अहंकार, बल, दर्प, काम तथा क्रोध से मोहित होकर आसुरी व्यक्ति अपने तथा अन्यों के शरीर में स्थित भगवान से ईर्ष्या और वास्तविक धर्म की निंदा करते हैं. सतोगुण मनुष्यों को सारे पाप कर्मों से मुक्त करने वाला है. जो लोग इस गुण में स्थित होते हैं, वे सुख तथा ज्ञान के भाव से बंध जाते हैं. काम, क्रोध और लोभ. प्रत्येक बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि इन्हें त्याग दे, क्योंकि इनसे आत्मा का पतन होता है. सतोगुण मनुष्य को सुख से बांधता है, रजोगुण सकाम कर्म से बांधता है और तमोगुण मनुष्य के ज्ञान को ढक कर उसे पागलपन से बांधता है. रजोगुण की उत्पत्ति असीम आकांक्षाओं तथा तृष्णाओं से होती है और इसी के कारण से यह देहधारी जीव सकाम कर्मों से बंध जाता है.
अज्ञान से उत्पन्न तमोगुण समस्त देहधारी जीवों का मोह है. इस गुण के प्रतिफल पागलपन, आलस तथा नींद हैं, जो जीव को बांधते हैं. मनुष्य के मन मस्तिष्क में सतोगुण, रजोगुण तथा तमोगुण में श्रेष्ठता के लिए निरन्तर स्पर्धा चलती रहती है. जब रजोगुण में वृद्धि हो जाती है, तो अत्यधिक आसक्ति, सकाम कर्म, गहन उद्यम तथा अनियंत्रित इच्छा एवं लालसा के लक्षण प्रकट होते हैं. जब तमोगुण में वृद्धि हो जाती है, तो अंधेरा, जड़ता, लापरवाही, उन्माद तथा मोह का प्राकट्य होता है. सतोगुण से वास्तविक ज्ञान उत्पन्न होता है, रजोगुण से लोभ उत्पन्न होता है और तमोगुण से अज्ञान, प्रमाद और मोह उत्पन्न होता हैं. सतोगुण की अभिव्यक्ति को तभी अनुभव किया जा सकता है, जब शरीर के सारे द्वार ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित होते हैं.