हमें पश्चिमी मीडिया के इस पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण को नजरअंदाज करना चाहिए.

प्रश्न- क्या आपको लगता है कि पश्चिम, भारत पर दबाव बनाने के लिए पक्षपातपूर्ण आरोप लगाने का प्रयास कर रहा है कि हमें रूस-यूक्रेन मामले में पश्चिम के साथ सहयोग करना चाहिए?

उत्तर- जब हम पश्चिम कहते हैं तो मीडिया व शासन के बीच स्पष्ट अंतर होना चाहिए. जहां तक ​​वेस्टर्न मीडिया का सवाल है तो मैं आपकी इस बात से पूरी तरह सहमत हूं कि उनके पास हमेशा एक पक्षपाती कहानी होती है. जहां तक ​​पश्चिमी सरकारों का संबंध है तो मेरा मानना ​​है कि हमें उन सभी को एक साथ नहीं मिलाना चाहिए. जैसा कि पश्चिमी सरकार के बीच विभिन्न आकार और राय हैं. उनके पास जर्मन दृष्टिकोण, फ्रेंच और अन्य दृष्टिकोण भी हैं. हां, पश्चिमी मीडिया विशेष रूप से अमेरिकी मीडिया पक्षपाती है और हमें इसे पहचानना होगा.

प्रश्न- कुछ दिन पहले खुद डॉ. जयशंकर ने इस बात को रेखांकित किया था कि इंडो-पैसिफिक की स्थिति या भारत के खिलाफ चीन के आक्रामक व्यवहार की तुलना रूस-यूक्रेन संकट से नहीं की जा सकती. भारत की प्रतिक्रिया भारत की स्वतंत्र विदेश नीति को दर्शाती है. उन्होंने यह भी कहा कि जब अमेरिका और उसके सहयोगियों ने अफगानिस्तान छोड़ा तो हमारी सुरक्षा दांव पर थी. आप इसका विश्लेषण कैसे करते हैं?

उत्तर- निस्संदेह चीन, अफगानिस्तान और हाल की स्मृति में कई अन्य प्रसंग हैं जो इंगित करते हैं कि ये लोग दोहरे मापदंड का पालन करते हैं. हम इस तरह के दोहरे मानकों के प्रकटीकरण से दबाव महसूस नहीं कर सकते. भारत का अपना स्वतंत्र दृष्टिकोण है और वह अपनी परंपराओं, मूल्यों और अपने हितों से शासित होता है. मुझे लगता है कि विदेश मंत्री डॉ जयशंकर ने खुद को बहुत स्पष्ट कर दिया है कि भारत अपने दृष्टिकोण का पालन करेगा.

यह भी पढ़ें- Russia-Ukraine crisis : गैस संकट से निपटने के लिए कतर पर टिकीं यूरोप की नजरें

प्रश्न- इसके आगे भविष्य क्या है? क्या यूक्रेन, नाटो के दायरे में आ जाएगा और अगर स्थिति खराब होती है, तो क्या नई दिल्ली कोई ठोस कदम उठाएगी?

उत्तर- भविष्यवाणी करना बहुत मुश्किल है. मुझे लगता है कि अभी भी उम्मीद है क्योंकि राष्ट्रपति पुतिन अपनी स्थिति पर विचार करते हुए धीरे-धीरे कदम उठा रहे हैं. वे पश्चिम की प्रतिक्रिया को देख रहे हैं और उसकी जांच भी कर रहे हैं. अगर यह सब वहीं रुक जाता है जहां है और कोई सैन्य संघर्ष नहीं होता तो यह यूरोप और दुनिया के लिए अच्छा होगा. यदि कोई बड़ा सैन्य टकराव होता है तो इसके बहुत गंभीर आर्थिक, राजनीतिक और सुरक्षा परिणाम होंगे. इसलिए भारत और फ्रांस जैसे देश सही रास्ते पर हैं. वे इस विचार को बढ़ावा देने के लिए सुरक्षा परिषद और बाहर भी काम कर रहे हैं, कि तनाव को कम करें, शांतिपूर्ण तरीकों से मतभेदों को हल करें. मुझे लगता है कि इस जटिल स्थिति को हल करने का यही एकमात्र तरीका है.

नई दिल्ली: ईटीवी भारत से बात करते हुए म्यांमार, मैक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और केन्या में सेवाएं दे चुके पूर्व राजदूत राजीव भाटिया ने कहा कि भारत-रूस संबंधों की बात करते समय पश्चिमी मीडिया हमेशा पक्षपाती रहा है.

प्रश्न-आप मौजूदा रूस-यूक्रेन संकट पर नई दिल्ली की प्रतिक्रिया का विश्लेषण कैसे करते हैं?

उत्तर- नई दिल्ली की प्रतिक्रिया अपेक्षित तर्ज पर है. मूल रूप से रूस और यूक्रेन के बीच संबंधों का सवाल बहुस्तरीय है. यह यूरोपीय सुरक्षा का भी बड़ा मुद्दा जिसमें रूस और नाटो शामिल हैं, जिसमें निश्चित रूप से अमेरिका भी मुख्य किरदार है. इसलिए अनिवार्य रूप से जब देश ऐसी स्थिति में फंस जाते हैं, जहां सैन्य संघर्ष का खतरा होता है तो भारत हमेशा पारंपरिक रूप से यह मानता है कि कूटनीति ही एकमात्र रास्ता है. भारत मानता है कि देशों के बीच मतभेदों को बातचीत और शांतिपूर्ण तरीकों से सुलझाया जाना चाहिए, मेज के चारों ओर बैठ जाओ और मामले को सुलझाओ, यही नई दिल्ली ने किया है.

प्रश्न- पश्चिमी मीडिया का दावा है कि इस पर नई दिल्ली की प्रतिक्रिया रूस के प्रति झुकाव को दर्शाती है, आप इस कथन का विश्लेषण कैसे करते हैं?

उत्तर- जब भारत-रूस संबंधों की बात आती है तो पश्चिमी मीडिया हमेशा पक्षपाती होता है. आप रिश्ते की वास्तविकता, इसके पीछे प्रेरक आवेगों को नहीं समझते हैं और इसलिए मुझे लगता है कि हमें पश्चिमी मीडिया के इस पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण को नजरअंदाज करना चाहिए.

प्रश्न- क्या आपको लगता है कि पश्चिम, भारत पर दबाव बनाने के लिए पक्षपातपूर्ण आरोप लगाने का प्रयास कर रहा है कि हमें रूस-यूक्रेन मामले में पश्चिम के साथ सहयोग करना चाहिए?

उत्तर- जब हम पश्चिम कहते हैं तो मीडिया व शासन के बीच स्पष्ट अंतर होना चाहिए. जहां तक ​​वेस्टर्न मीडिया का सवाल है तो मैं आपकी इस बात से पूरी तरह सहमत हूं कि उनके पास हमेशा एक पक्षपाती कहानी होती है. जहां तक ​​पश्चिमी सरकारों का संबंध है तो मेरा मानना ​​है कि हमें उन सभी को एक साथ नहीं मिलाना चाहिए. जैसा कि पश्चिमी सरकार के बीच विभिन्न आकार और राय हैं. उनके पास जर्मन दृष्टिकोण, फ्रेंच और अन्य दृष्टिकोण भी हैं. हां, पश्चिमी मीडिया विशेष रूप से अमेरिकी मीडिया पक्षपाती है और हमें इसे पहचानना होगा.

प्रश्न- कुछ दिन पहले खुद डॉ. जयशंकर ने इस बात को रेखांकित किया था कि इंडो-पैसिफिक की स्थिति या भारत के खिलाफ चीन के आक्रामक व्यवहार की तुलना रूस-यूक्रेन संकट से नहीं की जा सकती. भारत की प्रतिक्रिया भारत की स्वतंत्र विदेश नीति को दर्शाती है. उन्होंने यह भी कहा कि जब अमेरिका और उसके सहयोगियों ने अफगानिस्तान छोड़ा तो हमारी सुरक्षा दांव पर थी. आप इसका विश्लेषण कैसे करते हैं?

उत्तर- निस्संदेह चीन, अफगानिस्तान और हाल की स्मृति में कई अन्य प्रसंग हैं जो इंगित करते हैं कि ये लोग दोहरे मापदंड का पालन करते हैं. हम इस तरह के दोहरे मानकों के प्रकटीकरण से दबाव महसूस नहीं कर सकते. भारत का अपना स्वतंत्र दृष्टिकोण है और वह अपनी परंपराओं, मूल्यों और अपने हितों से शासित होता है. मुझे लगता है कि विदेश मंत्री डॉ जयशंकर ने खुद को बहुत स्पष्ट कर दिया है कि भारत अपने दृष्टिकोण का पालन करेगा.

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प्रश्न- इसके आगे भविष्य क्या है? क्या यूक्रेन, नाटो के दायरे में आ जाएगा और अगर स्थिति खराब होती है, तो क्या नई दिल्ली कोई ठोस कदम उठाएगी?

उत्तर- भविष्यवाणी करना बहुत मुश्किल है. मुझे लगता है कि अभी भी उम्मीद है क्योंकि राष्ट्रपति पुतिन अपनी स्थिति पर विचार करते हुए धीरे-धीरे कदम उठा रहे हैं. वे पश्चिम की प्रतिक्रिया को देख रहे हैं और उसकी जांच भी कर रहे हैं. अगर यह सब वहीं रुक जाता है जहां है और कोई सैन्य संघर्ष नहीं होता तो यह यूरोप और दुनिया के लिए अच्छा होगा. यदि कोई बड़ा सैन्य टकराव होता है तो इसके बहुत गंभीर आर्थिक, राजनीतिक और सुरक्षा परिणाम होंगे. इसलिए भारत और फ्रांस जैसे देश सही रास्ते पर हैं. वे इस विचार को बढ़ावा देने के लिए सुरक्षा परिषद और बाहर भी काम कर रहे हैं, कि तनाव को कम करें, शांतिपूर्ण तरीकों से मतभेदों को हल करें. मुझे लगता है कि इस जटिल स्थिति को हल करने का यही एकमात्र तरीका है.

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