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भारत के पड़ोसी देशों में चीन के लिए खड़ी हुईं मुश्किलें

दक्षिण एशिया क्षेत्र में प्रभाव बढ़ाने के चीन के प्रयासों को हाल ही में हुई कई घटनाओं के कारण झटका लगा है, जिससे चीन के आर्थिक विकास को भारी नुकसान होने की प्रबल संभावना है. वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की एक रिपोर्ट.

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चीन की मुश्किलें बढ़ीं
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Published : Dec 14, 2021, 1:44 PM IST

Updated : Dec 14, 2021, 2:30 PM IST

नई दिल्ली : चीन सिकुड़ती अर्थव्यवस्था, घटती आबादी और भारी घरेलू ऋण के नुकसान के साथ अचानक दक्षिण एशिया क्षेत्र में एक बदलती और चुनौतीपूर्ण स्थिति का सामना कर रहा है, जहां वह लंबे समय से भारी निवेश करके अपने प्रभाव क्षेत्रों का निर्माण कर रहा था.

निष्पक्ष होने के लिए, चीन ने व्यापार-आधारित आर्थिक विकास के अपने पुराने मॉडल को नए के साथ बदलना शुरू कर दिया है, जहां घरेलू मांग विकास का इंजन है. लेकिन नया मॉडल पूरी तरह से धीमी आर्थिक वृद्धि को मजबूती नहीं दे सकता है. साल 2021 के मध्य में, कई दशकों में पहली बार चीन की विकास दर उभरती अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में काफी धीमी थी.

अप्रैल-मई 2020 में सीमा विवाद को लेकर भारत-चीन के बीच टकराव के बाद दोनों एशियाई महाशक्तियों ने पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के पास बेहद महंगी सैन्य तैनाती की है.

पाकिस्तान

पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह में चीनी निवेश के खिलाफ प्रदर्शन में वृद्धि चीन की शीर्ष चिंताओं में शामिल होगा. 3,000 किलोमीटर लंबा चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) 'ड्रैगन' की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) की प्रमुख परियोजनाओं में से एक है, जो राष्ट्रपति शी जिनपिंग के 2013 में सत्ता में आने के बाद शुरू हुई थी. चीन बीआरआई के जरिए दक्षिण पूर्व एशिया, मध्य एशिया, पश्चिम एशिया, अफ्रीका और यूरोप को जोड़ने वाली सड़कों और समुद्री मार्गों का एक नेटवर्क बनाना चाहता है.

सीपीईसी में ग्वादर बंदरगाह परियोजना (Gwadar port project) सबसे महत्वपूर्ण है. इसके जरिए चीन ने पाकिस्तान के बुनियादी ढांचे को उन्नत करने का वादा किया और बदले में उसे समुद्र तक जरूरी पहुंच मिलेगी.

चीन पहले ही पाकिस्तान के उग्रवाद प्रभावित बलूचिस्तान प्रांत में समुद्र के किनारे बसे ग्वादर में भारी निवेश कर चुका है और चीनी निर्मित बुनियादी ढांचे को विद्रोहियों द्वारा आसानी से निशाना बनाया जा सकता है.

लेकिन नवंबर के बाद से, ग्वादर परियोजना के खिलाफ स्थानीय बलूचियों द्वारा बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए गए हैं, जो बीजिंग की चिंता का स्तर बढ़ाने वाली है. आजीविका छीन लिए जाने के खतरे चलते प्रदर्शनकारी स्वच्छ पेयजल, समुद्र में मछली पकड़ने की पहुंच और संभावित चीन के मछली पकड़ने के जहाजों (Chinese fishing ships) द्वारा गहरे समुद्र में मछली पकड़ने पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे हैं.

प्रदर्शनकारियों ने परियोजना की व्यवहार्यता को उजागर करते हुए ग्वादर को कराची से जोड़ने वाले मुख्य राजमार्ग को बंद कर दिया है, इस तथ्य के बावजूद कि चीन और पाकिस्तान ने CPEC की सुरक्षा के लिए लगभग 25,000 सैनिकों को तैनात करने में सहयोग किया है.

वर्ष 2020 में बीआरआई परियोजनाओं में 22.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश के साथ, इन परियोजनाओं में कुल निवेश 139.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर पहुंच गया था. सीपीईसी के लिए अनुमानित निवेश 60 अरब डॉलर है और चीन अब तक 25 अरब डॉलर निवेश कर चुका है.

दूसरी ओर, कहा जा रहा है कि सीपीईसी में निवेश करने के लिए चीन के लिए धन की कमी की स्थिति पैदा हो गई है.

चीन स्थित थिंक-टैंक ग्रीन बीआरआई (Green BRI) की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, चीन अब बीआरआई परियोजना के लिए उस तरह से धन उपलब्ध नहीं करा पा रहा है, जिस तरह से वह पहले निवेश करता था. साल 2019 में बीआरआई में निवेश 54 प्रतिशत गिरकर 2020 में 47 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया.

श्रीलंका

हाल में इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि चीन-श्रीलंका के द्विपक्षीय संबंध (China-Sri Lankan bilateral relationship) शायद सुचारू रूप से नहीं चल रहे हैं. रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हंबनटोटा बंदरगाह के विकास में देर से चीन और श्रीलंका संबंधों में गिरावट आई है. चीन ने 2017 में श्रीलंका सरकार से हंबनटोटा बंदरगाह के विकास और संचालन के लिए 2017 में 99 साल की लीज हासिल की थी. श्रीलंका पहले इसे बंदरगाह को भारत और जापान के साथ संयुक्त रूप से विकसित करने की योजना बनाई थी.

एक दिसंबर को, कोलंबो में चीनी दूतावास ने ट्वीट किया कि बीजिंग ने 'तीसरे पक्ष' से 'सुरक्षा चिंता' के कारण श्रीलंका के तीन द्वीपों में अक्षय ऊर्जा संयंत्र बनाने के लिए एक परियोजना को स्थगित करने का फैसला किया है. चीनी दूतावास का इशारा भारत की तरफ था, क्योंकि भारत श्रीलंका के जाफना और तमिलनाडु के बहुत करीब स्थित अनलथिवु (Analthivu), डेल्फ्ट (Delft) और नागदीपा (Nagadeepa) के द्वीपों में चीनी परियोजना का विरोध कर रहा था.

चीन इसके बजाय मालदीव में एक सौर ऊर्जा परियोजना के लिए निवेश करेगा.

चीन से श्रीलंका को कृषि उर्वरकों की आपूर्ति को लेकर दोनों देशों के बीच पेंच फंसाने वाला मुद्दा रहा है, जो गुणवत्ता के मुद्दों पर टकराव को जन्म देता रहा है.

श्रीलंका दुनिया का पहला पूरी तरह से जैविक खेती वाला देश बनना चाहता है और इसलिए रसायन मुक्त खेप पर जोर देता है. यह श्रीलंका के लिए खाद के साथ चीनी जहाजों के प्रवेश से इनकार करने का आधार बन गया है.

यह भी पढ़ें- पनडुब्बियों के बाद चीन अब बांग्लादेश को देगा वीटी5 लाइट टैंक

जिस बात ने इस मुद्दे को और अधिक जटिल बना दिया है, वह यह है कि भारत ने भारतीय वायुसेना के सी-17 ग्लोबमास्टर विमान से जैविक खाद तेजी से पहुंचाने का कदम बढ़ाया और इसे सही समय में श्रीलंका पहुंचा दिया.

नवंबर की शुरुआत में, कोलंबो स्थित भारतीय दूतावास ने ट्वीट किया, 'भारतीय वायुसेना के दो C-17 ग्लोबमास्टर विमान 100,000 किलोग्राम नैनो नाइट्रोजन के साथ भंडारनायके अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुंचे. यह अनिवार्य रूप से जैविक खेती की दिशा में श्रीलंका सरकार की पहल का समर्थन करने और श्रीलंकाई किसानों को नैनो नाइट्रोजन उर्वरक की उपलब्धता में तेजी लाने के लिए थी.

भारत की तरफ से द्वीपीय राष्ट्र श्रीलंका को जैविक खाद की यह दूसरी खेप थी, जबकि पहली खेप दो महीने पहले भेजी गई थी.

बांग्लादेश

चीन ने हाल ही में बढ़ी हुई लागत का हवाला देते हुए बांग्लादेश में दो प्रमुख रेल परियोजनाओं से पीछे हट गया. चीन के पीछे हटने का कारण भारत को माना जा रहा है. सरकारी अनुबंध के तहत दोनों रेल परियोजनाओं को चीनी कंपनियों द्वारा पूरा किया जाना था. इन परियोजनाओं को ढाका से देश के उत्तर-पूर्व और उत्तर-पश्चिम तक कनेक्टिविटी में सुधार के लिए तैयार किया गया है.

बांग्लादेश की सरकार ने प्रमुख बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए अक्टूबर 2016 में चीनी कंपनियों के साथ एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए थे.

ऐसा माना जा रहा है कि इन परियोजनाओं से विशेष रूप से मालगाड़ियों की आवाजाही में भारत के साथ कनेक्टिविटी में सुधार होगा.

म्यांमार

दुनिया भर के कई अन्य देशों की तरह, म्यांमार में चीन का बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ है. लेकिन जो बात चीन को बाकी हिस्सों से अलग करती है, वह है बड़े पैमाने पर निवेश, जो उसने म्यांमार में किया है. म्यांमार के साथ चीन की 2,200 किलोमीटर लंबी सीमा लगती है.

चीन की महत्वाकांक्षी बीआरआई परियोजना का हिस्सा चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारा (CMEC) के साथ महत्वपूर्ण क्याक फू पोर्ट परियोजना (Kyauk Phyu Port project) सहित कई प्रमुख बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को रोक दिया गया है.

म्यांमार की सेना द्वारा एक फरवरी 2021 को किए गए तख्तापलट के खिलाफ आम लोग सड़कों पर उतर आए हैं. चीन विरोधी भावना के परिणामस्वरूप उसकी परियोजनाएं सुस्त पड़ गई हैं.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि चीनी कपड़ा निर्माता कंपनियां सुरक्षित क्षेत्रों में स्थानांतरित होने पर विचार कर रहे हैं.

यह भी पढ़ें - चीन ने नानकिंग नरसंहार की 84वीं बरसी मनाई

म्यांमार के कुछ सामुदायिक सशस्त्र संगठनों (Myanmar Ethnic Armed Organisations ) जैसे यूनाइटेड वा स्टेट आर्मी (United Wa State Army), काचिन इंडिपेंडेंस आर्मी (Kachin Independence Army), शान स्टेट प्रोग्रेस पार्टी (Shan State Progress Party) और ता'आंग नेशनल लिबरेशन आर्मी (Ta’ang National Liberation Army) को बीजिंग का खुला और गुप्त समर्थन मामले को अधिक जटिल बना दिया है.

नई दिल्ली : चीन सिकुड़ती अर्थव्यवस्था, घटती आबादी और भारी घरेलू ऋण के नुकसान के साथ अचानक दक्षिण एशिया क्षेत्र में एक बदलती और चुनौतीपूर्ण स्थिति का सामना कर रहा है, जहां वह लंबे समय से भारी निवेश करके अपने प्रभाव क्षेत्रों का निर्माण कर रहा था.

निष्पक्ष होने के लिए, चीन ने व्यापार-आधारित आर्थिक विकास के अपने पुराने मॉडल को नए के साथ बदलना शुरू कर दिया है, जहां घरेलू मांग विकास का इंजन है. लेकिन नया मॉडल पूरी तरह से धीमी आर्थिक वृद्धि को मजबूती नहीं दे सकता है. साल 2021 के मध्य में, कई दशकों में पहली बार चीन की विकास दर उभरती अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में काफी धीमी थी.

अप्रैल-मई 2020 में सीमा विवाद को लेकर भारत-चीन के बीच टकराव के बाद दोनों एशियाई महाशक्तियों ने पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के पास बेहद महंगी सैन्य तैनाती की है.

पाकिस्तान

पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह में चीनी निवेश के खिलाफ प्रदर्शन में वृद्धि चीन की शीर्ष चिंताओं में शामिल होगा. 3,000 किलोमीटर लंबा चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) 'ड्रैगन' की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) की प्रमुख परियोजनाओं में से एक है, जो राष्ट्रपति शी जिनपिंग के 2013 में सत्ता में आने के बाद शुरू हुई थी. चीन बीआरआई के जरिए दक्षिण पूर्व एशिया, मध्य एशिया, पश्चिम एशिया, अफ्रीका और यूरोप को जोड़ने वाली सड़कों और समुद्री मार्गों का एक नेटवर्क बनाना चाहता है.

सीपीईसी में ग्वादर बंदरगाह परियोजना (Gwadar port project) सबसे महत्वपूर्ण है. इसके जरिए चीन ने पाकिस्तान के बुनियादी ढांचे को उन्नत करने का वादा किया और बदले में उसे समुद्र तक जरूरी पहुंच मिलेगी.

चीन पहले ही पाकिस्तान के उग्रवाद प्रभावित बलूचिस्तान प्रांत में समुद्र के किनारे बसे ग्वादर में भारी निवेश कर चुका है और चीनी निर्मित बुनियादी ढांचे को विद्रोहियों द्वारा आसानी से निशाना बनाया जा सकता है.

लेकिन नवंबर के बाद से, ग्वादर परियोजना के खिलाफ स्थानीय बलूचियों द्वारा बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए गए हैं, जो बीजिंग की चिंता का स्तर बढ़ाने वाली है. आजीविका छीन लिए जाने के खतरे चलते प्रदर्शनकारी स्वच्छ पेयजल, समुद्र में मछली पकड़ने की पहुंच और संभावित चीन के मछली पकड़ने के जहाजों (Chinese fishing ships) द्वारा गहरे समुद्र में मछली पकड़ने पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे हैं.

प्रदर्शनकारियों ने परियोजना की व्यवहार्यता को उजागर करते हुए ग्वादर को कराची से जोड़ने वाले मुख्य राजमार्ग को बंद कर दिया है, इस तथ्य के बावजूद कि चीन और पाकिस्तान ने CPEC की सुरक्षा के लिए लगभग 25,000 सैनिकों को तैनात करने में सहयोग किया है.

वर्ष 2020 में बीआरआई परियोजनाओं में 22.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश के साथ, इन परियोजनाओं में कुल निवेश 139.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर पहुंच गया था. सीपीईसी के लिए अनुमानित निवेश 60 अरब डॉलर है और चीन अब तक 25 अरब डॉलर निवेश कर चुका है.

दूसरी ओर, कहा जा रहा है कि सीपीईसी में निवेश करने के लिए चीन के लिए धन की कमी की स्थिति पैदा हो गई है.

चीन स्थित थिंक-टैंक ग्रीन बीआरआई (Green BRI) की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, चीन अब बीआरआई परियोजना के लिए उस तरह से धन उपलब्ध नहीं करा पा रहा है, जिस तरह से वह पहले निवेश करता था. साल 2019 में बीआरआई में निवेश 54 प्रतिशत गिरकर 2020 में 47 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया.

श्रीलंका

हाल में इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि चीन-श्रीलंका के द्विपक्षीय संबंध (China-Sri Lankan bilateral relationship) शायद सुचारू रूप से नहीं चल रहे हैं. रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हंबनटोटा बंदरगाह के विकास में देर से चीन और श्रीलंका संबंधों में गिरावट आई है. चीन ने 2017 में श्रीलंका सरकार से हंबनटोटा बंदरगाह के विकास और संचालन के लिए 2017 में 99 साल की लीज हासिल की थी. श्रीलंका पहले इसे बंदरगाह को भारत और जापान के साथ संयुक्त रूप से विकसित करने की योजना बनाई थी.

एक दिसंबर को, कोलंबो में चीनी दूतावास ने ट्वीट किया कि बीजिंग ने 'तीसरे पक्ष' से 'सुरक्षा चिंता' के कारण श्रीलंका के तीन द्वीपों में अक्षय ऊर्जा संयंत्र बनाने के लिए एक परियोजना को स्थगित करने का फैसला किया है. चीनी दूतावास का इशारा भारत की तरफ था, क्योंकि भारत श्रीलंका के जाफना और तमिलनाडु के बहुत करीब स्थित अनलथिवु (Analthivu), डेल्फ्ट (Delft) और नागदीपा (Nagadeepa) के द्वीपों में चीनी परियोजना का विरोध कर रहा था.

चीन इसके बजाय मालदीव में एक सौर ऊर्जा परियोजना के लिए निवेश करेगा.

चीन से श्रीलंका को कृषि उर्वरकों की आपूर्ति को लेकर दोनों देशों के बीच पेंच फंसाने वाला मुद्दा रहा है, जो गुणवत्ता के मुद्दों पर टकराव को जन्म देता रहा है.

श्रीलंका दुनिया का पहला पूरी तरह से जैविक खेती वाला देश बनना चाहता है और इसलिए रसायन मुक्त खेप पर जोर देता है. यह श्रीलंका के लिए खाद के साथ चीनी जहाजों के प्रवेश से इनकार करने का आधार बन गया है.

यह भी पढ़ें- पनडुब्बियों के बाद चीन अब बांग्लादेश को देगा वीटी5 लाइट टैंक

जिस बात ने इस मुद्दे को और अधिक जटिल बना दिया है, वह यह है कि भारत ने भारतीय वायुसेना के सी-17 ग्लोबमास्टर विमान से जैविक खाद तेजी से पहुंचाने का कदम बढ़ाया और इसे सही समय में श्रीलंका पहुंचा दिया.

नवंबर की शुरुआत में, कोलंबो स्थित भारतीय दूतावास ने ट्वीट किया, 'भारतीय वायुसेना के दो C-17 ग्लोबमास्टर विमान 100,000 किलोग्राम नैनो नाइट्रोजन के साथ भंडारनायके अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुंचे. यह अनिवार्य रूप से जैविक खेती की दिशा में श्रीलंका सरकार की पहल का समर्थन करने और श्रीलंकाई किसानों को नैनो नाइट्रोजन उर्वरक की उपलब्धता में तेजी लाने के लिए थी.

भारत की तरफ से द्वीपीय राष्ट्र श्रीलंका को जैविक खाद की यह दूसरी खेप थी, जबकि पहली खेप दो महीने पहले भेजी गई थी.

बांग्लादेश

चीन ने हाल ही में बढ़ी हुई लागत का हवाला देते हुए बांग्लादेश में दो प्रमुख रेल परियोजनाओं से पीछे हट गया. चीन के पीछे हटने का कारण भारत को माना जा रहा है. सरकारी अनुबंध के तहत दोनों रेल परियोजनाओं को चीनी कंपनियों द्वारा पूरा किया जाना था. इन परियोजनाओं को ढाका से देश के उत्तर-पूर्व और उत्तर-पश्चिम तक कनेक्टिविटी में सुधार के लिए तैयार किया गया है.

बांग्लादेश की सरकार ने प्रमुख बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए अक्टूबर 2016 में चीनी कंपनियों के साथ एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए थे.

ऐसा माना जा रहा है कि इन परियोजनाओं से विशेष रूप से मालगाड़ियों की आवाजाही में भारत के साथ कनेक्टिविटी में सुधार होगा.

म्यांमार

दुनिया भर के कई अन्य देशों की तरह, म्यांमार में चीन का बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ है. लेकिन जो बात चीन को बाकी हिस्सों से अलग करती है, वह है बड़े पैमाने पर निवेश, जो उसने म्यांमार में किया है. म्यांमार के साथ चीन की 2,200 किलोमीटर लंबी सीमा लगती है.

चीन की महत्वाकांक्षी बीआरआई परियोजना का हिस्सा चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारा (CMEC) के साथ महत्वपूर्ण क्याक फू पोर्ट परियोजना (Kyauk Phyu Port project) सहित कई प्रमुख बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को रोक दिया गया है.

म्यांमार की सेना द्वारा एक फरवरी 2021 को किए गए तख्तापलट के खिलाफ आम लोग सड़कों पर उतर आए हैं. चीन विरोधी भावना के परिणामस्वरूप उसकी परियोजनाएं सुस्त पड़ गई हैं.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि चीनी कपड़ा निर्माता कंपनियां सुरक्षित क्षेत्रों में स्थानांतरित होने पर विचार कर रहे हैं.

यह भी पढ़ें - चीन ने नानकिंग नरसंहार की 84वीं बरसी मनाई

म्यांमार के कुछ सामुदायिक सशस्त्र संगठनों (Myanmar Ethnic Armed Organisations ) जैसे यूनाइटेड वा स्टेट आर्मी (United Wa State Army), काचिन इंडिपेंडेंस आर्मी (Kachin Independence Army), शान स्टेट प्रोग्रेस पार्टी (Shan State Progress Party) और ता'आंग नेशनल लिबरेशन आर्मी (Ta’ang National Liberation Army) को बीजिंग का खुला और गुप्त समर्थन मामले को अधिक जटिल बना दिया है.

Last Updated : Dec 14, 2021, 2:30 PM IST
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