अगरतला: अक्षय ऊर्जा को शामिल करके त्रिपुरा ने देश के पहले पांच बायो विलेज की स्थापना को सफलतापूर्वक पूरा किया है. इस संबंध में त्रिपुरा के उपमुख्यमंत्री जिष्णु देव वर्मा (Deputy Chief Minister Jishnu Dev Varma) के पास जैव प्रौद्योगिकी निदेशालय का विभाग भी है. उन्होंने एक फेसबुक पोस्ट में त्रिपुरा सरकार को देश के पहले जैव गांवों को डिजाइन करने और स्थापित करने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत जैव प्रौद्योगिकी निदेशालय को बधाई दी है. साथ ही उन्होंने लिखा है कि इसे तरराष्ट्रीय समूह द्वारा भारतीय राज्यों के सर्वोत्तम अभ्यासों में से एक के रूप में मान्यता दी गई है. ये जैव गांव राज्य के कुछ दूरस्थ क्षेत्रों में सतत विकास लक्ष्यों (SDG) के उदाहरण हैं.
वहीं इस बारे में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के एक अधिकारी ने परियोजना की जानकारी देते हुए बताया कि उपमुख्यमंत्री के नेतृत्व में विभाग द्वारा 10 बायो विलेज का काम चल रहा है जिन्हें शीघ्र स्थापित किया जाएगा. उन्होंने कहा कि इन 10 बायो विलेज में से पांच बायो विलेज के काम पूरे हो चुके हैं. जबकि सिपाहीजाला जिले के चारिलम में, पश्चिम जिले के बामुटिया में, गोमती के किला में, धलाई के अंबासा में और धलाई जिले के डंबूर नगर में काम चल रहा है. अधिकारी ने कहा कि मेरी चिंता के अनुसार यह पहली बार है जब इस तरह के बायो विलेज पूर्वोत्तर क्षेत्र में स्थापित किए गए हैं. बायो विलेज कोई नई बात नहीं है लेकिन इस तरह के बायो विलेज में कुछ बदलाव होते हैं. पहले जैव गांवों में केवल जैविक खेती थी लेकिन हमारे मामले में जैविक खेती सिर्फ एक घटक है, इसके अलावा हमने अक्षय ऊर्जा को शामिल किया है.
बता दें कि राज्य में कृषि और संबद्ध क्षेत्रों के सतत विकास को सुविधाजनक बनाने के इरादे से त्रिपुरा सरकार द्वारा 2018 में जैविक खेती को बढ़ावा देने के प्राथमिक उद्देश्य के साथ पेश किया गया था. हालांकि, जैसे-जैसे पहल विकसित हुई, बायोगैस, पशुधन की बेहतर नस्ल, सौर ऊर्जा से चलने वाले कृषि उपकरण और ऊर्जा की बचत करने वाले विद्युत उपकरणों जैसे घटकों को परियोजना के दायरे को व्यापक बनाने के लिए शामिल किया गया.
अधिकारी ने आगे बताया कि इस परियोजना के लिए 500 से अधिक परिवारों को लाभान्वित किया गया है. उन्होंने कहा कि इनका मुख्य उद्देश्य कृषि और संबद्ध क्षेत्र से संबंधित उत्पादों के स्थायी उत्पादन के लिए सौर जल पंप, बायोमास कुकस्टोव और बायोगैस संयंत्र जैसी हरित प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना है. इसके अलावा छोटे और सीमांत किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को बायोफर्टिलाइजर्स, बायोपेस्टीसाइड्स और मशरूम स्पॉन की खेती जैसे सरल जैव-प्रौद्योगिकी हस्तक्षेपों के साथ बढ़ाना भी है.
ये भी पढ़ें - अक्षय ऊर्जा उत्पादन के लक्ष्य की प्राप्ति में विकसित देश भारत से पीछे : सरकार