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Tribal Society Concern About UCC : यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर क्यों चिंतित हैं आदिवासी ?

Tribal Society Concern About UCC यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर सर्व आदिवासी समाज ने मोर्चा खोला हुआ है. अब सर्व आदिवासी समाज के साथ साथ दूसरे आदिवासी समुदाय के लोग भी इस कानून का विरोध कर रहे हैं. आदिवासी समाज को डर है कि उनकी कई प्रथाएं यूनिफॉर्म सिविल कोड के दायरे में आने से खत्म हो सकती हैं.

Tribal Society Concern About UCC
यूसीसी से आदिवासी समाज परेशान
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Published : Jul 5, 2023, 10:10 PM IST

Updated : Jul 6, 2023, 6:26 AM IST

यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर क्यों चिंतित है आदिवासी

रायपुर : यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी यूसीसी एक देश एक कानून है. फिलहाल हमारे देश में अलग अलग धर्मों के अपने अपने कानून हैं. हिंदुओं के लिए हिंदू पर्सनल लॉ, मुस्लिमों के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ. UCC का उद्देश्य व्यक्तिगत कानूनों को खत्म कर एक सामान्य कानून लाना है. ऐसे में देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर बहस छिड़ी है. कई वर्ग इस कानून का समर्थन कर रहे हैं. वहीं कुछ समुदाय इस कानून को लेकर असमंजस में हैं. आदिवासी समाज का मानना है कि यूसीसी के कारण जो अधिकार संविधान ने आदिवासियों को दिए हैं, वो प्रभावित होंगे.

क्या है आदिवासियों को डर: आदिवासी समुदाय अपने जन्म, विवाह, तलाक, विभाजन, उत्तराधिकारी, विरासत, जमीन और संपत्ति के मामले प्रथागत रूढ़ि विधि से संचालित करते हैं. यही आदिवासी समुदायों की पहचान है. यही रीति रिवाज और परंपराएं आदिवासियों को दूसरे जाति और धर्म से अलग बनाती है. आदिवासियों के प्रस्तावित कानून को संविधान के तहत अनुच्छेद 13( 3)( क ) कानून का बल दिया गया है. संविधान में आदिवासियों के लिए बहुत सारे अधिनियम प्रावधान एक अनुसूची पांचवी एवं छठवीं, पेसा एक्ट सहित बहुत सारे अधिकार दिए गए हैं. आदिवासी समाज में संशय है कि समान नागरिक संहिता का कानून आने से सदियों से चली आ रही उनकी यह परंपरा खत्म हो जाएगी.

sarv aadiwasi samaj
सर्व आदिवासी समाज ने यूसीसी पर क्या कहा ?

''आदिवासी समाज की अपनी अपनी परंपरा है, जिसे संविधान में मान्यता दी गई है. यूसीसी को लेकर लॉ कमीशन ने जो नोटिफिकेशन जारी किया, यह आदिवासी समाज के संशय का विषय है कि ये कैसे बनके आएगा. रुढ़िगत परम्पराओं को संविधान में समानता का अधिकार दिया गया है. यह नया आने वाला यूसीसी हमारे अधिकार के लिए बात कर रहा है या संबंधों को बढ़ाने के लिए काम किया जा रहा है. हमें डर है कि हमारी आइडेंटिटी खो जाएगी, हमारा अस्तित्व भी खत्म हो सकता है.'' विनोद नागवंशी, गोंडवाना समाज

क्यों आदिवासी समुदाय यूसीसी के विरोध में है: आदिवासी समाज को यूसीसी की वजह से कई प्रथाओं के खत्म होने का डर है. जिसमें शादी से जुड़ी प्रथा को लेकर ज्यादा खतरा है. छत्तीसगढ़, असम, बिहार और ओडिशा में कई एसटी वर्ग ऐसे हैं, जो परंपरागत कानूनों का पालन करते हैं. उसी तरह मेघालय की जनजातियों में मातृसत्तात्मक सिस्टम चलता आ रहा है. यहां संपत्ति परिवार की सबसे छोटी बेटी को विरासत में मिलती है. गारो समाज का पुरुष अगर खासी समाज की लड़की से शादी करता है तो उसे लड़की के घर पर ही जाकर रहना होता है. जबकि नागा जनजातियों में ऐसा नहीं है. महिलाओं को संपत्ति विरासत में देने या जनजाति के बाहर शादी करने पर रोक है.

"आदिवासी परंपरा अन्य समाज से अलग है. यूनिफॉर्म सिविल कोड के आने से आदिवासियों की रूढ़ि परंपरा की मान्यताएं खत्म हो जाएंगी. जमीन ,शादी और तलाक की प्रक्रिया रूढ़ि परम्परा से है. हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम आदिवासियों में लागू नहीं होता है. अगर कॉमन सिविल कोड होगा तो उसे मानना पड़ेगा और समाज में विरोध भी होगा. नॉर्थ ईस्ट से लेकर राजस्थान तक आदिवासी समाज में गहमागहमी हैं. ''बीएस रावते, आदिवासी हल्बा समाज

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"यूनिफार्म सिविल कोड आने से आदिवासी समाज की रोटी बेटी, जमीन जैसी सारी चीजें खत्म हो जाएंगी, समाज को इसे समझने में बहुत समय भी लगेगा. पूरे समाज की तरफ से हम सर्व आदिवासी समाज के माध्यम से यूसीसी का विरोध करते हैं . संपूर्ण रूप से नागरची समाज भी यूसीसी का विरोध करते हैं." रूपेंद्र नागरची,नागरची आदिवासी समाज

आदिवासियों को नाराज नहीं करना चाहती सरकार : दरअसल साल 2024 में लोकसभा चुनाव हैं. देश के 17 राज्यों में 47 सीटें आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित हैं. बीजेपी ने साल 2018 के लोकसभा चुनाव में 47 में से 31 सीटें जीती थीं. इसमें से 3 सीटें छ्त्तीसगढ़ की भी हैं. इसलिए बीजेपी कभी नहीं चाहेगी कि यूनिफॉर्म सिविल कोड में शामिल करके आदिवासियों को नाराज किया जाए.आइए एक नजर डालते हैं कहां पर कितनी आदिवासी सीटें हैं.

राज्य के अनुसार लोकसभा की सीटें

  1. मध्यप्रदेश- 6
  2. झारखंड-5
  3. ओडिशा-5
  4. गुजरात-4
  5. महाराष्ट्र-4
  6. छत्तीसगढ़-4
  7. राजस्थान-3
  8. आंध्रप्रदेश-3
  9. कर्नाटक-2
  10. मेघालय-2
  11. असम-2
  12. पश्चिम बंगाल-2
  13. मिजोरम-1
  14. मणिपुर-1
  15. त्रिपुरा-1
  16. दादर नगर हवेली-1
  17. लक्षदीप-1

यूसीसी को लेकर आदिवासी और केंद्र की स्थिति : आदिवासी समाज इस बात को लेकर चिंतित है कि यदि भारत सरकार ने किसी कानून को लागू किया और उसके अंदर आदिवासी आए तो निश्चित तौर पर उनकी परंपराओं पर इसका बड़ा असर पड़ेगा. क्योंकि कानून ना मानने पर अन्य समुदायों पर जो दंड लागू होंगे, वो आदिवासियों पर भी लागू होंगे. भले ही रुढ़ी परंपरा के मुताबिक आदिवासी सही हो इसलिए यूसीसी को लेकर आदिवासी इसके हर एक बिंदु को सार्वजनिक करके चर्चा चाहते हैं ताकि किसी भी तरह का गतिरोध कानून को लागू करने पर ना हो. वहीं दूसरी तरफ केंद्र भी आदिवासी समाज के यूसीसी को लेकर विरोध को दरकिनार नहीं कर सकता. क्योंकि कहीं ना कहीं इससे आने वाला चुनाव प्रभावित हो सकता है.

Tribal Society Concern About UCC
यूसीसी पर आदिवासी समाज की राय

यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर क्यों चिंतित है आदिवासी

रायपुर : यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी यूसीसी एक देश एक कानून है. फिलहाल हमारे देश में अलग अलग धर्मों के अपने अपने कानून हैं. हिंदुओं के लिए हिंदू पर्सनल लॉ, मुस्लिमों के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ. UCC का उद्देश्य व्यक्तिगत कानूनों को खत्म कर एक सामान्य कानून लाना है. ऐसे में देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर बहस छिड़ी है. कई वर्ग इस कानून का समर्थन कर रहे हैं. वहीं कुछ समुदाय इस कानून को लेकर असमंजस में हैं. आदिवासी समाज का मानना है कि यूसीसी के कारण जो अधिकार संविधान ने आदिवासियों को दिए हैं, वो प्रभावित होंगे.

क्या है आदिवासियों को डर: आदिवासी समुदाय अपने जन्म, विवाह, तलाक, विभाजन, उत्तराधिकारी, विरासत, जमीन और संपत्ति के मामले प्रथागत रूढ़ि विधि से संचालित करते हैं. यही आदिवासी समुदायों की पहचान है. यही रीति रिवाज और परंपराएं आदिवासियों को दूसरे जाति और धर्म से अलग बनाती है. आदिवासियों के प्रस्तावित कानून को संविधान के तहत अनुच्छेद 13( 3)( क ) कानून का बल दिया गया है. संविधान में आदिवासियों के लिए बहुत सारे अधिनियम प्रावधान एक अनुसूची पांचवी एवं छठवीं, पेसा एक्ट सहित बहुत सारे अधिकार दिए गए हैं. आदिवासी समाज में संशय है कि समान नागरिक संहिता का कानून आने से सदियों से चली आ रही उनकी यह परंपरा खत्म हो जाएगी.

sarv aadiwasi samaj
सर्व आदिवासी समाज ने यूसीसी पर क्या कहा ?

''आदिवासी समाज की अपनी अपनी परंपरा है, जिसे संविधान में मान्यता दी गई है. यूसीसी को लेकर लॉ कमीशन ने जो नोटिफिकेशन जारी किया, यह आदिवासी समाज के संशय का विषय है कि ये कैसे बनके आएगा. रुढ़िगत परम्पराओं को संविधान में समानता का अधिकार दिया गया है. यह नया आने वाला यूसीसी हमारे अधिकार के लिए बात कर रहा है या संबंधों को बढ़ाने के लिए काम किया जा रहा है. हमें डर है कि हमारी आइडेंटिटी खो जाएगी, हमारा अस्तित्व भी खत्म हो सकता है.'' विनोद नागवंशी, गोंडवाना समाज

क्यों आदिवासी समुदाय यूसीसी के विरोध में है: आदिवासी समाज को यूसीसी की वजह से कई प्रथाओं के खत्म होने का डर है. जिसमें शादी से जुड़ी प्रथा को लेकर ज्यादा खतरा है. छत्तीसगढ़, असम, बिहार और ओडिशा में कई एसटी वर्ग ऐसे हैं, जो परंपरागत कानूनों का पालन करते हैं. उसी तरह मेघालय की जनजातियों में मातृसत्तात्मक सिस्टम चलता आ रहा है. यहां संपत्ति परिवार की सबसे छोटी बेटी को विरासत में मिलती है. गारो समाज का पुरुष अगर खासी समाज की लड़की से शादी करता है तो उसे लड़की के घर पर ही जाकर रहना होता है. जबकि नागा जनजातियों में ऐसा नहीं है. महिलाओं को संपत्ति विरासत में देने या जनजाति के बाहर शादी करने पर रोक है.

"आदिवासी परंपरा अन्य समाज से अलग है. यूनिफॉर्म सिविल कोड के आने से आदिवासियों की रूढ़ि परंपरा की मान्यताएं खत्म हो जाएंगी. जमीन ,शादी और तलाक की प्रक्रिया रूढ़ि परम्परा से है. हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम आदिवासियों में लागू नहीं होता है. अगर कॉमन सिविल कोड होगा तो उसे मानना पड़ेगा और समाज में विरोध भी होगा. नॉर्थ ईस्ट से लेकर राजस्थान तक आदिवासी समाज में गहमागहमी हैं. ''बीएस रावते, आदिवासी हल्बा समाज

Raipur News: सर्व आदिवासी समाज बिगाड़ेगा कांग्रेस और भाजपा का चुनावी समीकरण !
Uttarakhand UCC: उत्तराखंड समान नागरिक संहिता का ड्राफ्ट तैयार, लागू करने वाला पहला राज्य बनेगा उत्तराखंड
Chhattisgarh Election 2023 : 50 सीटों पर चुनाव लड़ेगी सर्व आदिवासी समाज, कांग्रेस बीजेपी से मोह हुआ भंग: अरविंद नेताम

"यूनिफार्म सिविल कोड आने से आदिवासी समाज की रोटी बेटी, जमीन जैसी सारी चीजें खत्म हो जाएंगी, समाज को इसे समझने में बहुत समय भी लगेगा. पूरे समाज की तरफ से हम सर्व आदिवासी समाज के माध्यम से यूसीसी का विरोध करते हैं . संपूर्ण रूप से नागरची समाज भी यूसीसी का विरोध करते हैं." रूपेंद्र नागरची,नागरची आदिवासी समाज

आदिवासियों को नाराज नहीं करना चाहती सरकार : दरअसल साल 2024 में लोकसभा चुनाव हैं. देश के 17 राज्यों में 47 सीटें आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित हैं. बीजेपी ने साल 2018 के लोकसभा चुनाव में 47 में से 31 सीटें जीती थीं. इसमें से 3 सीटें छ्त्तीसगढ़ की भी हैं. इसलिए बीजेपी कभी नहीं चाहेगी कि यूनिफॉर्म सिविल कोड में शामिल करके आदिवासियों को नाराज किया जाए.आइए एक नजर डालते हैं कहां पर कितनी आदिवासी सीटें हैं.

राज्य के अनुसार लोकसभा की सीटें

  1. मध्यप्रदेश- 6
  2. झारखंड-5
  3. ओडिशा-5
  4. गुजरात-4
  5. महाराष्ट्र-4
  6. छत्तीसगढ़-4
  7. राजस्थान-3
  8. आंध्रप्रदेश-3
  9. कर्नाटक-2
  10. मेघालय-2
  11. असम-2
  12. पश्चिम बंगाल-2
  13. मिजोरम-1
  14. मणिपुर-1
  15. त्रिपुरा-1
  16. दादर नगर हवेली-1
  17. लक्षदीप-1

यूसीसी को लेकर आदिवासी और केंद्र की स्थिति : आदिवासी समाज इस बात को लेकर चिंतित है कि यदि भारत सरकार ने किसी कानून को लागू किया और उसके अंदर आदिवासी आए तो निश्चित तौर पर उनकी परंपराओं पर इसका बड़ा असर पड़ेगा. क्योंकि कानून ना मानने पर अन्य समुदायों पर जो दंड लागू होंगे, वो आदिवासियों पर भी लागू होंगे. भले ही रुढ़ी परंपरा के मुताबिक आदिवासी सही हो इसलिए यूसीसी को लेकर आदिवासी इसके हर एक बिंदु को सार्वजनिक करके चर्चा चाहते हैं ताकि किसी भी तरह का गतिरोध कानून को लागू करने पर ना हो. वहीं दूसरी तरफ केंद्र भी आदिवासी समाज के यूसीसी को लेकर विरोध को दरकिनार नहीं कर सकता. क्योंकि कहीं ना कहीं इससे आने वाला चुनाव प्रभावित हो सकता है.

Tribal Society Concern About UCC
यूसीसी पर आदिवासी समाज की राय
Last Updated : Jul 6, 2023, 6:26 AM IST
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