वाराणसी: काशी में तीन दिनों तक संस्कृति संसद के आयोजन के साथ ही रविवार को कार्यक्रम का अंतिम दिन था. देश भर से 450 जिलों से आए 1200 से ज्यादा संतों ने तीन दिनों तक सनातन संस्कृति परंपरा, वेद योग और सनातन धर्म को लेकर गहन मंथन किया है. इस मंथन के दौरान एक तरफ जहां हर दिन अलग-अलग सत्र के जरिए सनातनियों को जगाने का प्रयास किया गया तो वहीं सनातन धर्म पर हो रहे हमले और जिहादी आतंकवाद पर भी खुलकर चर्चा हुई है. इन सब के बीच आज अंतिम दिन संतों ने 9 ऐसे बिंदुओं को तैयार किया, जो लोकसभा चुनाव 2024 के साथ आने वाले समय में मध्य प्रदेश, राजस्थान और कई अन्य राज्यों में होने वाले चुनाव पर बड़ा असर डाल सकता है.
संतों का यह 9 बिंदुओं का धर्मादेश वर्तमान सरकारों के साथ ही विपक्ष के लिए भी महत्वपूर्ण हो जाएगा. क्योंकि, यहां हुई संतों की जुटान के बाद आज अखिल भारतीय संत समिति, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद, विश्व हिंदू परिषद और काशी विद्वत परिषद के संयुक्त फैसले के बाद यह साफ कर दिया गया है कि चाहे सरकारें हो या विपक्ष जो भी हमारी इन नौ बिंदुओं की मांगों को पूरा करेगा सनातन संस्कृति से जुड़ा हर व्यक्ति उसके साथ खड़ा रहेगा और जो समर्थन नहीं करेगा उसके लिए सनातनियों का समर्थन कहीं से नहीं होगा. यानी आगामी विधानसभा चुनाव के साथ 2024 के लोकसभा चुनाव में संतों का यह आयोजन बड़ी भूमिका निभाएगा.
तीन दिनों तक हुए आयोजन के बाद आज वाराणसी में संयुक्त प्रेस वार्ता करते हुए विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार, काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी, अखिल भारतीय संत समिति के अध्यक्ष जगतगुरु अविचल देवाचार्य, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्री महंत रवींद्र पुरी और अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जितेन्द्रानंद सरस्वती ने तीन दिनों तक हुए इस आयोजन के बाद किए गए मंथन से निकले नतीजे के बारे में विस्तार से बताया.
उन्होंने बताया कि सनातन हिंदू संस्कृति के पांच प्रमुख संगठनों के अलावा देशभर से जुटे 1500 संतों और महामंडलेश्वरों के अतिरिक्त 127 संप्रदायों के प्रमुखों ने व्यापक विचार-विमर्श किया. इसके बाद आने वाले विधानसभा चुनाव जो कई राज्यों में होने वाले हैं और 2024 के लोकसभा चुनाव में सनातन हिंदू आकांक्षाओं और उम्मीद पर गहन मंथन होगा. यह निर्णय लिया गया कि इस गहन मंथन के बाद 9 सूत्रीय एक एजेंडा तैयार किया जा रहा है, जो सनातन संस्कृति के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. लगातार सनातन पर हो रहे हमले और सनातन को अब तक नजरअंदाज करने वाले दलों के लिए भी यह बड़ा मौका है, ताकि यह ना लगे कि संत समुदाय किसी एक पार्टी विशेष के साथ है. संतों का कहना है हम खुला मौका दे रहे हैं हर राजनीतिक दल को. जो हमारी मांगों को मानेगा, हम उसके साथ खड़े रहेंगे.
ईटीवी भारत ने विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्री महंत रवींद्र पुरी और काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रोफेसर रामनारायण द्विवेदी से बात की. उन्होंने स्पष्ट तौर पर अपनी बातों को रखते हुए कहा कि हमने 9 मांगें की हैं. इनमें सबसे महत्वपूर्ण पहला बिंदु है. इसमें भारतीय संविधान की धारा 30 में संशोधन करते हुए प्रत्येक संप्रदाय को शैक्षिक और सांस्कृतिक संस्थाओं को स्थापित एवं संचालित करने के समान अधिकार दिए जाने की मांग की गई है. क्योंकि, जब मदरसे में उनके अनुसार पढ़ाई और तालीम होती है तो हम अपनी वैदिक और पौराणिक शिक्षा को क्यों नहीं अपने गुरुकुल में पढ़ सकते हैं. गुरुकुल की स्थापना फिर से हो यही हमारी मांग है.
संस्कृति संसद की मांगें
- भारतीय संविधान की धारा 30 में संशोधन कर भारत के प्रत्येक सम्प्रदाय को शैक्षिक और सांस्कृतिक संस्थानों को स्थापित एवं संचालित करने के समान अधिकार दिए जाएं. प्रत्येक शिक्षण संस्थाओं को अपने पाठ्यक्रम निर्माण और संचालन की स्वायत्तता अनिवार्य रूप से मिलनी चाहिए.
- वक्फ एक्ट 1995 को निरस्त किया जाए अथवा उसमें वक्फ बोर्ड द्वारा किसी भी संपत्ति को वक्फ सम्पत्ति घोषित करने का अधिकार वापस लिया जाए. संपत्ति का अधिकार और प्रक्रिया सब सम्प्रदायों के जैसी ही और उतनी ही मुसलमानों को भी रहे.
- संघीय कानून बनाकर हिंदू मंदिरों को हिंदू समाज को वापस दिया जाए. पर्यटन मंत्रालय में से अलग तीर्थाटन मंत्रालय बनाकर तीर्थ स्थलों का शास्त्रीय मान्यताओं को ध्यान में रखते हुए विकास कराया जाए. तीर्थ स्थलों की शुद्धता और वहां के पर्यावरण के संरक्षण के लिए आवश्यक है.
- लव जिहाद और अवैध धर्मांतरण को रोकने के लिए प्रभावी कानून बनाए जाए. यह इस समय की अनिवार्य आवश्यकता है. लव जिहाद और उसके माध्यम से होने वाले धर्मांतरण के साथ सबसे बड़ी समस्या हिंसा की उत्पन्न हो चुकी है. हजारों मामले सामने आ चुके हैं. इनमें हिंदू बेटियों को धर्मांतरित कर विवाह किया गया और कुछ ही दिनों में उनकी निर्मम हत्या कर दी गई. किसी भी दशा में धर्मांतरण करके विवाह की अनुमति नहीं होनी चाहिए. केवल विवाह के लिए धर्मांतरण रोकने के लिए प्रभावी कानून बनाया जाए.
- भारत का प्रत्येक नागरिक बराबर है, देश में समान नागरिक संहिता लागू की जाए. एक राष्ट्र, एक नागरिकता एक कानून लागू हो.
- धर्मांतरित लोगों को जनजाति आरक्षण के दायरे से बाहर किया जाए, जो भी लोग किसी भी कारण से धर्मांतरित हुए या हो रहे हैं, उन्हें किसी भी दशा में आरक्षण के दायरे में नहीं रखा जा सकता. यह स्थिति नहीं आनी चाहिए. इसके लिए कानून बने.
- अन्य मतावलंबियों की तरह मंदिर के पुजारी को मानदेय दिया जाए. प्रत्येक मंदिर में पूजा, आरती और धार्मिक कार्यों के लिए नियुक्त प्रत्येक पुजारियों को उसके भरण-पोषण के लिए सम्मानजनक राशि समय से देना सुनिश्चित किया जाए.
- संत सेवा प्राधिकरण बनाकर संतों की भौतिक कठिनाइयों का समाधान किया जाए. संत समाज भारत की संस्कृति सामाजिक शक्ति और एकता का आधार है. राष्ट्र सेवा का सबसे बड़ा दायित्व संतों पर है. भारत की संस्कृति दर्शन और आध्यात्मिक के साथ राष्ट्र और समाज को एक सूत्र में बांधे रखने का दायित्व संत निभा रहे हैं. संतों की सुरक्षा उनकी देखभाल और आवश्यकता की पूर्ति के साथ ही कागजी कार्यवाही में हो रही दिक्कतों के साथ ही अन्य परेशानियों के निवारण के लिए केंद्र और राज्यों के स्तर पर संत सेवा प्राधिकरण की स्थापना आवश्यक है.
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