नई दिल्ली : अरबों रुपये के पीएनबी घोटाला मामले में आरोपी नीरव मोदी को बड़ा झटका लगा है. नीरव मोदी की प्रत्यर्पण रोकने संबंधी याचिका ब्रिटेन के एक उच्च न्यायालय ने खारिज कर दी है और इस तरह वह भारत को प्रत्यर्पण के खिलाफ अपनी अपील के पहले चरण में हार गया है.
अब उसके पास मौखिक सुनवाई के वास्ते नए सिरे से अपील करने के लिए पांच दिन का समय है. नीरव मोदी फर्जीवाड़े और धनशोधन के आरोपों में भारत में वांछित है.
बता दें कि ब्रिटेन की गृह मंत्री प्रीति पटेल ने अप्रैल में नीरव मोदी को भारत प्रत्यर्पित किए जाने का आदेश दिया था. इसके बाद एक मई को नीरव मोदी ने प्रत्यर्पित किए जाने के खिलाफ यूके हाई कोर्ट में अपील दायर की थी.
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समक्ष नीरव की अपील यह दस्तावेजी निर्णय करने से संबंधित थी कि क्या उसे भारत को प्रत्यर्पित करने संबंधी गृह मंत्री के निर्णय या वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट अदालत के फरवरी के आदेश के खिलाफ अपील का कोई आधार है.
उच्च न्यायालय के एक अधिकारी ने पुष्टि की कि अपील की अनुमति मंगलवार को दस्तावेज में खारिज कर दी गई और अब 50 वर्षीय कारोबारी के पास उच्च न्यायालय में संक्षिप्त मौखिक सुनवाई के वास्ते नए सिरे से अपील का आवेदन दायर करने का मौका बचा है, जिसपर न्यायाधीश यह निर्णय कर सकते हैं कि क्या मामले में पूर्ण अपील सुनवाई की जा सकती है.
नीरव मोदी के पास मौखिक सुनवाई का सिर्फ एक मौका
कानूनी दिशा-निर्देशों के अनुसार नीरव मोदी के पास आवेदक के रूप में मौखिक सुनवाई के वास्ते आवेदन करने के लिए पांच कामकाजी दिन बचे हैं जो अगले सप्ताह तक का समय है.
यदि नए सिरे से आवेदन दायर किया जाता है तो इसे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाएगा. ऐसा माना जाता है कि नीरव मोदी इस तरह का आवेदन दायर करने की योजना बना रहा है.
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भारतीय अधिकारियों की ओर से पैरवी कर रही क्राउन प्रोसीक्यूशन सर्विस (सीपीएस) ने पिछले महीने कहा था, हम यह देखने का इंतजार कर रहे हैं कि क्या वे अपील की अनुमति के लिए आवेदन करते हैं. यदि उन्हें अपील की अनुमति मिलती है तो हम किसी भी अपील कार्यवाही का भारत सरकार की ओर से विरोध करेंगे.
नीरव मोदी 19 मार्च 2019 को गिरफ्तार किए जाने के बाद से ही दक्षिण-पश्चिमी लंदन स्थित वैंड्सवर्थ जेल में बंद है.
फरवरी में, जिला न्यायाधीश सैम गूजी ने अपने आदेश में कहा था कि हीरा कारोबारी से जुड़ा मामला ऐसा है जिसमें उसे भारतीय अदालतों को जवाब देना होगा और ब्रिटेन के कानून के अंतर्गत प्रत्यर्पण संबंधी रोक उसके मामले में लागू नहीं होती.