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जनसंख्या नियंत्रण विधेयक से एक बच्चे का मानदंड हटाए योगी सरकार : विहिप

विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने उत्तर प्रदेश सरकार को अपने जनसंख्या नियंत्रण मसौदा विधेयक से एक बच्चा नीति मानदंड को हटाने का सुझाव दिया है. विहिप का कहना है कि इससे विभिन्न समुदायों के बीच असंतुलन और जनसंख्या का संकुचन बढ़ने की संभावना है.

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Published : Jul 12, 2021, 6:43 PM IST

नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश राज्य विधि आयोग (यूपीएससीएल) ने उत्तर प्रदेश जनसंख्या (नियंत्रण, स्थिरीकरण एवं कल्याण) विधेयक-2021 का प्रारूप तैयार किया है. विहिप ने राज्य की योगी आदित्यनाथ सरकार से इस विधेयक से माता-पिता के बजाय बच्चे को पुरस्कृत करने या दंडित करने की विसंगति को दूर करने के लिए भी कहा है.

संगठन के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने सोमवार को यूपीएससीएल को लिखे एक पत्र में कहा कि विधेयक की प्रस्तावना में कहा गया है कि यह जनसंख्या को स्थिर करने और दो बच्चों के मानदंड को बढ़ावा देने वाला एक विधेयक है. विश्व हिंदू परिषद दोनों उद्देश्यों से सहमत है. उन्होंने कहा कि हालांकि विधेयक की धारा 5, 6 (2) और 7, जो लोक सेवकों और अन्य लोगों को परिवार में केवल एक बच्चा पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करती है. उक्त उद्देश्यों से बहुत आगे जाती है.

कुमार ने कहा कि इसलिए हम जनसंख्या के संकुचन के साथ-साथ एक बच्चे की नीति के अवांछनीय सामाजिक और आर्थिक परिणामों से बचने और विसंगति को दूर करने के लिए धारा 5, और धारा 6 (2) और 7 को हटाने का सुझाव देते हैं. उन्होंने यूपीएससीएल को एक निश्चित समय सीमा के भीतर उत्तर प्रदेश में कुल प्रजनन दर (टीएफआर) को 1.7 दर तक लाने वाले विधेयक के उद्देश्य पर पुनर्विचार करने का भी सुझाव दिया. हाल में विधेयक के प्रारूप पर यूपीएससीएल ने लोगों से सुझाव मांगे हैं.

विहिप के कार्यकारी अध्यक्ष ने अपने सुझावों में कहा कि जनसंख्या स्थिरता हासिल करने के लिए दो बच्चों की नीति वांछनीय मानी जाती है. उन्होंने कहा कि एक समाज में जनसंख्या उस समय स्थिर हो जाती है जब एक महिला के प्रजनन जीवन में पैदा होने वाले बच्चों की औसत संख्या दो से थोड़ी अधिक होती है. उन्होंने कहा कि एक बच्चे की नीति से ऐसी स्थिति पैदा होगी जहां दो माता-पिता और चार दादा-दादी की देखभाल करने के लिए केवल एक कामकाजी उम्र का वयस्क होगा.

विहिप नेता ने कहा कि चीन ने 1980 में एक बच्चे की नीति अपनाई थी लेकिन ऐसी स्थिति से उबरने के लिए उसे तीन दशकों के भीतर इसे वापस लेना पड़ा. उन्होंने कहा कि कई राज्यों में विभिन्न समुदायों के बीच असंतुलन बढ़ रहा है. कुमार ने कहा कि असम और केरल जैसे राज्यों में यह चिंताजनक होता जा रहा है. जहां जनसंख्या की कुल वृद्धि में गिरावट आई है.

यह भी पढ़ें-भाई की जमानत रद्द करवाने पहुंची सुप्रीम कोर्ट, जीजा की हत्या का आरोप

इन दोनों राज्यों में 2.1 की प्रतिस्थापन दर से हिंदुओं के टीएफआर में काफी गिरावट आई है लेकिन असम में मुसलमानों की यह दर 3.16 और केरल में 2.33 है. विहिप नेता ने कहा कि उत्तर प्रदेश को ऐसी स्थिति में आने से बचना चाहिए.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश राज्य विधि आयोग (यूपीएससीएल) ने उत्तर प्रदेश जनसंख्या (नियंत्रण, स्थिरीकरण एवं कल्याण) विधेयक-2021 का प्रारूप तैयार किया है. विहिप ने राज्य की योगी आदित्यनाथ सरकार से इस विधेयक से माता-पिता के बजाय बच्चे को पुरस्कृत करने या दंडित करने की विसंगति को दूर करने के लिए भी कहा है.

संगठन के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने सोमवार को यूपीएससीएल को लिखे एक पत्र में कहा कि विधेयक की प्रस्तावना में कहा गया है कि यह जनसंख्या को स्थिर करने और दो बच्चों के मानदंड को बढ़ावा देने वाला एक विधेयक है. विश्व हिंदू परिषद दोनों उद्देश्यों से सहमत है. उन्होंने कहा कि हालांकि विधेयक की धारा 5, 6 (2) और 7, जो लोक सेवकों और अन्य लोगों को परिवार में केवल एक बच्चा पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करती है. उक्त उद्देश्यों से बहुत आगे जाती है.

कुमार ने कहा कि इसलिए हम जनसंख्या के संकुचन के साथ-साथ एक बच्चे की नीति के अवांछनीय सामाजिक और आर्थिक परिणामों से बचने और विसंगति को दूर करने के लिए धारा 5, और धारा 6 (2) और 7 को हटाने का सुझाव देते हैं. उन्होंने यूपीएससीएल को एक निश्चित समय सीमा के भीतर उत्तर प्रदेश में कुल प्रजनन दर (टीएफआर) को 1.7 दर तक लाने वाले विधेयक के उद्देश्य पर पुनर्विचार करने का भी सुझाव दिया. हाल में विधेयक के प्रारूप पर यूपीएससीएल ने लोगों से सुझाव मांगे हैं.

विहिप के कार्यकारी अध्यक्ष ने अपने सुझावों में कहा कि जनसंख्या स्थिरता हासिल करने के लिए दो बच्चों की नीति वांछनीय मानी जाती है. उन्होंने कहा कि एक समाज में जनसंख्या उस समय स्थिर हो जाती है जब एक महिला के प्रजनन जीवन में पैदा होने वाले बच्चों की औसत संख्या दो से थोड़ी अधिक होती है. उन्होंने कहा कि एक बच्चे की नीति से ऐसी स्थिति पैदा होगी जहां दो माता-पिता और चार दादा-दादी की देखभाल करने के लिए केवल एक कामकाजी उम्र का वयस्क होगा.

विहिप नेता ने कहा कि चीन ने 1980 में एक बच्चे की नीति अपनाई थी लेकिन ऐसी स्थिति से उबरने के लिए उसे तीन दशकों के भीतर इसे वापस लेना पड़ा. उन्होंने कहा कि कई राज्यों में विभिन्न समुदायों के बीच असंतुलन बढ़ रहा है. कुमार ने कहा कि असम और केरल जैसे राज्यों में यह चिंताजनक होता जा रहा है. जहां जनसंख्या की कुल वृद्धि में गिरावट आई है.

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इन दोनों राज्यों में 2.1 की प्रतिस्थापन दर से हिंदुओं के टीएफआर में काफी गिरावट आई है लेकिन असम में मुसलमानों की यह दर 3.16 और केरल में 2.33 है. विहिप नेता ने कहा कि उत्तर प्रदेश को ऐसी स्थिति में आने से बचना चाहिए.

(पीटीआई-भाषा)

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