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उपछाया चंद्रग्रहण में लोगों को हुआ मटमैले चांद का दीदार, अद्भुत दिखी तस्वीर - उपछाया चंद्रग्रहण

गोरखपुर में लोगों ने चंद्रग्रहण का अद्भुत नजारा वीर बहादुर सिंह नक्षत्रशाला के जरिए देखा. देखने में यह तस्वीर मटमैली नजर आई. इस घटना को रिकॉड करने के लिए वैज्ञानिक फोटोमाट्री मैथड का प्रयोग करते हैं.

उपछाया चंद्रग्रहण
उपछाया चंद्रग्रहण
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Published : May 6, 2023, 8:55 AM IST

गोरखपुर में लोगों ने देखा उपछाया चंद्रग्रहण

गोरखपुर: 5 मई की रात लगे उपछाया चंद्रग्रहण के दौरान सफेद दिखने वाले चांद की तस्वीर मटमैली (धुंधली) नजर आई. हालांकि चंद्रग्रहण के नाम पर इसे देखने वालों में उत्सुकता रही. इसका कोई खास असर भारत में नहीं था. फिर भी चंद्रग्रहण में होने वाली स्थितियों को देखने के लिए गोरखपुर के वीर बहादुर सिंह नक्षत्रशाला में लोग आए और खगोल विज्ञानी अमरपाल सिंह के नेतृत्व में टेलिस्कोप के जरिए इस खगोलीय घटना को देखने का आनंद उठाया. बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर वीर बहादुर सिंह नक्षत्रशाला में लोगों ने उपछाया चंद्रग्रहण का दीदार किया. इस दौरान मटमैले चांद की खूबसूरती को भी देखा. उपछाया चंद्रग्रहण में चंद्रमा के प्रकाश में नग्न आंखों से देखने पर कोई अंतर दिखाई नहीं देता. इस घटना को रिकॉर्ड करने के लिए वैज्ञानिक फोटोमेट्री मैथड का प्रयोग करते हैं.

भारत वर्ष में यह उपछाया चंद्रग्रहण 5 मई को रात्रि में 8.45 से 1.02 बजे तक दिखाई दिया. इसे ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, साउथ/ईस्ट अमेरिका, यूरोप और सम्पूर्ण एशिया में देखा गया. खगोल विज्ञानी अमरपाल ने बताया कि अगला सूर्य ग्रहण 14 अक्टूबर को और चंद्र ग्रहण 29 अक्टूबर 2023 को आंशिक होगा. अगला पेनंबरल चंद्र ग्रहण 24-25 मार्च 2024 और 20-21 फरवरी 2027 को घटित होगा. उपछाया चंद्रग्रहण को वीर बहादुर सिंह नक्षत्रशाला द्वारा विशेष दूरबीन के माध्यम से लोगों को अवलोकन कराया गया.

उन्होंने बताया कि चंद्रग्रहण में सूर्य एवं चंद्रमा के मध्य पृथ्वी आ जाती है. इसके फलस्वरूप पृथ्वी की छाया पूर्णिमा के दिन चंद्रमा पर पड़ती है, जिससे चंद्रमा की रोशनी क्षीण होती नजर आती है. प्रकाश के पृथ्वी के वायुमंडल से प्रकीर्णन के कारण सुर्ख लाल रंग का चंद्रमा भी नजर आता है. सूर्य पृथ्वी से 109 गुना बड़ा है और गोल है. इसलिए पृथ्वी की परछाई दो शंकु बनाती है. इस प्रकार पृथ्वी की छाया भी दो प्रकार की होती है. पहली अंब्रा या मुख्य छाया या प्रच्छाया और दूसरी पेनंब्रा या उपछाया. पृथ्वी की मुख्य छाया शंकु के आकार का अंधकार मय क्षेत्र होता है. छाया के अंदर और सबसे गाढ़ा भाग है, जहां प्रकाश स्रोत पूरी तरह से उस पिंड या वस्तु से अवरुद्ध है. यदि इस छाया के संपर्क में चंद्रमा आता है तो आंशिक या पूर्ण चंद्रग्रहण लगता है.

पेनंब्रल या उपछाया ( penumbra) वह क्षेत्र है, जिसमें प्रकाश स्रोत केवल आंशिक रूप से ढका होता है. इसमें प्रकाश छितराया होता है. इसका क्षेत्रफल अम्ब्रा के क्षेत्रफल से बड़ा होता है. पेनंब्रा अम्ब्रा को चारों और से घेरा होता है. हल्की छाया वाला क्षेत्र पेनंब्रा क्षेत्र होता है. ग्रहण लगते समय चंद्रमा हमेशा पश्चिम की ओर से पृथ्वी की प्रच्छाया (Umbra) में प्रवेश करता है. इसलिए सबसे पहले इसके पूर्वी भाग में ग्रहण लगता है और यह ग्रहण सरकते हुए पूर्व की ओर से निकल कर बाहर चला जाता है. उपछाया चंद्रग्रहण में चंद्रमा के प्रकाश में नग्न आंखों से कोई अंतर दिखाई नहीं देता. इस घटना को रिकॉर्ड करने के लिए वैज्ञानिक फोटोमेट्री मैथड का प्रयोग करते है और प्रकाश के छोटे-छोटे अणुओं या फोटोंस की संख्या ग्रहण से पूर्व तथा ग्रहण के समय को काउंट कर, तुलनाकर के ये बताते हैं कि ग्रहण में कितने प्रतिशत प्रकाश कम हुआ है. चूंकि प्रकाश कम होने का प्रतिशत बहुत ही ज्यादा कम होता है. अतः जन सामान्य को नग्न आंखों से चंद्रमा के प्रकाश में कोई परिवर्तन नहीं दिखाई देता है.

यह भी पढ़ें: Horoscope 6 May 2023 : कैसा रहेगा आज का दिन,जानिए अपना आज का राशिफल

गोरखपुर में लोगों ने देखा उपछाया चंद्रग्रहण

गोरखपुर: 5 मई की रात लगे उपछाया चंद्रग्रहण के दौरान सफेद दिखने वाले चांद की तस्वीर मटमैली (धुंधली) नजर आई. हालांकि चंद्रग्रहण के नाम पर इसे देखने वालों में उत्सुकता रही. इसका कोई खास असर भारत में नहीं था. फिर भी चंद्रग्रहण में होने वाली स्थितियों को देखने के लिए गोरखपुर के वीर बहादुर सिंह नक्षत्रशाला में लोग आए और खगोल विज्ञानी अमरपाल सिंह के नेतृत्व में टेलिस्कोप के जरिए इस खगोलीय घटना को देखने का आनंद उठाया. बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर वीर बहादुर सिंह नक्षत्रशाला में लोगों ने उपछाया चंद्रग्रहण का दीदार किया. इस दौरान मटमैले चांद की खूबसूरती को भी देखा. उपछाया चंद्रग्रहण में चंद्रमा के प्रकाश में नग्न आंखों से देखने पर कोई अंतर दिखाई नहीं देता. इस घटना को रिकॉर्ड करने के लिए वैज्ञानिक फोटोमेट्री मैथड का प्रयोग करते हैं.

भारत वर्ष में यह उपछाया चंद्रग्रहण 5 मई को रात्रि में 8.45 से 1.02 बजे तक दिखाई दिया. इसे ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, साउथ/ईस्ट अमेरिका, यूरोप और सम्पूर्ण एशिया में देखा गया. खगोल विज्ञानी अमरपाल ने बताया कि अगला सूर्य ग्रहण 14 अक्टूबर को और चंद्र ग्रहण 29 अक्टूबर 2023 को आंशिक होगा. अगला पेनंबरल चंद्र ग्रहण 24-25 मार्च 2024 और 20-21 फरवरी 2027 को घटित होगा. उपछाया चंद्रग्रहण को वीर बहादुर सिंह नक्षत्रशाला द्वारा विशेष दूरबीन के माध्यम से लोगों को अवलोकन कराया गया.

उन्होंने बताया कि चंद्रग्रहण में सूर्य एवं चंद्रमा के मध्य पृथ्वी आ जाती है. इसके फलस्वरूप पृथ्वी की छाया पूर्णिमा के दिन चंद्रमा पर पड़ती है, जिससे चंद्रमा की रोशनी क्षीण होती नजर आती है. प्रकाश के पृथ्वी के वायुमंडल से प्रकीर्णन के कारण सुर्ख लाल रंग का चंद्रमा भी नजर आता है. सूर्य पृथ्वी से 109 गुना बड़ा है और गोल है. इसलिए पृथ्वी की परछाई दो शंकु बनाती है. इस प्रकार पृथ्वी की छाया भी दो प्रकार की होती है. पहली अंब्रा या मुख्य छाया या प्रच्छाया और दूसरी पेनंब्रा या उपछाया. पृथ्वी की मुख्य छाया शंकु के आकार का अंधकार मय क्षेत्र होता है. छाया के अंदर और सबसे गाढ़ा भाग है, जहां प्रकाश स्रोत पूरी तरह से उस पिंड या वस्तु से अवरुद्ध है. यदि इस छाया के संपर्क में चंद्रमा आता है तो आंशिक या पूर्ण चंद्रग्रहण लगता है.

पेनंब्रल या उपछाया ( penumbra) वह क्षेत्र है, जिसमें प्रकाश स्रोत केवल आंशिक रूप से ढका होता है. इसमें प्रकाश छितराया होता है. इसका क्षेत्रफल अम्ब्रा के क्षेत्रफल से बड़ा होता है. पेनंब्रा अम्ब्रा को चारों और से घेरा होता है. हल्की छाया वाला क्षेत्र पेनंब्रा क्षेत्र होता है. ग्रहण लगते समय चंद्रमा हमेशा पश्चिम की ओर से पृथ्वी की प्रच्छाया (Umbra) में प्रवेश करता है. इसलिए सबसे पहले इसके पूर्वी भाग में ग्रहण लगता है और यह ग्रहण सरकते हुए पूर्व की ओर से निकल कर बाहर चला जाता है. उपछाया चंद्रग्रहण में चंद्रमा के प्रकाश में नग्न आंखों से कोई अंतर दिखाई नहीं देता. इस घटना को रिकॉर्ड करने के लिए वैज्ञानिक फोटोमेट्री मैथड का प्रयोग करते है और प्रकाश के छोटे-छोटे अणुओं या फोटोंस की संख्या ग्रहण से पूर्व तथा ग्रहण के समय को काउंट कर, तुलनाकर के ये बताते हैं कि ग्रहण में कितने प्रतिशत प्रकाश कम हुआ है. चूंकि प्रकाश कम होने का प्रतिशत बहुत ही ज्यादा कम होता है. अतः जन सामान्य को नग्न आंखों से चंद्रमा के प्रकाश में कोई परिवर्तन नहीं दिखाई देता है.

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