ETV Bharat / bharat

हमें कोविड वैक्सीन पर संदेह नहीं करना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने कहा कि कोविड-19 का टीका लेने वाले व्यक्ति होने वाली हर मौत के लिए वैक्सीन (Covid-19 Vaccine) को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि टीकों में बहुत गुण हैं और वे यह संदेश नहीं देना चाहते कि टीके अच्छा नहीं हैं.

supreme court
सुप्रीम कोर्ट
author img

By

Published : Nov 26, 2021, 3:00 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ (Supreme Court Justice DY Chandrachud) और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना (Justice AS Bopanna) की पीठ ने एक याचिका पर सुनवाई की. जिसमें कोविड 19 टीकाकरण के बाद होने वाली मौतों और प्रतिकूल प्रभावों के लिए वैक्सीन पर आरोप लगाया गया था.

याचिकाकर्ता ने केंद्र से वैक्सीन लेने के 30 दिनों के भीतर होने वाली मौतों का रिकॉर्ड और जानकारी करने का निर्देश देने की मांग की थी. सीनियर एडवोकेट कॉलिन गोंजाल्विस ने अदालत के समक्ष कहा कि परिवारों ने रिपोर्ट करना शुरू कर दिया है और गूगल डॉक्स के अनुसार वैक्सीन लेने के बाद 9700 मौतें हुई हैं. जब याचिका दायर की गई तो तब तक देश भर में 9000 मौतें (9000 deaths across the country) हो चुकी हैं.

उन्होंने अदालत के समक्ष यह प्रस्तुत किया कि प्रारंभ में आशा कार्यकर्ताओं, आंगनवाड़ी और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं आदि को बताया गया कि टीकाकरण गांवों में भी होगा और उन्हें यह पता लगाना होगा कि किसी की मृत्यु हुई है या कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है.

लेकिन अब संशोधित दिशा-निर्देश (Revised guidelines) सक्रिय निगरानी से निष्क्रिय निगरानी में स्थानांतरित हो गए हैं और अब संबंधित अधिकारी जमीन पर काम करने वालों के बजाय परिवार की शिकायतों पर भरोसा कर रहे हैं.

उन्होंने तर्क दिया कि टीकाकरण के बाद प्रतिकूल प्रतिक्रिया के दिशानिर्देशों का भी पालन नहीं किया जा रहा है. इसलिए मौतों की संख्या अविश्वसनीय रूप से बढ़ी है. कोर्ट ने इस पर आपत्ति जताई और कहा कि टीकों के बड़े गुण हैं और यहां तक ​​कि डब्ल्यूएचओ ने भी इस बारे में बात की है. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि हमें टीके पर संदेह नहीं करना चाहिए.

एडवोकेट गोंसाल्वेस (Advocate Gonsalves) ने कहा कि हजारों मौतें हैं जिनकी जांच अनुसंधान उद्देश्यों के लिए की जानी चाहिए ताकि यह पता लगाया जा सके कि टीके का कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है या नहीं. कोर्ट ने कहा कि यह सर्वोच्च राष्ट्रीय महत्व का मामला है और लोगों को टीका न लगाकर कोई ढिलाई बर्दाश्त नहीं कर सकते क्योंकि यह हमारे जीवनकाल में देखी गई सबसे बड़ी महामारी है.

यह भी पढ़ें- संविधान दिवस: कैरेक्टर खो चुके दल कैसे करेंगे लोकतंत्र की रक्षा:पीएम

कोर्ट ने याचिकाकर्ता को भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को एक प्रति देने के लिए कहा और मामले को 2 सप्ताह के बाद फिर से सुनवाई के लिए स्थगित कर दिया. कोर्ट ने कहा कि उसके दिमाग में कुछ है और वे फैसला करेंगे.

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ (Supreme Court Justice DY Chandrachud) और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना (Justice AS Bopanna) की पीठ ने एक याचिका पर सुनवाई की. जिसमें कोविड 19 टीकाकरण के बाद होने वाली मौतों और प्रतिकूल प्रभावों के लिए वैक्सीन पर आरोप लगाया गया था.

याचिकाकर्ता ने केंद्र से वैक्सीन लेने के 30 दिनों के भीतर होने वाली मौतों का रिकॉर्ड और जानकारी करने का निर्देश देने की मांग की थी. सीनियर एडवोकेट कॉलिन गोंजाल्विस ने अदालत के समक्ष कहा कि परिवारों ने रिपोर्ट करना शुरू कर दिया है और गूगल डॉक्स के अनुसार वैक्सीन लेने के बाद 9700 मौतें हुई हैं. जब याचिका दायर की गई तो तब तक देश भर में 9000 मौतें (9000 deaths across the country) हो चुकी हैं.

उन्होंने अदालत के समक्ष यह प्रस्तुत किया कि प्रारंभ में आशा कार्यकर्ताओं, आंगनवाड़ी और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं आदि को बताया गया कि टीकाकरण गांवों में भी होगा और उन्हें यह पता लगाना होगा कि किसी की मृत्यु हुई है या कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है.

लेकिन अब संशोधित दिशा-निर्देश (Revised guidelines) सक्रिय निगरानी से निष्क्रिय निगरानी में स्थानांतरित हो गए हैं और अब संबंधित अधिकारी जमीन पर काम करने वालों के बजाय परिवार की शिकायतों पर भरोसा कर रहे हैं.

उन्होंने तर्क दिया कि टीकाकरण के बाद प्रतिकूल प्रतिक्रिया के दिशानिर्देशों का भी पालन नहीं किया जा रहा है. इसलिए मौतों की संख्या अविश्वसनीय रूप से बढ़ी है. कोर्ट ने इस पर आपत्ति जताई और कहा कि टीकों के बड़े गुण हैं और यहां तक ​​कि डब्ल्यूएचओ ने भी इस बारे में बात की है. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि हमें टीके पर संदेह नहीं करना चाहिए.

एडवोकेट गोंसाल्वेस (Advocate Gonsalves) ने कहा कि हजारों मौतें हैं जिनकी जांच अनुसंधान उद्देश्यों के लिए की जानी चाहिए ताकि यह पता लगाया जा सके कि टीके का कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है या नहीं. कोर्ट ने कहा कि यह सर्वोच्च राष्ट्रीय महत्व का मामला है और लोगों को टीका न लगाकर कोई ढिलाई बर्दाश्त नहीं कर सकते क्योंकि यह हमारे जीवनकाल में देखी गई सबसे बड़ी महामारी है.

यह भी पढ़ें- संविधान दिवस: कैरेक्टर खो चुके दल कैसे करेंगे लोकतंत्र की रक्षा:पीएम

कोर्ट ने याचिकाकर्ता को भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को एक प्रति देने के लिए कहा और मामले को 2 सप्ताह के बाद फिर से सुनवाई के लिए स्थगित कर दिया. कोर्ट ने कहा कि उसके दिमाग में कुछ है और वे फैसला करेंगे.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.