बक्सर : शहनाई का पर्याय या यूं कहें शहनाई के जादूगर भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां अपने ही जिले में उपेक्षित हैं. प्रशासनिक अधिकारियों एवं जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के कारण निधन के 15 साल बाद भी उनके यादों को संजोने के लिए कोई पहल नहीं हुई. आने वाली पीढ़ियां अब उस्ताद बिस्मिल्लाह खां को किताबों के पन्नों में ही पढ़ा करेंगी. आधुनिकता के चकाचौंध में अब जिला प्रशासन के अधिकारियों को भी वे याद नहीं रहे.
उस्ताद बिस्मिल्लाह खां का जन्म आज ही के दिन 21 मार्च 1916 के जिला के डुमराव शहर के ठठेरी बाजार में बचई मियां के घर हुआ था. जिन्होंने शहनाई वादन के बदौलत पूरे विश्व के पटल पर डुमरांव का नाम रोशन किया. लेकिन वक्त के साथ भारत रत्न से सम्मनित यह अनमोल रत्न अब अपने ही घर में गुम हो गया है.
पूरे जिले में नहीं है कोई प्रतीक चिन्ह
डुमराव की गलियों से लेकर देश के चारों दिशाओं में अपने शहनाई की धुन से लोगों को भाव-विभोर कर देने वाले भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां अपने ही जन्म भूमि पर उपेक्षित हैं. 21 अगस्त 2006 में निधन होने के 15 साल बाद भी उनके यादों को संजोकर रखने के लिए अब तक ना तो जिला प्रशासन के अधिकारियों द्वारा और ना ही जनप्रतिनिधियों द्वारा कोई कदम उठाया गया. आज पूरे जिले में ना तो उनके नाम पर कहीं कोई भवन है और ना ही संग्रहालय. ना ही स्कूल, कॉलेज या संगीत अकादमी भी नहीं है.
किताबों के पन्नों में ही पढ़ पाएगी आने वाली पीढ़ी
चार साल पहले केंद्र सरकार की पहल पर उस्ताद बिस्मिल्लाह खां का जन्म शताब्दी समारोह डुमराव में ही मनाया गया था. उस समय कृषि महाविद्यालय के सभागार से कई घोषणाएं की गईं. लेकिन अब तक इस अनमोल धरोहर के यादों को बचाकर रखने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया.
जुमला साबित हुआ मंत्री का वादा
2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले वर्ष 2018 में केंद्रीय स्वास्थ्य परिवार कल्याण राज्य मंत्री सह स्थानीय सांसद अश्विनी कुमार चौबे ने भी उस्ताद बिस्मिल्लाह खां के यादों को संजोकर रखने के लिए कई घोषणाएं की थीं. चुनावी लाभ लेने के लिए डुमराव स्टेशन के टिकट घर की दीवार पर शहनाई बजाते हुए चित्र बनवाया गया. लेकिन चुनाव जीतने के साथ ही सारे वादे चुनावी घोषणा बनकर रह गए.
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बिस्मिल्लाह खां की पुस्तैनी जमीन पर अतिक्रमण
जिस अनुमंडल में उस्ताद बिस्मिल्लाह खां ने जन्म लिया, उस अनुमंडल के अधिकांश बड़े अधिकारियों को उनके पैतृक आवास का रास्ता भी मालूम नहीं है. प्रशासनिक अधिकारियों के इस उदासीनता के कारण स्थानीय लोगों ने धीरे-धीरे उनकी पुस्तैनी आवास की जमीन पर कब्जा कर लिया. जिसके विरुद्ध सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कई बार अधिकारियों से लिखित शिकायत की. लेकिन किसी ने भी उसपर ध्यान नहीं दिया.
क्या कहते हैं स्थानीय लोग
स्थानीय लोगों ने बताया कि आज भी हम सब देश के किसी भी कोने में बड़े गर्व से कहते हैं कि उस्ताद बिस्मिल्लाह खां मेरे ही शहर के रहने वाले थे. लोग बड़े ही सम्मान की नजर से देखते हैं. लेकिन आज अपने ही घर में उस्ताद बिस्मिल्लाह खां उपेक्षित हैं. लंबे समय से उनके पुस्तैनी जमीन पर संगीत अकादमी खोलने की मांग प्रशासन एवं जनप्रतिनधियों से की जा रही है. लेकिन अब तक किसी ने ध्यान नहीं दिया.
गौरतलब है कि लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव के दौरान हर बार कई वादे जनप्रतिनधियों द्वारा किए जाते हैं. लेकिन चुनाव खत्म होने के साथ ही वह वादे भी खत्म हो जाते हैं. धीरे-धीरे अब भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां किताबों के पन्नों में ही सिमटते जा रहे हैं.