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बालोद पहुंचे केंद्रीय राज्यमंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते, कंगला मांझी की शहादत को किया नमन - गांव बाघमार

Tribute to martyrdom of Manjhi स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कंगला मांझी की पुण्यतिथि पर हर साल कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. इस साल केंद्रीय ग्रामीण विकास एवं इस्पात राज्यमंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते मांझी सरकार के बीच पहुंचे. फग्गन सिंह कुलस्ते ने कंगला मांझी को नमन किया. उन्होंने मांझी और उनकी संस्कृति की तारीफ की.

कंगला मांझी की शहादत नमन
कंगला मांझी की शहादत नमन
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Published : Dec 7, 2022, 12:21 PM IST

Updated : Dec 8, 2022, 7:13 PM IST

बालोद: बालोद जिले के डौंडीलोहारा विकासखंड में एक छोटा सा गांव बाघमार है, जो कि पूरे देश में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कंगला मांझी और उनके सरकार के कारण विख्यात है. जिसके संस्थापक हीरासिंह देव उर्फ कंगला मांझी थे. उनकी पुण्यतिथि पर हर साल कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. इस साल केंद्रीय ग्रामीण विकास एवं इस्पात राज्यमंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते मांझी सरकार के बीच पहुंचे. फग्गन सिंह कुलस्ते ने कंगला मांझी को नमन किया. Tribute to martyrdom of Manjhi

बालोद में कंगला मांझी की शहादत को किया नमन

राजमाता फुलवा देवी कांगे ने कहा कि "मांझी का नाम जो दिया गया है उसे समाज और जनता चुनती है." मांझी सरकार का मुख्यालय नई दिल्ली में है. बालोद जिले की गांव बाघमार में पूरे देश भर के मांझी के अनुनायी पहुंचे हुए हैं और इनकी एक अपनी संस्कृति है, अपनी एक विचारधारा है, जो कि देशभक्ति से ओतप्रोत है.



मांझी की सेना और उसके अनुशासन की चर्चा जोरों पर: केंद्रीय ग्रामीण विकास एवं इस्पात राज्यमंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने कहा कि "जो भी देश सेवा या राष्ट्र सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया, उनके परिवार को मैं बधाई देता हूं. जिन्होंने कंगला माझी के सम्मान में जीवन कुर्बान किए, वो काबिले तारीफ है. उन्होंने कहा कि "मांझी ने आदिवासी समाज और जल, जंगल, जमीन के लिए लड़ाई लड़ी. अपनी एक अलग सेना बनाई और उनका अनुशासन देखते ही बन रहा है."



मूल संस्कृति की दिखी झलक: केंद्रीय इस्पात एवं ग्रामीण विकास राज्यमंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते आयोजन में शामिल हुए. उन्होंने मांझी और उनकी संस्कृति की तारीफ करते हुए कहा कि "दरअसल आदिवासियों की जो मूल संस्कृति है, देवी देवता है, उनकी झलक आज देखने को मिली है. इनकी जो सेना है, उसमें अनुशासन एवं देश भक्ति कूट-कूट कर भरी हुई है. निस्वार्थ भाव से स्वयं मेहनत करके शिक्षा की ओर समाज को अग्रसर कर रहे हैं. मांझी की सेना निस्वार्थ रूप से काम कर रही हैं. यहां पर छत्तीसगढ़ ही नहीं अपितु देश भर के आदिवासी जुट रहे हैं और मांझी के विचारों को आगे बढ़ा रहे हैं."

यह भी पढ़ें: बालोद के एक गांव ने की शराबबंदी, बेचने या खरीदने पर लगेगा जुर्माना


विचारधारा से प्रेरित होकर सबकुछ न्यौछावर किया: मांझी सेना के निरीक्षक के रूप में कार्य कर रहे महाराष्ट्र के श्रीराम सूरी ने कहा कि "कभी भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था हम मांझी के दिखाए हुए मार्ग पर चल रहे हैं शिक्षा स्वास्थ्य और आदिवासी समाज को एकजुट करना है और वापस भारत देश को सोने की चिड़िया के रूप में हम देखना चाहते हैं. इसीलिए प्रत्येक वर्ष हम मांझी की शहादत को नमन करने पहुंचते हैं.



तीन दिनों तक चलेगा कार्यक्रम: जंगल के बीच स्थित मांझी धाम में तीन दिनों तक कार्यक्रम आयोजित होता है. बालोद जिला के वनांचल मे स्थित ग्राम बाधमार में इन दिनों मांझी सरकार के सिपाहियों का जमावाड़ा है. हर साल 5 दिसम्बर को देश के विभिन्न हिस्सों से यहां हजारों की तादाद में सिपाही अपने सरकार के संस्थापक हीरासिंह देव उर्फ कंगला मांझी को श्रंद्वाजलि देने पहुंचे हुए हैं.



आजादी की लड़ाई में दिया महत्वपूर्ण योगदान: छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के रहने वाले गोंड आदिवासी हीरासिंह देव कांगे ऊर्फ कंगला मांझी ने आज़ादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दिया था. महात्मा गांधी और सुभाषचंद्र बोस से मुलाकात के बाद उन्होंने आदिवासियों को एकत्र करना शुरू किया. जिसके बाद गांधीवादी तरीके से बस्तर के इलाके में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अपनी समानांतर सरकार बनाने की घोषणा कर दी. अंग्रेज इस देश से चले गए, आज़ादी मिली, तब यह सरकार खत्म हो जानी चाहिए थी, लेकिन ऐसा क्यों नहीं हुआ. इस बारे में कंगला मांझी के बेटे कुंभदेव कांगे बताते हैं.

स्वतंत्र भारत में बनी कंगला मांझी सरकार: कंगला मांझी के बेटे कुंभदेव कांगे कहते हैं, 'आज़ादी के बाद आदिवासियों को हाशिये पर डाल दिया गया. बराबरी की बात तो छोड़िए, उनका हक भी उन्हें नहीं मिला. ऐसी परिस्थिति में आदिवासियों के अधिकारों की लड़ाई को जारी रखने के लिए 1951 में कंगला मांझी जी ने 'मांझी अंतरराष्ट्रीय समाजवाद आदिवासी किसान सैनिक संस्था' की नींव रखी. इस तरह स्वतंत्र भारत में कंगला मांझी सरकार बनी.

बालोद: बालोद जिले के डौंडीलोहारा विकासखंड में एक छोटा सा गांव बाघमार है, जो कि पूरे देश में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कंगला मांझी और उनके सरकार के कारण विख्यात है. जिसके संस्थापक हीरासिंह देव उर्फ कंगला मांझी थे. उनकी पुण्यतिथि पर हर साल कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. इस साल केंद्रीय ग्रामीण विकास एवं इस्पात राज्यमंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते मांझी सरकार के बीच पहुंचे. फग्गन सिंह कुलस्ते ने कंगला मांझी को नमन किया. Tribute to martyrdom of Manjhi

बालोद में कंगला मांझी की शहादत को किया नमन

राजमाता फुलवा देवी कांगे ने कहा कि "मांझी का नाम जो दिया गया है उसे समाज और जनता चुनती है." मांझी सरकार का मुख्यालय नई दिल्ली में है. बालोद जिले की गांव बाघमार में पूरे देश भर के मांझी के अनुनायी पहुंचे हुए हैं और इनकी एक अपनी संस्कृति है, अपनी एक विचारधारा है, जो कि देशभक्ति से ओतप्रोत है.



मांझी की सेना और उसके अनुशासन की चर्चा जोरों पर: केंद्रीय ग्रामीण विकास एवं इस्पात राज्यमंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने कहा कि "जो भी देश सेवा या राष्ट्र सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया, उनके परिवार को मैं बधाई देता हूं. जिन्होंने कंगला माझी के सम्मान में जीवन कुर्बान किए, वो काबिले तारीफ है. उन्होंने कहा कि "मांझी ने आदिवासी समाज और जल, जंगल, जमीन के लिए लड़ाई लड़ी. अपनी एक अलग सेना बनाई और उनका अनुशासन देखते ही बन रहा है."



मूल संस्कृति की दिखी झलक: केंद्रीय इस्पात एवं ग्रामीण विकास राज्यमंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते आयोजन में शामिल हुए. उन्होंने मांझी और उनकी संस्कृति की तारीफ करते हुए कहा कि "दरअसल आदिवासियों की जो मूल संस्कृति है, देवी देवता है, उनकी झलक आज देखने को मिली है. इनकी जो सेना है, उसमें अनुशासन एवं देश भक्ति कूट-कूट कर भरी हुई है. निस्वार्थ भाव से स्वयं मेहनत करके शिक्षा की ओर समाज को अग्रसर कर रहे हैं. मांझी की सेना निस्वार्थ रूप से काम कर रही हैं. यहां पर छत्तीसगढ़ ही नहीं अपितु देश भर के आदिवासी जुट रहे हैं और मांझी के विचारों को आगे बढ़ा रहे हैं."

यह भी पढ़ें: बालोद के एक गांव ने की शराबबंदी, बेचने या खरीदने पर लगेगा जुर्माना


विचारधारा से प्रेरित होकर सबकुछ न्यौछावर किया: मांझी सेना के निरीक्षक के रूप में कार्य कर रहे महाराष्ट्र के श्रीराम सूरी ने कहा कि "कभी भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था हम मांझी के दिखाए हुए मार्ग पर चल रहे हैं शिक्षा स्वास्थ्य और आदिवासी समाज को एकजुट करना है और वापस भारत देश को सोने की चिड़िया के रूप में हम देखना चाहते हैं. इसीलिए प्रत्येक वर्ष हम मांझी की शहादत को नमन करने पहुंचते हैं.



तीन दिनों तक चलेगा कार्यक्रम: जंगल के बीच स्थित मांझी धाम में तीन दिनों तक कार्यक्रम आयोजित होता है. बालोद जिला के वनांचल मे स्थित ग्राम बाधमार में इन दिनों मांझी सरकार के सिपाहियों का जमावाड़ा है. हर साल 5 दिसम्बर को देश के विभिन्न हिस्सों से यहां हजारों की तादाद में सिपाही अपने सरकार के संस्थापक हीरासिंह देव उर्फ कंगला मांझी को श्रंद्वाजलि देने पहुंचे हुए हैं.



आजादी की लड़ाई में दिया महत्वपूर्ण योगदान: छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के रहने वाले गोंड आदिवासी हीरासिंह देव कांगे ऊर्फ कंगला मांझी ने आज़ादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दिया था. महात्मा गांधी और सुभाषचंद्र बोस से मुलाकात के बाद उन्होंने आदिवासियों को एकत्र करना शुरू किया. जिसके बाद गांधीवादी तरीके से बस्तर के इलाके में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अपनी समानांतर सरकार बनाने की घोषणा कर दी. अंग्रेज इस देश से चले गए, आज़ादी मिली, तब यह सरकार खत्म हो जानी चाहिए थी, लेकिन ऐसा क्यों नहीं हुआ. इस बारे में कंगला मांझी के बेटे कुंभदेव कांगे बताते हैं.

स्वतंत्र भारत में बनी कंगला मांझी सरकार: कंगला मांझी के बेटे कुंभदेव कांगे कहते हैं, 'आज़ादी के बाद आदिवासियों को हाशिये पर डाल दिया गया. बराबरी की बात तो छोड़िए, उनका हक भी उन्हें नहीं मिला. ऐसी परिस्थिति में आदिवासियों के अधिकारों की लड़ाई को जारी रखने के लिए 1951 में कंगला मांझी जी ने 'मांझी अंतरराष्ट्रीय समाजवाद आदिवासी किसान सैनिक संस्था' की नींव रखी. इस तरह स्वतंत्र भारत में कंगला मांझी सरकार बनी.

Last Updated : Dec 8, 2022, 7:13 PM IST
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