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यूनेस्को की रिपोर्ट में बंगाल के स्कूलों की दयनीय स्थिति हुई उजागर

यूनेस्को की एक रिपोर्ट में बंगाल के स्कूलों की दयनीय स्थिति सामने आई है. पश्चिम बंगाल में शिक्षकों के लिए 1 लाख से ज्यादा पद खाली हैं. पश्चिम बंगाल के लिए यह आंकड़ा 69 पर्सेंट है.

Bengal schools
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Published : Oct 17, 2021, 8:08 PM IST

कोलकाता : संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) की एक रिपोर्ट में पश्चिम बंगाल के कई राज्य में स्कूलों, ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में शिक्षकों के लिए 1 लाख से अधिक रिक्तियों के साथ स्कूलों की दयनीय स्थिति पर प्रकाश डाला गया है.

देश में स्कूली शिक्षा पर रिपोर्ट के अनुसार, प्राथमिक, उच्च प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालयों में कुल 1,10,000 रिक्तियों के साथ पश्चिम बंगाल तीसरे स्थान पर है.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन कुल रिक्तियों में से 69 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में हैं.

3,23,000 के साथ उत्तर प्रदेश और 2,20,000 रिक्तियों के साथ बिहार पहले और दूसरे स्थान पर है.

बंगाल के शिक्षा विभाग के सूत्रों ने कहा कि इस दयनीय स्थिति का संकेत पहली बार कुछ साल पहले स्पष्ट हुआ जब केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय ने राज्य के स्कूलों में छात्र-शिक्षक अनुपात पर कुछ प्रश्नों को आगे बढ़ाया.

नाम ना छापने की शर्त पर विभाग के एक अधिकारी ने कहा, उस समय, यह पता चला कि राज्य में विज्ञान स्ट्रीम में चार महत्वपूर्ण विषयों, गणित, भौतिकी, रसायन विज्ञान और जीव विज्ञान के लिए रिक्त शिक्षकों के पदों की संख्या पहले ही खतरनाक स्तर पर पहुंच गई थी. रिक्त शिक्षकों के पदों की संख्या गणित के लिए 3,123, भौतिकी के लिए 1,795, रसायन विज्ञान के लिए 1,787 और जीव विज्ञान के लिए 2,178 थी.

पढ़ें :- भारत को 11 लाख शिक्षकों की जरूरत है, एक लाख से अधिक स्कूलों को चला रहे हैं सिर्फ एक टीचर

समस्या और भी दयनीय है, क्योंकि शिक्षकों की भर्ती के सवाल पर कलकत्ता उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार की आलोचना की है.

प्राथमिक, उच्च प्राथमिक और माध्यमिक में भर्ती सवालों के घेरे में है, क्योंकि भर्ती पैटर्न में भाई-भतीजावाद और भ्रष्ट आचरण के आरोप लगे हैं.

चूंकि शिक्षकों की भर्ती के कई मामले अदालत में लंबित हैं, इसलिए रिक्तियों को भरने की समस्या शायद ही खत्म होने के कोई संकेत नहीं दिखाती है.

ना केवल शिक्षकों की भर्ती के मामलों में बल्कि कई अन्य क्षेत्रों में भी राज्य का प्रदर्शन बेहद खराब रहा है.

कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान जब छात्रों को ज्यादातर इंटरनेट पर निर्भर रहना पड़ता था, पश्चिम बंगाल के स्कूलों में कनेक्टिविटी बहुत कम थी.

यूनेस्को की रिपोर्ट के अनुसार, ज्यादातर शहरी क्षेत्रों के केवल 9 प्रतिशत स्कूलों में ही नेट कनेक्टिविटी है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों को लॉकडाउन अवधि के दौरान ऑनलाइन कक्षा की सुविधा से बाहर रखा गया था.

3 फीसदी के साथ त्रिपुरा, 4 फीसदी के साथ मेघालय, 5 फीसदी के साथ छत्तीसगढ़ और 6 फीसदी के साथ बिहार पश्चिम बंगाल से नीचे है.

(आईएएनएस)

कोलकाता : संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) की एक रिपोर्ट में पश्चिम बंगाल के कई राज्य में स्कूलों, ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में शिक्षकों के लिए 1 लाख से अधिक रिक्तियों के साथ स्कूलों की दयनीय स्थिति पर प्रकाश डाला गया है.

देश में स्कूली शिक्षा पर रिपोर्ट के अनुसार, प्राथमिक, उच्च प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालयों में कुल 1,10,000 रिक्तियों के साथ पश्चिम बंगाल तीसरे स्थान पर है.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन कुल रिक्तियों में से 69 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में हैं.

3,23,000 के साथ उत्तर प्रदेश और 2,20,000 रिक्तियों के साथ बिहार पहले और दूसरे स्थान पर है.

बंगाल के शिक्षा विभाग के सूत्रों ने कहा कि इस दयनीय स्थिति का संकेत पहली बार कुछ साल पहले स्पष्ट हुआ जब केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय ने राज्य के स्कूलों में छात्र-शिक्षक अनुपात पर कुछ प्रश्नों को आगे बढ़ाया.

नाम ना छापने की शर्त पर विभाग के एक अधिकारी ने कहा, उस समय, यह पता चला कि राज्य में विज्ञान स्ट्रीम में चार महत्वपूर्ण विषयों, गणित, भौतिकी, रसायन विज्ञान और जीव विज्ञान के लिए रिक्त शिक्षकों के पदों की संख्या पहले ही खतरनाक स्तर पर पहुंच गई थी. रिक्त शिक्षकों के पदों की संख्या गणित के लिए 3,123, भौतिकी के लिए 1,795, रसायन विज्ञान के लिए 1,787 और जीव विज्ञान के लिए 2,178 थी.

पढ़ें :- भारत को 11 लाख शिक्षकों की जरूरत है, एक लाख से अधिक स्कूलों को चला रहे हैं सिर्फ एक टीचर

समस्या और भी दयनीय है, क्योंकि शिक्षकों की भर्ती के सवाल पर कलकत्ता उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार की आलोचना की है.

प्राथमिक, उच्च प्राथमिक और माध्यमिक में भर्ती सवालों के घेरे में है, क्योंकि भर्ती पैटर्न में भाई-भतीजावाद और भ्रष्ट आचरण के आरोप लगे हैं.

चूंकि शिक्षकों की भर्ती के कई मामले अदालत में लंबित हैं, इसलिए रिक्तियों को भरने की समस्या शायद ही खत्म होने के कोई संकेत नहीं दिखाती है.

ना केवल शिक्षकों की भर्ती के मामलों में बल्कि कई अन्य क्षेत्रों में भी राज्य का प्रदर्शन बेहद खराब रहा है.

कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान जब छात्रों को ज्यादातर इंटरनेट पर निर्भर रहना पड़ता था, पश्चिम बंगाल के स्कूलों में कनेक्टिविटी बहुत कम थी.

यूनेस्को की रिपोर्ट के अनुसार, ज्यादातर शहरी क्षेत्रों के केवल 9 प्रतिशत स्कूलों में ही नेट कनेक्टिविटी है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों को लॉकडाउन अवधि के दौरान ऑनलाइन कक्षा की सुविधा से बाहर रखा गया था.

3 फीसदी के साथ त्रिपुरा, 4 फीसदी के साथ मेघालय, 5 फीसदी के साथ छत्तीसगढ़ और 6 फीसदी के साथ बिहार पश्चिम बंगाल से नीचे है.

(आईएएनएस)

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