नई दिल्ली : केंद्रीय ट्रेड यूनियनों का संयुक्त मंच आने वाले महीनों में किसान संघों के समर्थन से बड़े आंदोलन शुरू करने की योजना बना रहा है. केंद्रीय ट्रेड यूनियनों की मंगलवार को समाप्त हुई राष्ट्रव्यापी आम हड़ताल को विभिन्न क्षेत्रों के मजदूर वर्ग और विभिन्न वर्गों से भी प्रतिक्रिया मिली है. आम हड़ताल के दूसरे और अंतिम दिन विभिन्न क्षेत्रों के कार्यकर्ताओं के साथ नेता केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए नई दिल्ली के जंतर मंतर पर एकत्र हुए. श्रमिक संघ श्रम संहिता को निरस्त करने, ठेका श्रमिकों के नियमितीकरण, निश्चित बेरोजगारी मुआवजा, पुरानी पेंशन योजना समेत अपनी 12 सूत्रीय मांगों काे लेकर विरोध जता रहा है.
'ईटीवी भारत' ने अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस की महासचिव (General Secretary of All India Trade Union Congress) अमरजीत कौर से बात की. अमरजीत कौर ने दावा किया कि विभिन्न क्षेत्रों और वर्गों के 20 करोड़ से ज्यादा लोग इस दो दिवसीय आम हड़ताल में शामिल हुए. अमरजीत कौर ने कहा कि 'हमारे आंदोलन का संदेश सरकार तक पहुंच गया है क्योंकि किसान भी हड़ताल में श्रमिकों के साथ शामिल हो गए हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में भी बंदी देखी गई है, जहां आम तौर पर मजदूर वर्ग पहले हड़ताल में भाग नहीं लेते थे लेकिन इस बार उन्होंने भाग लिया है.'
हड़ताल में 20 करोड़ लोगों के शामिल होने का दावा : उन्होंने कहा कि रक्षा और रेलवे कर्मचारी हालांकि हड़ताल में शामिल नहीं हो सके लेकिन उन्होंने लामबंदी में समर्थन किया. इसके अलावा, असंगठित क्षेत्र के श्रमिक जिनमें निर्माण से जुड़े, बीड़ी कारखानों में काम करने वाले, निजी परिवहन और हेड लोड श्रमिकों ने भी हड़ताल में भाग लिया. आंदोलन को सफल बनाने के लिए आशा और मिड-डे मील वर्कर भी भारी संख्या में सामने आए हैं. उन्होंने कहा कि 'करीब 54 करोड़ कर्मचारी हैं. हमनें न केवल सरकारी क्षेत्र के श्रमिकों को जुटाया है, बल्कि नौकरी के इच्छुक लोगों, बेरोजगारों, अपनी नौकरी गंवाने वालों और सभी क्षेत्रों के लोगों का समर्थन जुटाया है. यही कारण है कि हम हड़ताल में 20 करोड़ से अधिक श्रमिकों के समर्थन का दावा करते हैं.'
'मोदी सरकार के लिए बड़ा संकेत' : उन्होंने कहा कि 'यह मोदी सरकार के लिए बड़ा संकेत है, उन्हें संज्ञान लेना चाहिए अन्यथा आने वाले दिनों में हमारा आंदोलन और तेज होने वाला है.' हालांकि भारतीय मजदूर संघ ने दो दिवसीय आम हड़ताल में भाग नहीं लिया या समर्थन नहीं किया, लेकिन उसके नेता सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण, चार श्रम संहिताओं के कुछ खंडों और नई पेंशन योजना के खिलाफ भी मुखर रहे हैं. हड़ताल में भाग लेने वाली बाकी ट्रेड यूनियनें लेबर कोड को पूरी तरह से वापस लेने की मांग कर रही हैं, जबकि बीएमएस ने उनमें केवल कुछ संशोधनों की मांग की है.
एआईसीटीयू की महासचिव ने कहा कि 'हमने अब निजीकरण और विनिवेश शब्द को हटा दिया है क्योंकि यह सरकार इस देश की संपत्ति बेचने की आर्थिक नीति की ओर बढ़ रही है. जहां तक लेबर कोड का सवाल है, सरकार जानती थी कि उन्हें मजदूर वर्ग के भारी विरोध का सामना करना पड़ेगा, इसलिए वह इसे ऐसे समय में लाई जब देश कोविड -19 महामारी के कारण लॉकडाउन से गुजर रहा था.' उन्होंने कहा कि 'हमने सरकार से मुद्दों को हल करने और इन संहिताओं को नहीं लाने के लिए कहा था लेकिन उन्होंने संसद में चर्चा तक नहीं की. हम श्रम कानूनों में बदलाव के खिलाफ कभी नहीं थे लेकिन सरकार ने बिना विचार विमर्श किए जो श्रम विरोधी संहिता प्रस्तुत की है वह मजदूर वर्ग को स्वीकार्य नहीं है.'
उन्होंने कहा कि नई श्रम संहिताओं में सरकार ने हड़ताल पर जाने का अधिकार छीन लिया है, श्रमिक संघ बनाना मुश्किल बना दिया है, यह ट्रेड यूनियनों की मान्यता समाप्त करने की बात करता है और यूनियन नेताओं को गिरफ्तार करने और जेल भेजने का भी प्रावधान है. मजदूरी हो, व्यावसायिक सुरक्षा स्वास्थ्य संहिता हो या सामाजिक सुरक्षा संहिता, वे श्रम संहिता के दायरे से श्रम बल के अधिकांश हिस्से को बाहर कर रहे हैं.
श्रमिक संघ चाहते हैं कि श्रम सम्मेलन आयोजित किया जाए और श्रम कानूनों के मामले पर त्रिपक्षीय रूप में चर्चा की जाए, जहां हितधारक और सरकार आम सहमति पर आ जाए और फिर श्रम संहिता का गठन किया जाए. केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच के 12 सूत्री चार्टर में किसान संघों की 6 लंबित मांगों को भी शामिल किया गया है. इसे केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के किसान संघों के संयुक्त मंच संयुक्त किसान मोर्चा को अपने आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है. इसके जरिए वह सरकार पर ज्यादा से ज्यादा दबाव बनाना चाहते हैं.
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