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तलाकशुदा दंपति के बच्चों की कस्टडी देते वक्त उनके भविष्य का रखें ध्यान : हाईकोर्ट

मद्रास हाई कोर्ट ने कहा कि तलाकशुदा दंपति के बच्चों की कस्टडी के मामलों में बच्चों के कल्याण और भविष्य को सर्वोच्च प्राथमिकता दिया जाना चाहिए. कोर्ट का यह कर्तव्य नहीं है कि वह केवल याचिका और हलफनामे के आधार पर बच्चों की कस्टडी सुनिश्चित करे बल्कि पूरी जांच के बाद ही बच्चों की कस्टडी पर निर्णय दे.

मद्रास उच्च न्यायालय
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Published : May 28, 2022, 2:03 PM IST

चेन्नई: मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा है कि तलाकशुदा दंपति के बच्चों की कस्टडी के केस में बच्चों के बेहतर भविष्य को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए. जांच से नाबालिग बच्चों के हित का पता लगाना चाहिए. अदालतों से यह अपेक्षा नहीं की जाती है कि वह केवल याचिका और काउंटर हलफनामे में लगाए गए आरोपों के आधार पर नाबालिगों की रेगुलर कस्टडी दें. जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम और जे सत्य नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने अपने हालिया आदेश में कहा "अदालतों से बच्चों की कस्टडी के मामलों में बच्चों के हितों की सच्चाई का पता लगाने की उम्मीद की जाती है. इसके साथ ही बच्चों की मानसिक स्थिति का भी ध्यान रखा जाना चाहिए." पीठ शहर की एक महिला हेड कांस्टेबल की याचिका पर निर्णय सुनाने के दौरान कही.

बता दें तमिलनाडु पुलिस की एक महिला हेड कांस्टेबल ने अप्रैल 2022 में फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी. जिसमें फैमिली कोर्ट ने उसके दो नाबालिग बच्चों की कस्टडी उसके पूर्व पति को दे दी थी. फिर उसने बच्चों को अपनी बहन के घर छोड़ दिया. फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द करने के बाद, बेंच ने उस व्यक्ति (उसके पूर्व पति) को निर्देश दिया कि सभी प्रमाण पत्रों, दस्तावेजों और उनके सामान के साथ तत्काल बच्चों की कस्टडी उसकी मां को सौंपे. वर्तमान में उसका पूर्व पति राज्य द्वारा संचालित डिस्कॉम टैंजेडको में कार्यरत हैं.

कोर्ट ने यह भी कहा कि उन्हें नाबालिग बच्चों से मिलने का कोई अधिकार नहीं है. वह भविष्य में उनके जीवन या उनकी गतिविधियों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे. अलग हुए पति द्वारा इस संबंध में किसी भी तरह के उल्लंघन करने पर महिला कानूनी कार्रवाई के लिए और लोकल पुलिस से संपर्क करने के लिए स्वतंत्र है. बता दें कि महिला हेड कांस्टेबल की दिसंबर, 2012 में शादी हुई थी परंतु आपसी मतभेद और गलतफहमी के कारण दंपति ने आपसी रजामंदी से तलाक के लिए आवेदन किया था. फैमिली कोर्ट ने अगस्त, 2018 में उनके तलाक को स्वीकृति दी थी.

तत्पश्चात उसके पति ने बच्चों की कस्टडी के लिए अपील की और अदालत ने उसकी याचिका को मंजूर करते बच्चों की कस्टडी भी दे दी थी. फिर वह अपने बच्चों को अपनी बहन के घर छोड़ दिया. इसलिए अलग हुई पत्नी ने बच्चों की कस्टडी के लिए हाई कोर्ट का रूख किया. इस तरह की दलीलों से अलग बच्चों के मनोवैज्ञानिक पहलू, उनकी रुचि और उनके भविष्य के लिए क्या बेहतर होगा, इस पर विचार किया जाना ज्यादा आवश्यक है. क्योंकि बच्चे हमारे देश के भविष्य हैं. एक अच्छा परिवार अकेले एक अच्छे राष्ट्र का निर्माण कर सकता है. प्रत्येक बच्चे को भारतीय संविधान में बेहतर जीवन जीने का अधिकार है. जीवन के अधिकार में एक सभ्य जीवन शामिल है न कि केवल पशु जीवन. नाबालिग बच्चों के जीवन को सभी संबंधितों द्वारा संरक्षित किया जाना आवश्यक है. न्यायालयों का कर्तव्य है कि नाबालिग बच्चों के हितों व इच्छाओं को यथासंभव बेहतर भविष्य के लिए संरक्षित करें क्योंकि यह संविधान के तहत राज्य का जनादेश है. कोर्ट ने दोनों बच्चों से मिलने और उनकी इच्छाओं का जानने के बाद यह टिप्पणी की

यह भी पढ़ें-मद्रास हाई कोर्ट ने रखी जमानत की शर्त, पहले संविधान का पालन करने की शपथ लो

पीटीआई

चेन्नई: मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा है कि तलाकशुदा दंपति के बच्चों की कस्टडी के केस में बच्चों के बेहतर भविष्य को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए. जांच से नाबालिग बच्चों के हित का पता लगाना चाहिए. अदालतों से यह अपेक्षा नहीं की जाती है कि वह केवल याचिका और काउंटर हलफनामे में लगाए गए आरोपों के आधार पर नाबालिगों की रेगुलर कस्टडी दें. जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम और जे सत्य नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने अपने हालिया आदेश में कहा "अदालतों से बच्चों की कस्टडी के मामलों में बच्चों के हितों की सच्चाई का पता लगाने की उम्मीद की जाती है. इसके साथ ही बच्चों की मानसिक स्थिति का भी ध्यान रखा जाना चाहिए." पीठ शहर की एक महिला हेड कांस्टेबल की याचिका पर निर्णय सुनाने के दौरान कही.

बता दें तमिलनाडु पुलिस की एक महिला हेड कांस्टेबल ने अप्रैल 2022 में फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी. जिसमें फैमिली कोर्ट ने उसके दो नाबालिग बच्चों की कस्टडी उसके पूर्व पति को दे दी थी. फिर उसने बच्चों को अपनी बहन के घर छोड़ दिया. फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द करने के बाद, बेंच ने उस व्यक्ति (उसके पूर्व पति) को निर्देश दिया कि सभी प्रमाण पत्रों, दस्तावेजों और उनके सामान के साथ तत्काल बच्चों की कस्टडी उसकी मां को सौंपे. वर्तमान में उसका पूर्व पति राज्य द्वारा संचालित डिस्कॉम टैंजेडको में कार्यरत हैं.

कोर्ट ने यह भी कहा कि उन्हें नाबालिग बच्चों से मिलने का कोई अधिकार नहीं है. वह भविष्य में उनके जीवन या उनकी गतिविधियों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे. अलग हुए पति द्वारा इस संबंध में किसी भी तरह के उल्लंघन करने पर महिला कानूनी कार्रवाई के लिए और लोकल पुलिस से संपर्क करने के लिए स्वतंत्र है. बता दें कि महिला हेड कांस्टेबल की दिसंबर, 2012 में शादी हुई थी परंतु आपसी मतभेद और गलतफहमी के कारण दंपति ने आपसी रजामंदी से तलाक के लिए आवेदन किया था. फैमिली कोर्ट ने अगस्त, 2018 में उनके तलाक को स्वीकृति दी थी.

तत्पश्चात उसके पति ने बच्चों की कस्टडी के लिए अपील की और अदालत ने उसकी याचिका को मंजूर करते बच्चों की कस्टडी भी दे दी थी. फिर वह अपने बच्चों को अपनी बहन के घर छोड़ दिया. इसलिए अलग हुई पत्नी ने बच्चों की कस्टडी के लिए हाई कोर्ट का रूख किया. इस तरह की दलीलों से अलग बच्चों के मनोवैज्ञानिक पहलू, उनकी रुचि और उनके भविष्य के लिए क्या बेहतर होगा, इस पर विचार किया जाना ज्यादा आवश्यक है. क्योंकि बच्चे हमारे देश के भविष्य हैं. एक अच्छा परिवार अकेले एक अच्छे राष्ट्र का निर्माण कर सकता है. प्रत्येक बच्चे को भारतीय संविधान में बेहतर जीवन जीने का अधिकार है. जीवन के अधिकार में एक सभ्य जीवन शामिल है न कि केवल पशु जीवन. नाबालिग बच्चों के जीवन को सभी संबंधितों द्वारा संरक्षित किया जाना आवश्यक है. न्यायालयों का कर्तव्य है कि नाबालिग बच्चों के हितों व इच्छाओं को यथासंभव बेहतर भविष्य के लिए संरक्षित करें क्योंकि यह संविधान के तहत राज्य का जनादेश है. कोर्ट ने दोनों बच्चों से मिलने और उनकी इच्छाओं का जानने के बाद यह टिप्पणी की

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