नई दिल्ली : दाह संस्कार में लकड़ियों की कमी को पूरा करने के लिए गोबर से बने उपले एक बेहतर विकल्प के तौर पर इस्तेमाल किए जा सकते हैं. इससे न केवल प्रदूषण में कमी आएगी बल्कि हर आर्थिक वर्ग के व्यक्ति को उनके परिजनों के सम्मानजनक अंतिम संस्कार का अवसर मिल सकेगा. विश्व हिन्दू परिषद ने इस योजना पर काम भी शुरू कर दिया है और दिल्ली में विहिप का पहला गोबर से उपले बनाने का प्लांट भी शुरू होने जा रहा है.
इस योजना के बारे में विहिप के दिल्ली प्रांत अध्यक्ष कपिल खन्ना ने ईटीवी भारत को जानकारी दी. उन्होंने बताया कि विहिप जल्द ही दिल्ली में गोबर से उपले बनाने वाले स्वचालित मशीनो से लैस प्लांट शुरू कर रही है. इन प्लांट में गोबर से बने उपले दिल्ली के सभी श्मशान स्थल तक पहुंचाए जाएंगे. दरअसल कोरोना महामारी के बढ़ते प्रभाव से बढ़ रही मृतकों की संख्या के कारण न केवल श्मशान घाटों पर भीड़ बढ़ी है बल्कि लकड़ियों की मांग भी कई गुना बढ़ी है. अब इस समस्या से लोगों को निजात दिलाने के लिए विहिप मदद के साथ आगे आया है.
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कोरोना महामारी के दूसरे दौर में न केवल संक्रमित मरीजों की संख्या में अप्रत्याशित बढ़ोतरी हुई बल्कि मृतकों की संख्या भी पिछले साल के मुकाबले कहीं ज्यादा है. ऐसे में कई जगह श्मशान घाटों पर लकड़ी की किल्लत होने की भी घटनाएं सामने आईं जिस वजह से मृतक के परिजनों को घंटों इंतजार भी करना पड़ता है.
महामारी के कारण अपनों के असामयिक मृत्यु की पीड़ा झेल रहे लोगों को सम्मानजनक अंतिम संस्कार का अवसर भी ठीक से नहीं मिल पाता है. न केवल लकड़ियों की कीमतें बढ़ रही हैं बल्कि भारी मात्रा में लकड़ियां जलाने से प्रदूषण भी बढ़ रहा है. यदि शवों को जलाने में गोबर से बने उपलों का इस्तेमाल किया जाता है तो यह किफायती भी होगा और प्रदूषण भी कम करेगा.
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एक शव के दाह संस्कार में औसतन 3 से 4 क्विंटल तक लकड़ियां लग जाती हैं. यदि केवल देश की राजधानी में ही प्रतिदिन मृतकों की संख्या देखें तो लकड़ी की खपत कई गुना बढ़ रही है और जाहिर तौर पर ज्यादा लकड़ियों के जलने से प्रदूषण में भी बढ़ोतरी होती है.
विहिप दिल्ली प्रान्त अध्यक्ष कपिल खन्ना ने बताया कि वह गुजरात के भावनगर से बड़ी मशीनें मंगवा रहे हैं जो गोबर के उपले बनाने का काम करेगी. ये प्लांट सबसे पहले दिल्ली के रोहिणी स्थित पाकिस्तानी हिन्दू शरणार्थी कैम्प से शुरू किया जाएगा. प्लांट में उपले बनाने के लिए गोबर की आपूर्ति गौशालाओं द्वारा की जाएगी. शरणार्थी कैम्प में रह रहे लोगों को भी इस प्लांट के शुरू होने से रोजगार मिल सकेगा.