हैदराबाद: दुनिया का सबसे बड़ा खेल आयोजन ओलंपिक इन दिनों जापान की राजधानी टोक्यो में खेला जा रहा है. दुनिया के 205 देशों के खिलाड़ी यहां एक दूसरे को पछाड़कर पदक जीतने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं. वैसे इस ओलंपिक तक पहुंचे ये खिलाड़ी अपना खून पसीना एक करके बीते 4 साल में कई प्रतियोगिताओं में जीत का परचम लहराने के बाद यहां पहुंचे हैं. इसलिए कहते हैं कि पदक जीतना तो छोड़िये ओलंपिक में हिस्सा लेना ही एक उपलब्धि है. लेकिन कुछ खिलाड़ियों के लिए इस उपलब्धि से ज्यादा कुछ और मायने रखता है.
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माजरा क्या है ?
टोक्यो ओलंपिक की जूडो प्रतियोगिता के दौरान सूडान के एक खिलाड़ी ने इज़रायल के एक खिलाड़ी से लड़ने से इनकार कर दिया. दरअसल सोमवार को जूडो में पुरुषों की 73 किलो भार वर्ग में सूडान के मोहम्मद अब्दुल रसूल को इजरायल के तोहार बुटबुल (Tohar Butbul) से भिड़ना था. लेकिन सूडान के खिलाड़ी ने खेलने से इनकार कर दिया और वो मुकाबले में आए ही नहीं. वैसे 469 वीं रैकिंग वाले सूडान के मोहम्मद अब्दुल रसूल के जीतने की उम्मीद कम थी क्योंकी इजरायली खिलाड़ी की रैंकिंग 7 है.
इजरायल के तोहार बुटबुल के साथ ये दूसरी बार हुआ
इससे पहले शनिवार 25 जुलाई को अल्जीरिया के फेथी नूरिन (Fethi Nourine) के साथ तोहार बुटबुल का मैच होना था लेकिन फेथी नूरिन ने बुटबुल का सामना करने की बजाय ओलंपिक से हटने का फैसला किया. वैसे फेथी नूरिन ने इजरायली प्रतिद्वंदी का सामना करने से बचने के लिए साल 2019 के विश्व चैंपियनशिप से नाम वापस ले लिया था.
फिलिस्तीन है इसकी वजह
इजरायल के खिलाड़ी के साथ दो खिलाड़ियों के खिलाड़ियों के खेलने से इनकार के पीछे फिलिस्तीन को वजह माना जा रहा है. दरअसल इजरायल और फिलिस्तीन के बीच लगातार होने वाले खूनी संघर्ष में दुनिया दो हिस्सों में बंटी हुई नजर आती है. कुछ देश यहूदियों के देश इजरायल का समर्थन करती है तो कुछ मुस्लिम देश फिलिस्तीन का. इसकी पूरी कहानी आपको आगे बताएंगे.
सूडान के खिलाड़ी ने ओलंपिक क्यों छोड़ा इसकी वजह तो साफ नहीं है लेकिन अल्जीरिया के खिलाड़ी फतेही नूरीन ने मीडिया को बताया कि हमने इस प्रतियोगिता के लिए बहुत तैयारी की है मगर फिलिस्तीनियों का मुद्दा इससे बड़ा है. यानि नूरिन ने फिलिस्तीन के समर्थन में इजरायल के खिलाड़ी के साथ मैच नहीं खेला. नौरीन ने कहा कि वो इज़रायल के अत्याचार के खिलाफ फिलिस्तीन का समर्थन करते हैं.
अल्जीरियाई खिलाड़ी पर हुआ एक्शन
अल्जीरिया के नूरिन के फैसले के बाद उन्हें खेल से सस्पेंड कर दिया और टोक्यो छोड़कर अपने देश वापस भेज दिया गया. नूरिन के कोच ने कहा कि 'हमें एक इजरायली प्रतिद्वंदी मिला था और हमने खेल छोड़ने का सही फैसला लिया'. इंटरनेशनल जूडो फेडरेशन ने नूरिन के साथ उनके कोच को भी सस्पेंड कर दिया है. ओलंपिक के बाद फेडरेशन उनपर आगे की कार्रवाई कर सकती है.
फेडरेशन ने कहा, 'हमारी सख्त गैर-भेदभाव नीति है, जो एक प्रमुख सिद्धांत के रूप में एकजुटता को बढ़ावा देती है, नूरिन का फैसला 'इंटरनेशनल जूडो फेडरेशन के पूर्ण विरोध में था. अल्जीरियाई ओलंपिक समिति ने एथलीट और कोच दोनों के लिए मान्यता वापस ले ली और उन्हें घर भेज दिया है. इसके बाद प्रतिबंधों को लागू किया जाएगा.
इजरायल और फिलिस्तीन की कहानी
बीती 12 मई को एक बार फिर इजरायल और फिलिस्तीन के बीच रॉकेट दागने और एयर स्ट्राइक का दौर शुरू हुआ. दोनों तरफ जानें गई लेकिन फिलिस्तीन को अधिक जान और माल का नुकसान झेलना पड़ा. इजरायल और फिलिस्तीन के बीच ये दशकों पुराना अनसुलझा संघर्ष है जो बार-बार उभरकर आता है और दुनिया दो खेमों में बंट जाती है. ज्यादातर मुस्लिम देश फिलिस्तीन का समर्थन करते हैं और दुनिया की बड़ी ताकतें इज़रायल का.
दूसरे विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन ने इस क्षेत्र से अपना नियंत्रण हटा लिया और यहूदियों के लिए एक देश के निर्माण की घोषणा कर दी. साल 1948 में ब्रिटेन ने इजरायल को एक देश के रूप में मान्यता दे दी. लेकिन ना फिलिस्तीनियों ने इसे कबूल किया और ना ही दूसरे अरब देशों ने. तब से अब तक अरब देशों के अलावा अपने तमाम पड़ोसी देशों के साथ इजरायल युद्ध लड़ चुका है. इस दौरान इजरायल ने पूर्वी यरुशलम और वेस्ट बैंक पर भी कब्जा कर लिया और मामला और भी पेचीदा होता गया.
1948 के बाद से अरब देशों से लेकर तमाम पड़ोसी देशों ने इज़रायल पर हमला किया लेकिन जीत इजरायल की हुई. मसला हल होने की बजाय और पेचीदा होता गया और इजरायल फिलिस्तीन के बीच एक अंतहीन जंग जारी रही. इस जंग हमेशा सीज़फायर भी होता है लेकिन हर हमले और खूनी संघर्ष में आम जनता पिसती है. ज्यादा नुकसान फिलिस्तीन को होता है.
ओलंपिक में इस 'खेल' से खेल की मर्यादा को नुकसान
इजरायल और फिलिस्तीन के बीच इस साल उपजे तनाव के बाद फिलहाल शांति है लेकिन दो मुल्कों की जंग में कई निर्दोष लोगों ने अपनी जान गंवाई है. मुद्दा दो देशों का भी है और अंतरराष्ट्रीय भी, जिसपर चर्चा करने के लिए दुनियाभर में कई मंच हैं. लेकिन ओलंपिक खेलों के दौरान इस मसले पर अल्जीरियाई खिलाड़ी की प्रतिक्रिया ने नई बहस शुरू कर दी है.
दो मुल्कों की सरहदों से निलकर ये मसला अब खेल के मैदान तक पहुंच गया है. इजरायल के हमलों में फिलिस्तीन के नागरिकों की मौत को लेकर इजरायल ज्यादातर मुस्लिम देशों के निशाने पर रहता है. जिसका असर ओलंपिक में भी दिख रहा है. सवाल है कि क्या ओलंपिक जैसा मंच या किसी भी खेल आयोजन में इस तरह का विरोध सही है. सोशल मीडिया पर भले एक तबका अल्जीरिया खिलाड़ी के समर्थन में हो लेकिन सच यही है कि इससे खेल की मर्यादा को नुकसान हुआ है. इस तरह की सोच के लिए खासकर खेल के मैदान में कोई जगह नहीं है, जहां पूरी दुनिया के खिलाड़ी एक साथ अपना हुनर दिखाते हैं.
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