नई दिल्ली: संसद के मौजूदा मानसून सत्र में मणिपुर हिंसा पर चर्चा को लेकर जारी गतिरोध के बीच, प्रसिद्ध संवैधानिक विशेषज्ञ और लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचार्य (former secretary general of Lok Sabha PDT Achary) ने कहा है कि सत्तारूढ़ और विपक्षी, दोनों दलों को राज्यसभा में नियम 167 के तहत इस मामले पर चर्चा करनी चाहिए और संकट का समाधान करना चाहिए.
पूर्व महासचिव पीडीटी आचार्य ने कहा, 'विपक्ष और सत्तारूढ़ दल को एक साथ बैठना चाहिए और वास्तव में, ऐसे मतभेदों को हल करने के लिए सलाहकार समिति की व्यवस्था है. जिसकी अध्यक्षता एक चेयरमैन करता है. राज्यसभा में यह उपाध्यक्ष होता है और लोकसभा में यह अध्यक्ष होता है जो सलाहकार समिति की अध्यक्षता करता है. और सभी राजनीतिक दलों के नेता समिति का प्रतिनिधित्व करते हैं.'
आचार्य ने कहा कि 'सदन चलाने के लिए उनकी सामूहिक चर्चा बहुत जरूरी है. और इसके लिए यह तय करना जरूरी है कि किस नियम के तहत चर्चा होगी.'
विपक्ष मांग कर रहा है कि सभी कामकाज को निलंबित कर दिया जाए और प्रधानमंत्री स्वत: संज्ञान लेकर बयान दें और इसके बाद राज्यसभा में नियम 267 के तहत चर्चा कराई जाए, जबकि सरकार राज्यसभा में नियम 176 के तहत अल्पकालिक चर्चा के लिए सहमत हो गई है.
उन्होंने कहा कि 'राज्यसभा में नियम 267 किसी नियम के निलंबन से संबंधित है. लोकसभा में आपका यही नियम है 388. ये दोनों नियम एक जैसे हैं. इस नियम का उद्देश्य नियम पुस्तिका में किसी विशेष नियम को अस्थायी रूप से निलंबित करना है.'
नियम 167 का जिक्र करते हुए आचार्य ने कहा कि नियम 167 के तहत एक प्रस्ताव पेश किया जा सकता है और आगे चर्चा भी की जा सकती है और चर्चा के अंत में वोटिंग होगी.
आचार्य ने बताया कि 'दरअसल विपक्ष को उस पर जोर देना चाहिए. चूंकि लोकसभा में स्थगन प्रस्ताव के बराबर कोई नियम नहीं है, इसलिए उन्हें 167 के तहत प्रस्ताव पर चर्चा के लिए जोर देना चाहिए. 167 के तहत आप एक प्रस्ताव के लिए नोटिस देते हैं और यदि यह स्वीकार किया जाता है तो आप चर्चा कर सकते हैं और चर्चा के अंत में मंत्री जवाब देंगे और प्रस्ताव पेश करने वाले को जवाब देने का अधिकार होगा और दिन के अंत में सदन में मतदान होगा.'
नियम 267 के तहत चर्चा के बाद वोटिंग नहीं होती : उन्होंने कहा कि 'मेरी राय में चर्चा के लिए इसे लागू करना उचित नियम नहीं है. इसका (नियम 267) उद्देश्य किसी विशेष नियम को निलंबित करने तक सीमित है जो सदन में किसी विशेष मामले के रास्ते में आता है.'
उन्होंने कहा कि 'दरअसल, राज्यसभा की नियम पुस्तिका में ऐसा कोई नियम नहीं है, जिसके तहत सदस्य कोई ऐसा मुद्दा उठा सकें जिसमें सार्वजनिक महत्व के मामले पर प्रस्ताव शामिल हो, जो इतना गंभीर और जरूरी हो और वे उस पर अपनी नाराजगी व्यक्त करना चाहते हों, सिवाय नियम 167 के.'
उन्होंने कहा कि ऐसे मामले पर चर्चा करने के लिए जो बहुत जरूरी है, जैसे कि मणिपुर मुद्दा.'वास्तव में राज्यसभा नियम पुस्तिका में ऐसा कोई नियम नहीं है जो उन्हें ऐसा करने में सक्षम बनाता हो.'
इसीलिए विपक्ष इस विशेष नियम 267 की मांग कर रहा है. उन्होंने कहा कि 'वह नियम किसी विशेष नियम को निलंबित करने के लिए ही है.' सरकार छोटी अवधि की चर्चा के लिए राजी हो गई है. आचार्य ने कहा, 'छोटी अवधि में इस मुद्दे पर चर्चा होगी और मामला बिना वोटिंग के खत्म हो जाएगा. मान लीजिए कि विपक्ष इस मुद्दे पर मतदान कराना चाहता है, तो नियम 176 के तहत यह संभव नहीं है. ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है, अगर कोई प्रस्ताव है तो मतदान होगा.'
आचार्य 14वीं और 15वीं लोकसभा के पूर्व महासचिव थे. उन्होंने कहा कि उनके विचार में नियम 267 मणिपुर मुद्दे पर लागू होने वाला सही नियम नहीं है. उन्होंने कहा कि 'दरअसल, वे नियम 167 के तहत प्रस्ताव देंगे. सरकार वोटिंग के जरिए चर्चा नहीं चाहती, इसलिए वे छोटी अवधि की चर्चा पर जोर दे रहे हैं. सरकार को नियम 167 के तहत चर्चा के लिए सहमत होना चाहिए ताकि किसी प्रस्ताव पर चर्चा हो और वोटिंग हो. और यह गतिरोध तोड़ने का तरीका है.'