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पश्चिम बंगाल की महिला मजदूरी छोड़ बनी शिल्पकार, जानें इनकी अनोखी कहानी

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Published : Apr 5, 2022, 8:07 AM IST

पश्चिम बंगाल के जिला कूच बिहार की रहने वाली शिल्पकार गोरी चंदा (West Bengal craftsman Gori Chanda) ने अपनी शिल्पकारी की बदौलत परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने के साथ-साथ राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर अवार्ड हासिल किए हैं. बचपन से ही मजदूरी का दंश झेलने वाली गोरी कैसे इस मुकाम तक पहुंची ? पढ़ें रिपोर्ट

West Bengal craftsman Gori Chanda
पश्चिम बंगाल की महिला मजदूरी छोड़ बनी शिल्पकार, हर महीने कर रही अच्छी कमाई, जानें इनकी अनोखी कहानी

फरीदाबाद: इंसान अपने हुनर की बदौलत पूरी दुनिया पर राज कर सकता है. अपनी कला और हुनर के बलबूते ही लोगों को दुनिया में पहचान बनाने में कामयाबी हासिल हो पाती है. ऐसी ही एक महिला ने अपने हुनर और मेहनत के दम पर मजदूर से शिल्पकार तक का सफर तय कर लिया है. इतना ही नहीं पश्चिम बंगाल की रहने वाली गोरी चंदा को अपनी कला के लिए राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर अवार्ड भी मिल चुके हैं. पुलिस कर्मियों के हाथ में पकड़ी हुई जिस बात बेंत से लोगों को दूर से ही डर लगने लग जाता है, उसी बेंत के बल पर (Cane work Art) पश्चिम बंगाल की रहने वाली 68 साल की गोरी चंदा मजदूर से शिल्पकार कर सबको हैरत में डाल दिया.

हरियाणा के सूरजकुंड मेले में (Surajkund Mela in Faridabad) अपनी दुकान लगाने वाली गोरी चंदा ने बेंत से शिल्पकारी कर मन मोहक सामान तैयार किये हैं. आमतौर पर पुलिसकर्मियों के हाथ में जिस डंडे को देखा होगा. बेंत का अधिकांश प्रयोग पुलिस फोर्स और पैरामिलिट्री फोर्स के जवान कानून व्यवस्था बनाए रखने में प्रयोग करते हैं. वहीं, पश्चिम बंगाल के जिला कूच बिहार से आई 68 वर्षीय शिल्पकार गोरी चंदा ने उसी बेंत से अपनी अलग पहचान बना ली. साथ ही उनकी कला परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार का जरिया भी बन गया और कला की बदौलत ही दो बार वर्ष 1995 और 2000 में स्टेट अवार्ड से सम्मानित हो चुकी हैं.

पश्चिम बंगाल की शिल्पकार गोरी चंदा ने बेंत से शिल्पकारी कर बनाई पहचान

दरअसल पश्चिम बंगाल के कूच बिहार से आई गोरी चंदा को (West Bengal craftsman Gori Chanda) बचपन से मजदूरी का दंश झेलना पड़ा था. साथ ही शादी के बाद जब मजदूरी करनी पड़ी, तो मजदूरी से परिवार चलाना मुश्किल हो गया. ऐसे में गोरी ने कैन वर्क कला में भाग्य आजमाया. हालांकि गोरी करीब 12 साल की उम्र में ही इस कला को सीख चुकी थी, लेकिन शादी के बाद उन्होंने इस कला पर ज्यादा मेहनत की और पूरी तरह से पारंगत हुई. जिसके बाद उनके परिवार की आर्थिक स्थिति में भी काफी हद तक सुधार आया.

बेंत के छिलकों से तैयार सामान
बेंत के छिलकों से तैयार सामान

ये भी पढ़ें- अनूठी पहल : प्राथमिक शिक्षक ने पूरे गांव को ही बना दिया स्कूल

क्या है कैन वर्क कला- पश्चिम बंगाल के कूचबिहार जिले में बांस की की खेती की जाती है. जिसे खेतों से लाकर उसका छिलका निकाला जाता है. इनमें तीन कलर का छिलका निकलता है, उसे करीब 24 घंटे तक उबालकर सुखाया जाता है ताकि छिलके में नेचुरल कलर आ सके और सूखने के बाद उससे ही विभिन्न प्रकार के सामान तैयार किए जाते हैं. 68 वर्षीय शिल्पकार ने बेंत के छिलके से चटाई, बैग, टेबल, डस्टबिन, पर्स, लंच बैग, लगेज, जैकेट सहित अन्य सामान बनाया है.

गोरी चंदा ने बताया कि उनके पास 100 रुपए से लेकर 5 हजार तक का सामान हैं और इससे वो महीने में करीब 35 हजार से लेकर 40 हजार तक की कमाई कर लेती हैं. गोरी चंदा का बनाया हुआ सामान ना सिर्फ भारत में पसंद किया जाता है, बल्कि विदेशों में भी गोरी की शिल्पकारी के सामान को पसंद किया जाता है.

फरीदाबाद: इंसान अपने हुनर की बदौलत पूरी दुनिया पर राज कर सकता है. अपनी कला और हुनर के बलबूते ही लोगों को दुनिया में पहचान बनाने में कामयाबी हासिल हो पाती है. ऐसी ही एक महिला ने अपने हुनर और मेहनत के दम पर मजदूर से शिल्पकार तक का सफर तय कर लिया है. इतना ही नहीं पश्चिम बंगाल की रहने वाली गोरी चंदा को अपनी कला के लिए राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर अवार्ड भी मिल चुके हैं. पुलिस कर्मियों के हाथ में पकड़ी हुई जिस बात बेंत से लोगों को दूर से ही डर लगने लग जाता है, उसी बेंत के बल पर (Cane work Art) पश्चिम बंगाल की रहने वाली 68 साल की गोरी चंदा मजदूर से शिल्पकार कर सबको हैरत में डाल दिया.

हरियाणा के सूरजकुंड मेले में (Surajkund Mela in Faridabad) अपनी दुकान लगाने वाली गोरी चंदा ने बेंत से शिल्पकारी कर मन मोहक सामान तैयार किये हैं. आमतौर पर पुलिसकर्मियों के हाथ में जिस डंडे को देखा होगा. बेंत का अधिकांश प्रयोग पुलिस फोर्स और पैरामिलिट्री फोर्स के जवान कानून व्यवस्था बनाए रखने में प्रयोग करते हैं. वहीं, पश्चिम बंगाल के जिला कूच बिहार से आई 68 वर्षीय शिल्पकार गोरी चंदा ने उसी बेंत से अपनी अलग पहचान बना ली. साथ ही उनकी कला परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार का जरिया भी बन गया और कला की बदौलत ही दो बार वर्ष 1995 और 2000 में स्टेट अवार्ड से सम्मानित हो चुकी हैं.

पश्चिम बंगाल की शिल्पकार गोरी चंदा ने बेंत से शिल्पकारी कर बनाई पहचान

दरअसल पश्चिम बंगाल के कूच बिहार से आई गोरी चंदा को (West Bengal craftsman Gori Chanda) बचपन से मजदूरी का दंश झेलना पड़ा था. साथ ही शादी के बाद जब मजदूरी करनी पड़ी, तो मजदूरी से परिवार चलाना मुश्किल हो गया. ऐसे में गोरी ने कैन वर्क कला में भाग्य आजमाया. हालांकि गोरी करीब 12 साल की उम्र में ही इस कला को सीख चुकी थी, लेकिन शादी के बाद उन्होंने इस कला पर ज्यादा मेहनत की और पूरी तरह से पारंगत हुई. जिसके बाद उनके परिवार की आर्थिक स्थिति में भी काफी हद तक सुधार आया.

बेंत के छिलकों से तैयार सामान
बेंत के छिलकों से तैयार सामान

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क्या है कैन वर्क कला- पश्चिम बंगाल के कूचबिहार जिले में बांस की की खेती की जाती है. जिसे खेतों से लाकर उसका छिलका निकाला जाता है. इनमें तीन कलर का छिलका निकलता है, उसे करीब 24 घंटे तक उबालकर सुखाया जाता है ताकि छिलके में नेचुरल कलर आ सके और सूखने के बाद उससे ही विभिन्न प्रकार के सामान तैयार किए जाते हैं. 68 वर्षीय शिल्पकार ने बेंत के छिलके से चटाई, बैग, टेबल, डस्टबिन, पर्स, लंच बैग, लगेज, जैकेट सहित अन्य सामान बनाया है.

गोरी चंदा ने बताया कि उनके पास 100 रुपए से लेकर 5 हजार तक का सामान हैं और इससे वो महीने में करीब 35 हजार से लेकर 40 हजार तक की कमाई कर लेती हैं. गोरी चंदा का बनाया हुआ सामान ना सिर्फ भारत में पसंद किया जाता है, बल्कि विदेशों में भी गोरी की शिल्पकारी के सामान को पसंद किया जाता है.

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