हैदराबाद : शास्त्रों में अतिथिशाला को आजकल ड्राइंग रूम कहा जाता है. ड्राइंग रूम में मेजबान को आगंतुक की अपेक्षा दक्षिण स्थान में बैठना चाहिए. मेजबान को चाहिए कि उसके मकान से उत्तर-दक्षिण की ओर जाने वाली देशांतर रेखाओं का मार्ग किस कोण से गुजर रहा है, उसे उन रेखाओं के समानांतर उत्तरमुखी होकर बैठना चाहिए. इस दिशा में देखते हुए बैठने से मेजबान को मनोवैज्ञानिक लाभ होता है. एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण कार्य यह करना चाहिए कि ड्राइंग रूम के प्रवेश द्वार से ठीक सामने की दीवार पर आदमी की ऊंचाई से अधिक ऊंचाई पर अत्यंत चित्ताकर्षक तस्वीर टांगनी चाहिए, जिस पर बरबस ही दृष्टि अटक जाए. वह चित्र प्राकृतिक दृश्यों का, बच्चे का, किसी सुन्दर स्त्री का या किसी लोकप्रिय आराध्यदेव का हो सकता है. शौर्य प्रदर्शन या हिंसा प्रदर्शन वाले विषयवस्तु के चित्र दीवार पर नहीं होने चाहिए. चित्र वही सार्थक होते हैं, जिन पर नजर पड़ने के बाद कोमल भावनाओं का उदय हो.
ड्राइंग रूम में रौद्र, वीभत्स, रोदन और आक्रांत मुद्राओं के चित्र नहीं होने चाहिए. देवताओं के चित्र या मूर्तियों की उपस्थिति मेहमान के मन में ड्राइंग रूम के प्रति सम्मान उत्पन्न करती है. ड्राइंग रूम में विषम कोण नहीं होना चाहिए. यहां से सीढ़ियों का निकास उचित नहीं माना गया है. ड्राइंग रूम में से स्तम्भ योजना भी उचित नहीं मानी गई है. एक ड्राइंग रूम की श्रेष्ठ स्थिति वह है, जिसमें मेहमान गृह प्रवेश के बाद केवल कुछ कदम चलकर ही पहुंच सके और वहीं से प्रस्थान भी कर सके. ऐसे ड्राइंग रूम में फर्नीचर ऐसा नहीं होना चाहिए, जो कि नुकीला हो, टेढ़ा-मेढ़ा हो. सोफे में ऐसे फोम का इस्तेमाल नहीं हो, जिसका घनत्व इतना कम हो जिसमें आगंतुक के बैठते ही वह अनुमान से अधिक सोफे में घंस जाए. सोफे की ऊंचाई व्यक्ति के घुटनों की स्टेंडर्ड ऊंचाई को ध्यान में रखकर बनाया जाना चाहिए, यह 18’ से 20’ तक हो सकती है. नीचा सोफा या अधिक ऊंचा सोफा मेहमान में असहज होने की भावना को जन्म देते हैं, जो कि भावी वार्तालाप को प्रभावित कर सकता है.
ड्राइंग रूम का रसोई से निकट सम्बन्ध होना चाहिए. रसोई से ड्राइंग रूम तक पहुंचने के लिए अधिक दूरी अच्छी नहीं मानी गई है, डाइनिंग रूम ड्राइंग रूम ईशान कोण में हो सकता है, परन्तु प्राचीन शास्त्रों में भोजन स्थान पश्चिम दिशा मध्य में बताया गया है. शास्त्रकारों का मूल उद्देश्य भोजन करने वाले व्यक्ति को बहिर्मुखी बनाना था, जिससे कि वह भोजन के समय शर्म त्यागकर भरपूर भोजन करें.
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तीखे रंग का फर्नीचर और फर्नीचर पर ढके जाने वाले वस्त्र आंखों को और मन को चुभते हैं. अतः कोशिश करें कि हल्के रंगों के सोफा कवर इत्यादि काम में लें. बहुत अधिक सजाने वाली वस्तुएं या दीवार पर बहुत अधिक चित्र ड्राइंग रूम में नहीं हों. यदि ड्राइंग रूम छोटा है तो दीवार के बीचों-बीच द्वार उचित नहीं मना जाता.
लेखक - पंडित सतीश शर्मा (सुप्रसिद्ध वास्तुशास्त्री)
(ईमेल - satishsharma54@gmail.com)