नई दिल्ली : उच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों की समिति ने प्रस्ताव रखा है कि दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) से जुड़े कुछ मामलों में सारांश अधिनिर्णय (समरी एडजुडिकेशन) को स्वीकार किया जा सकता है.
समरी एडजुडिकेशन से तात्पर्य उन निर्णयों से होता है जिनपर अदालत सुनवाई से पहले ही एक पक्ष द्वारा दिए गए प्रस्ताव, साक्ष्य के आधार पर, कुछ तथ्यों को यह दलील देते हुए निर्धारित करती है कि वे बिंदु तय हो चुके हैं और उन पर सुनवाई की जरूरत नहीं है.
दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को आठ अक्टूबर को सौंपे गए और प्रतिक्रिया/टिप्पणी के लिए 'बार' को दिए गए नियमों के मसौदे में न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह और न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने सलाह दी है कि बिना किसी विशेष अर्जी के भी उच्च न्यायालय के बौद्धिक संपदा विभाग (आईपीडी) द्वारा 'समरी एडजुडिकेशन' किया जा सकता है.
उच्च न्यायालय ने अधिकरण सुधार (तर्कसंगत व्याख्या और सेवा शर्तें) अध्यादेश, 2021 आने के बाद आईपीआर से जुड़े सभी मामलों से निपटने के लिए आईपीडी का गठन किया. इस अध्यादेश के आने के बाद विभिन्न कानूनों के तहत आईपीआर से जुड़े तमाम बोर्ड और अपीलीय अधिकरण समाप्त हो गए.
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उच्च न्यायालय द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, 'न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह और न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने दिल्ली उच्च न्यायालय इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स डिविजन रूल्स, 2021 माननीय मुख्य न्यायाधीश को सौंपा. आठ अक्टूबर, 2021 को नियमों पर प्रतिक्रिया प्राप्त करने के लिए उन्हें बार को भेजा गया.'
उसमें कहा गया है, 'व्यावसायिक अदालत कानून, 2015 द्वारा संशोधित नागरिक प्रक्रिया कोड, 1908 के आदेश 13ए के सिद्धांतों के तहत आईपीडी बिना किसी विशेष अर्जी के भी आईपीआर से जुड़े मामलों में समरी एडजुडिकेशन जारी कर सकता है.'
(पीटीआई भाषा)