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Rajasthan High Court : उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बतौर वकील पेश की थी अपील, 34 साल बाद हुआ मामले का निस्तारण

राजस्थान हाईकोर्ट ने 34 साल बाद सोमवार को एक मामले का निस्तारण किया और अभियुक्त को मिली सजा को कम करते हुए उसे भुगती हुई सजा तक सीमित कर दिया. इस मामले की सबसे खास बात यह है कि इसकी अपील उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बतौर वकील पेश की थी.

Rajasthan High Court
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 18, 2023, 9:09 PM IST

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने गैर इरादतन हत्या के मामले में 34 साल पहले पेश एक अपील का सोमवार को निस्तारण किया. साथ ही अभियुक्त को मिली सजा को कम करते हुए उसे भुगती हुई सजा तक सीमित कर दिया. हालांकि, अदालत ने कहा कि यदि मामले में लगाया गया हर्जाना अभियुक्त दो माह में जमा नहीं कराता है तो उसे डिफॉल्ट सजा भुगतनी होगी. जस्टिस महेंद्र गोयल ने यह आदेश गुरुदयाल सिंह की अपील का निस्तारण करते हुए दिया. दिलचस्प बात यह है कि इस अपील को साल 1989 में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बतौर वकील रहते पेश की थी. वहीं, अब उनके भांजे की पत्नी ने बतौर अधिवक्ता यह केस लड़ा है.

अदालत ने मामले का निस्तारण करते हुए अपने आदेश में कहा कि अपीलार्थी 2 माह 19 दिन की अवधि जेल में बिता चुका है. इसके अलावा वह 83 साल का अपीलार्थी अपने ऊपर पिछले 35 साल से आपराधिक मुकदमा लंबित रहने का दर्द झेल रहा है. ऐसे में उसकी सजा को भुगती हुई सजा तक सीमित करना उचित होगा.

इसे भी पढ़ें - Rajasthan High Court : छात्रसंघ चुनाव के लिए जनहित याचिका, सरकार को जवाब के लिए 4 सप्ताह का समय

अपीलार्थी की ओर से अधिवक्ता भावना चौधरी ने अदालत को बताया कि 6 मार्च, 1988 को अलवर के किशनगढ़ बास थाने में राजेंद्र सिंह को चाकू मारकर घायल करने की रिपोर्ट दर्ज हुई थी. जांच के दौरान राजेंद्र की मौत होने पर अदालत में हत्या के आरोप में चालान पेश कर दिया. वहीं, एडीजे कोर्ट ने गैर इरादतन हत्या को लेकर आईपीसी की धारा 302 भाग 2 में अपीलार्थी को चार साल की सजा और एक हजार रुपए का जुर्माना लगाया. इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील पेश की गई.

अपीलार्थी की ओर से कहा गया कि घटना 35 साल पुरानी है और अपीलार्थी 83 साल का वृद्ध हो चुका है. ऐसे में उसकी सजा कम कर भुगती हुई सजा तक सीमित कर दिया जाए. इस पर सुनवाई करते हुए एकल पीठ ने अपील का निस्तारण कर दिया.

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने गैर इरादतन हत्या के मामले में 34 साल पहले पेश एक अपील का सोमवार को निस्तारण किया. साथ ही अभियुक्त को मिली सजा को कम करते हुए उसे भुगती हुई सजा तक सीमित कर दिया. हालांकि, अदालत ने कहा कि यदि मामले में लगाया गया हर्जाना अभियुक्त दो माह में जमा नहीं कराता है तो उसे डिफॉल्ट सजा भुगतनी होगी. जस्टिस महेंद्र गोयल ने यह आदेश गुरुदयाल सिंह की अपील का निस्तारण करते हुए दिया. दिलचस्प बात यह है कि इस अपील को साल 1989 में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बतौर वकील रहते पेश की थी. वहीं, अब उनके भांजे की पत्नी ने बतौर अधिवक्ता यह केस लड़ा है.

अदालत ने मामले का निस्तारण करते हुए अपने आदेश में कहा कि अपीलार्थी 2 माह 19 दिन की अवधि जेल में बिता चुका है. इसके अलावा वह 83 साल का अपीलार्थी अपने ऊपर पिछले 35 साल से आपराधिक मुकदमा लंबित रहने का दर्द झेल रहा है. ऐसे में उसकी सजा को भुगती हुई सजा तक सीमित करना उचित होगा.

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अपीलार्थी की ओर से अधिवक्ता भावना चौधरी ने अदालत को बताया कि 6 मार्च, 1988 को अलवर के किशनगढ़ बास थाने में राजेंद्र सिंह को चाकू मारकर घायल करने की रिपोर्ट दर्ज हुई थी. जांच के दौरान राजेंद्र की मौत होने पर अदालत में हत्या के आरोप में चालान पेश कर दिया. वहीं, एडीजे कोर्ट ने गैर इरादतन हत्या को लेकर आईपीसी की धारा 302 भाग 2 में अपीलार्थी को चार साल की सजा और एक हजार रुपए का जुर्माना लगाया. इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील पेश की गई.

अपीलार्थी की ओर से कहा गया कि घटना 35 साल पुरानी है और अपीलार्थी 83 साल का वृद्ध हो चुका है. ऐसे में उसकी सजा कम कर भुगती हुई सजा तक सीमित कर दिया जाए. इस पर सुनवाई करते हुए एकल पीठ ने अपील का निस्तारण कर दिया.

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