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बर्फ की चादर से लकदक ओम पर्वत, दीदार को पहुंच रहे सैलानी

उत्तराखंड के सीमांत जनपद पिथौरागढ़ में सैलानियों का आगमन बढ़ रहा है. पर्यटन स्थलों में खुबसुरत नजारों का दीदार करने के लिए देश-विदेश से सैलानी पहुंच रहे हैं. वहीं, बर्फ की चादर से लकदक विश्व प्रसिद्ध ओम पर्वत देखने लायक है.

बर्फ की चादर
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Published : Nov 2, 2021, 8:58 AM IST

पिथौरागढ़ : उत्तराखंड स्थित विश्व प्रसिद्ध ओम पर्वत के दीदार के लिए भारी तादात में सैलानी नाभीढांग पहुंच रहे हैं. बीते दिनों हुई भारी बर्फबारी के बाद ये पूरा इलाका बर्फ ढका हुआ है. इस इलाके में तीन फीट से अधिक बर्फ की चादर पड़ी हुई हैं. बर्फ से लकदक चारों तरफ की पहाड़ियों का नजारा अत्यंत मनमोहक है. वहीं, शिव के धाम ओम पर्वत का नजारा देखते ही बन रहा है.

उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बीते दिनों हुई भारी बर्फबारी के कारण रास्ते बंद होने से ओम पर्वत के दर्शन के लिए आए सैकड़ों सैलानी फंस गए थे. जिन्हें प्रशासन द्वारा हेलीकॉप्टर की मदद से रेस्क्यू किया गया था. वहीं, अब मौसम साफ होने पर ओम पर्वत के दर्शन के लिए नाभीढांग में सैलानियों का तांता लगा हुआ है. ईटीवी भारत संवाददाता ने 14 हजार फीट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित नाभीढांग पहुंचकर हालात का जायजा लिया है.

ओम पर्वत के दीदार के लिए पहुंच रहे सैलानी

इनरलाइन पास बनाना जरूरी

नाभीढांग को जोड़ने वाले रास्ते पर तीन फीट से अधिक बर्फ पड़ी थी. जिसे बीआरओ ने आवाजाही के लिए खोल दिया है. ऐसे में भारी तादाद में देशभर से आए सैलानी ओम पर्वत के दर्शन के लिए नाभीढांग पहुंच रहे हैं. चीन और नेपाल का बॉर्डर होने के कारण यहां इनरलाइन छियालेख से आगे बढ़ने के लिए पर्यटकों को इनरलाइन पास बनाना पड़ता है.

बता दें कि आठ मई 2020 को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा लिपुलेख सड़क का उद्घाटन करने के बाद ओम पर्वत तक आवाजाही आसान हो गई हैं. जबकि, इससे पहले ओम पर्वत के दर्शन के लिए नजंग से मालपा, बूंदी, गर्बयांग होते हुए 69 किमी की पैदल चढ़ाई को पार कर नाभीढांग पहुंचना पड़ता था. लेकिन, अब चीन सीमा से सटे लिपुलेख तक सड़क की कटिंग पूरी होने के बाद यहां का सफर और आसान हो गया है. हालांकि, इस सड़क पर चौड़ीकरण और हॉटमिक्स का कार्य होना बाकी है. आध्यात्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत संगम होने के कारण अब इस पूरे इलाके को विश्व पर्यटन के मानचित्र में स्थापित करने की मांग उठने लगी है.

पढ़ें : हिमाचल में पटरी पर लौट रहा पर्यटन कारोबार, बड़ी संख्या में पहुंच रहे सैलानी

ओम की बनती है आकृति

हिंदू धार्मिक मान्यताओं और पुराणों के अनुसार, भगवान शिव हिमालय के कैलाश मानसरोवर पर वास करते हैं. ओम पर्वत हिमालय के पर्वत श्रृंखला में से एक है. माना जाता है कि इस जगह भी भगवान शिव का अस्तित्व है. यह पर्वत भारत और तिब्बत की सीमा पर आज भी मौजूद है जहां हर साल बर्फ से ओम की आकृति बनती है.

ओम पर्वत को आदि कैलाश या छोटा कैलाश भी कहा जाता है. ओम पर्वत की ऊंचाई समुद्र तल से 6,191 मीटर (20,312 फीट) है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार, हिमालय में कुल आठ जगह ओम की आकृति बनती है, लेकिन अभी तक सिर्फ इसी स्थान की खोज हुई है. इस पर्वत पर बर्फ गिरने से प्राकृतिक रूप से ओम की ध्वनि उत्पन्न होती है. ओम पर्वत तक ट्रेकिंग के जरिये भी पहुंचा जा सकता है.

कैलाश मानसरोवर का महत्व

कैलाश मानसरोवर को शिव-पार्वती का घर माना जाता है. सदियों से देवता, दानव, योगी, मुनि और सिद्ध महात्मा यहां तपस्या करते आए हैं. मान्यता के अनुसार, जो व्यक्ति मानसरोवर (झील) की धरती को छू लेता है, वह ब्रह्मा के बनाए स्वर्ग में पहुंच जाता है. जो व्यक्ति झील का पानी पी लेता है, उसे भगवान शिव के बनाए स्वर्ग में जाने का अधिकार मिल जाता है.

पिथौरागढ़ : उत्तराखंड स्थित विश्व प्रसिद्ध ओम पर्वत के दीदार के लिए भारी तादात में सैलानी नाभीढांग पहुंच रहे हैं. बीते दिनों हुई भारी बर्फबारी के बाद ये पूरा इलाका बर्फ ढका हुआ है. इस इलाके में तीन फीट से अधिक बर्फ की चादर पड़ी हुई हैं. बर्फ से लकदक चारों तरफ की पहाड़ियों का नजारा अत्यंत मनमोहक है. वहीं, शिव के धाम ओम पर्वत का नजारा देखते ही बन रहा है.

उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बीते दिनों हुई भारी बर्फबारी के कारण रास्ते बंद होने से ओम पर्वत के दर्शन के लिए आए सैकड़ों सैलानी फंस गए थे. जिन्हें प्रशासन द्वारा हेलीकॉप्टर की मदद से रेस्क्यू किया गया था. वहीं, अब मौसम साफ होने पर ओम पर्वत के दर्शन के लिए नाभीढांग में सैलानियों का तांता लगा हुआ है. ईटीवी भारत संवाददाता ने 14 हजार फीट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित नाभीढांग पहुंचकर हालात का जायजा लिया है.

ओम पर्वत के दीदार के लिए पहुंच रहे सैलानी

इनरलाइन पास बनाना जरूरी

नाभीढांग को जोड़ने वाले रास्ते पर तीन फीट से अधिक बर्फ पड़ी थी. जिसे बीआरओ ने आवाजाही के लिए खोल दिया है. ऐसे में भारी तादाद में देशभर से आए सैलानी ओम पर्वत के दर्शन के लिए नाभीढांग पहुंच रहे हैं. चीन और नेपाल का बॉर्डर होने के कारण यहां इनरलाइन छियालेख से आगे बढ़ने के लिए पर्यटकों को इनरलाइन पास बनाना पड़ता है.

बता दें कि आठ मई 2020 को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा लिपुलेख सड़क का उद्घाटन करने के बाद ओम पर्वत तक आवाजाही आसान हो गई हैं. जबकि, इससे पहले ओम पर्वत के दर्शन के लिए नजंग से मालपा, बूंदी, गर्बयांग होते हुए 69 किमी की पैदल चढ़ाई को पार कर नाभीढांग पहुंचना पड़ता था. लेकिन, अब चीन सीमा से सटे लिपुलेख तक सड़क की कटिंग पूरी होने के बाद यहां का सफर और आसान हो गया है. हालांकि, इस सड़क पर चौड़ीकरण और हॉटमिक्स का कार्य होना बाकी है. आध्यात्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत संगम होने के कारण अब इस पूरे इलाके को विश्व पर्यटन के मानचित्र में स्थापित करने की मांग उठने लगी है.

पढ़ें : हिमाचल में पटरी पर लौट रहा पर्यटन कारोबार, बड़ी संख्या में पहुंच रहे सैलानी

ओम की बनती है आकृति

हिंदू धार्मिक मान्यताओं और पुराणों के अनुसार, भगवान शिव हिमालय के कैलाश मानसरोवर पर वास करते हैं. ओम पर्वत हिमालय के पर्वत श्रृंखला में से एक है. माना जाता है कि इस जगह भी भगवान शिव का अस्तित्व है. यह पर्वत भारत और तिब्बत की सीमा पर आज भी मौजूद है जहां हर साल बर्फ से ओम की आकृति बनती है.

ओम पर्वत को आदि कैलाश या छोटा कैलाश भी कहा जाता है. ओम पर्वत की ऊंचाई समुद्र तल से 6,191 मीटर (20,312 फीट) है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार, हिमालय में कुल आठ जगह ओम की आकृति बनती है, लेकिन अभी तक सिर्फ इसी स्थान की खोज हुई है. इस पर्वत पर बर्फ गिरने से प्राकृतिक रूप से ओम की ध्वनि उत्पन्न होती है. ओम पर्वत तक ट्रेकिंग के जरिये भी पहुंचा जा सकता है.

कैलाश मानसरोवर का महत्व

कैलाश मानसरोवर को शिव-पार्वती का घर माना जाता है. सदियों से देवता, दानव, योगी, मुनि और सिद्ध महात्मा यहां तपस्या करते आए हैं. मान्यता के अनुसार, जो व्यक्ति मानसरोवर (झील) की धरती को छू लेता है, वह ब्रह्मा के बनाए स्वर्ग में पहुंच जाता है. जो व्यक्ति झील का पानी पी लेता है, उसे भगवान शिव के बनाए स्वर्ग में जाने का अधिकार मिल जाता है.

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