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पगड़ी और कृपाण की तुलना हिजाब से नहीं की जा सकती : सुप्रीम कोर्ट

कर्नाटक के शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध के मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि पगड़ी और कृपाण की तुलना हिजाब से नहीं की जा सकती, क्योंकि सिखों के लिए ये दोनों जरूरी हैं.

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सुप्रीम कोर्ट
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Published : Sep 8, 2022, 6:24 PM IST

Updated : Sep 8, 2022, 6:51 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने पर कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए गुरुवार को कहा कि पगड़ी और कृपाण की तुलना हिजाब से नहीं की जा सकती. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुसलमानों के हिजाब की तुलना सिखों की पगड़ी से करना अनुचित है क्योंकि पगड़ी और कृपाण सिखों के लिए अनिवार्य हैं.

पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि 'पगड़ी और कृपाण सिखों के लिए जरूरी है, इसलिए हम कह रहे हैं कि सिखों के साथ तुलना उचित नहीं हो सकती है.'न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली एक छात्र की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें स्कूलों में हिजाब पर प्रतिबंध लगाने के राज्य के फैसले को बरकरार रखा गया था. आज इस मामले की सुनवाई के दौरान अधिवक्ता निजाम पाशा ने अदालत के समक्ष तर्क दिया कि जिस तरह से सिखों के लिए 5 चीजें जरूरी हैं उसी तरह इस्लाम के 5 स्तंभ हैं.

उन्होंने यह भी कहा कि उच्च न्यायालय का यह आदेश कि कुरान अब प्रासंगिक नहीं है, ईशनिंदा की सीमा है. छात्रों के एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने अदालत के समक्ष तर्क दिया कि संविधान अनुच्छेद 25 के तीन अपवाद प्रदान करता है अर्थात सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य और हिजाब पहनना उन तीनों में से किसी का भी उल्लंघन नहीं करता है. उन्होंने तर्क दिया कि धर्म के लिए हर प्रथा आवश्यक नहीं है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि राज्य इस पर प्रतिबंध लगाता रहेगा.

उन्होंने एचसी के समक्ष राज्य के तर्कों का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि हिजाब पर प्रतिबंध नहीं होने से कुछ छात्र भगवा शॉल में आ रहे हैं. कामत ने तर्क दिया कि हिजाब आस्था का निर्दोष प्रदर्शन है जो संविधान द्वारा संरक्षित है, लेकिन किसी का भगवा शॉल पहनना सिर्फ इसके जवाब के लिए है. ये निर्दोष प्रदर्शन नहीं है न ही संविधान द्वारा संरक्षित है.

कामत ने कहा, 'मैं सड़क पर जाता हूं और हेड गियर पहनता हूं, कोई इसे पसंद नहीं करता और हंगामा करता है ... अब राज्य कहता है कि आप इसे नहीं पहन सकते.' कामत ने तर्क दिया, 'यह आपका (राज्य) कर्तव्य है कि हम एक ऐसा माहौल बनाएं जहां हम अपने अधिकारों का प्रयोग कर सकें. सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखना आपका (राज्य) कर्तव्य है.'

मामले की सुनवाई 12 सितंबर को होगी. उस दिन सलमान खुर्शीद अपनी दलीलें पेश करेंगे.

पढ़ें- हिजाब मुद्दे को अतार्किक अंत तक नहीं ले जा सकते : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने पर कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए गुरुवार को कहा कि पगड़ी और कृपाण की तुलना हिजाब से नहीं की जा सकती. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुसलमानों के हिजाब की तुलना सिखों की पगड़ी से करना अनुचित है क्योंकि पगड़ी और कृपाण सिखों के लिए अनिवार्य हैं.

पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि 'पगड़ी और कृपाण सिखों के लिए जरूरी है, इसलिए हम कह रहे हैं कि सिखों के साथ तुलना उचित नहीं हो सकती है.'न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली एक छात्र की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें स्कूलों में हिजाब पर प्रतिबंध लगाने के राज्य के फैसले को बरकरार रखा गया था. आज इस मामले की सुनवाई के दौरान अधिवक्ता निजाम पाशा ने अदालत के समक्ष तर्क दिया कि जिस तरह से सिखों के लिए 5 चीजें जरूरी हैं उसी तरह इस्लाम के 5 स्तंभ हैं.

उन्होंने यह भी कहा कि उच्च न्यायालय का यह आदेश कि कुरान अब प्रासंगिक नहीं है, ईशनिंदा की सीमा है. छात्रों के एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने अदालत के समक्ष तर्क दिया कि संविधान अनुच्छेद 25 के तीन अपवाद प्रदान करता है अर्थात सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य और हिजाब पहनना उन तीनों में से किसी का भी उल्लंघन नहीं करता है. उन्होंने तर्क दिया कि धर्म के लिए हर प्रथा आवश्यक नहीं है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि राज्य इस पर प्रतिबंध लगाता रहेगा.

उन्होंने एचसी के समक्ष राज्य के तर्कों का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि हिजाब पर प्रतिबंध नहीं होने से कुछ छात्र भगवा शॉल में आ रहे हैं. कामत ने तर्क दिया कि हिजाब आस्था का निर्दोष प्रदर्शन है जो संविधान द्वारा संरक्षित है, लेकिन किसी का भगवा शॉल पहनना सिर्फ इसके जवाब के लिए है. ये निर्दोष प्रदर्शन नहीं है न ही संविधान द्वारा संरक्षित है.

कामत ने कहा, 'मैं सड़क पर जाता हूं और हेड गियर पहनता हूं, कोई इसे पसंद नहीं करता और हंगामा करता है ... अब राज्य कहता है कि आप इसे नहीं पहन सकते.' कामत ने तर्क दिया, 'यह आपका (राज्य) कर्तव्य है कि हम एक ऐसा माहौल बनाएं जहां हम अपने अधिकारों का प्रयोग कर सकें. सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखना आपका (राज्य) कर्तव्य है.'

मामले की सुनवाई 12 सितंबर को होगी. उस दिन सलमान खुर्शीद अपनी दलीलें पेश करेंगे.

पढ़ें- हिजाब मुद्दे को अतार्किक अंत तक नहीं ले जा सकते : सुप्रीम कोर्ट

Last Updated : Sep 8, 2022, 6:51 PM IST
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