लखनऊ : इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने लखीमपुर में वर्ष 2000 में हुए प्रभात गुप्ता हत्याकांड में 2004 में विचारण अदालत द्वारा केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा उर्फ टेनी को बरी करने के फैसले पर शुक्रवार को मुहर लगा दी. कोर्ट ने कहा कि विचारण अदालत ने सारे सबूतों और तथ्यों पर पूरी तरह गौर करने के बाद आरेापितों को बरी किया था और उक्त फैसले में कोई खामी नहीं है. यह फैसला जस्टिस एआर मसूदी एवं जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की पीठ ने राज्य सरकार की ओर से दाखिल आपराधिक अपील एवं पीड़ित के परिवार की ओर से दाखिल रिवीजन याचिका को खारिज करते हुए पारित किया. कोर्ट ने गत 21 फरवरी केा सुनवाई पूरी कर अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था. हाईकोर्ट ने भी केस के सारे तथ्यों पर विचार करने के बाद कहा कि अभियेाजन यह साबित करने में पूरी तरह विफल रहा है कि आरेापितों ने ही घटना कारित किया था.
प्रभात गुप्ता उर्फ राजू की हत्या हो गयी थी. जिसकी प्राथमिकी उसके पिता संतोष गुप्ता ने लखीमपुर के तिकुनिया थाने पर आठ जुलाई 2000 को दर्ज कराई थी. विवेचना के दौरान टेनी एवं अन्य अपीलार्थियों का नाम प्रकाश में आया. केस चला और सत्र अदालत ने 2004 में टेनी और अन्य अभियुक्तों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया था. इसी फैसले के खिलाफ राज्य सरकार ने अपील किया था और दूसरी ओर पीड़ित के परिवार ने भी रिवीजन दाखिल किया था. हाईकोर्ट ने शुक्रवार केा दोनों याचिकाएं खारिज करते हुए टेनी और अन्य आरोपितों को बरी करने के फैसले पर अपनी भी मुहर लगा दी.
बता दें, वर्ष 2000 में लखीमपुर खीरी में प्रभात गुप्ता की सरे बाजार उस वक्त गोली मारकर हत्या हुई थी, जब वे घर लौट रहे थे. उस वक्त प्रभात समाजवादी पार्टी की यूथ विंग का सदस्य थे, जबकि टेनी बीजेपी से जुड़े थे. एफआईआर में अजय मिश्र टेनी समेत चार लोगों को आरोपी बनाया गया था. ट्रायल कोर्ट ने सबूतों के अभाव में 2004 में टेनी को बरी कर दिया था. ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ 2004 में ही राज्य सरकार ने हाई कोर्ट में अपील दाखिल की थी. मामले में 21 फरवरी को सुनवाई के बाद हाईकोर्ट लखनऊ बेंच ने फैसला सुरक्षित रखा था. हालांकि 10 नवंबर 2022 को भी कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा था, लेकिन सुनवाई करने वाली बेंच ने कुछ बिंदुओं को और स्पष्ट करने के लिए दोबारा सुनवाई की थी. इस मामले में सरकार की तरफ से दलील दी गई कि पंचायत चुनाव को लेकर टेनी का छात्र नेता प्रभात से विवाद चल रहा था.
सरकार की तरफ से आरोप लगाया गया कि प्रभात को टेनी और दूसरे आरोपी सुभाष मामा ने भी गोली मारी थी. घटना के चश्मदीद गवाह भी थे, जिनकी गवाही को ट्रायल कोर्ट ने नजरअंदाज किया. इस पर बचाव पक्ष की दलील थी कि कथित चश्मदीद की गवाही को ट्रायल कोर्ट ने भरोसे के लायक नहीं माना था, क्योंकि जहां घटना हुई चश्मदीद वहां पर एक दुकान का कर्मचारी बताया गया. जबकि घटना के दिन वह दुकान खुली ही नहीं थी. चश्मदीद की मौके पर मौजूदगी को संदिग्ध माना गया था. बचाव पक्ष ने कहा कि अजय मिश्र टेनी को बरी करने का ट्रॉयल कोर्ट का फैसला उचित था.