हैदराबाद: पटना में लोजपा ऑफिस के बाहर लगा चिराग पासवान का बोर्ड हटाया जा चुका है. अब पार्टी कार्यालय में पशुपति कुमार पारस का बोर्ड, अध्यक्ष के रूप में लगाया गया है. दरअसल सोमवार सुबह से शुरू हुआ लोजपा में शुरु हुई चाचा-भतीजे की जंग शाम होते-होते इस अंजाम तक पहुंच गई. पशुपति पारस को लोकसभा में लोजपा के संसदीय दल के नेता के तौर पर मान्यता मिल गई.
चिराग के चाचा ने बोर्ड बदला
पटना के लोजपा कार्यालय को फिलहाल पूरी तरह से बंद रखा गया है. पार्टी कार्यालय में मौजूद गार्ड बताते है कि कार्यालय को खोलने का आदेश नहीं है, लेकिन जिस तरह से अब पटना के लोजपा कार्यालय में लोजपा अध्यक्ष के रूप में पशुपति कुमार पारस को दिखाया गया है इससे स्पष्ट है कि कार्यकर्ता भी पारस के साथ हैं.
लोजपा सांसदों ने पशुपति पारस को चुना नेता
लोक जनशक्ति पार्टी के छह में से पांच सांसदों समस्तीपुर से सांसद प्रिंस राज पासवान (Prince Raj Paswan), वैशाली से सांसद वीणा देवी(Veena Devi), खगड़िया से सांसद महबूब अली कैसर (Mehboob Ali Kaiser) और नवादा से सांसद चंदन सिंह (Chandan Singh) ने पशुपति कुमार पारस (Pashupati Paras) को अपना नेता बनाया है.
भतीजे से नहीं मिले चाचा
चाचा समेत तमाम सांसदों की नाराजगी के बीच चिराग पासवान खुद अपने चाचा पशुपति पारस के घर पहुंचे. हालांकि काफी देर तक उन्हें गेट पर ही इंतजार करना पड़ा. करीब 25 मिनट इंतजार करने के बाद चिराग घर में दाखिल हो सके. लेकिन चाचा के साथ मुलाकात नहीं हो पाई.
विधानसभा चुनाव के समय से नाराजगी
दरअसल, बिहार विधानसभा चुनाव में लोजपा ने एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ा था. पार्टी ने जदयू के खिलाफ हर सीट पर अपना उम्मीदवार भी उतारा था. जिसके कारण जदयू को काफी नुकसान भी हुआ था. तब से ही आशंका जताई जा रही थी कि आज ना कल सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) लोजपा में पाला बदलवाने का खेल जरूर करेंगे.
नीतीश से दुश्मनी महंगी पड़ी
लोजपा संकट के पीछे का कारण चिराग पासवान का विधानसभा चुनाव से ठीक पहले एनडीए से अलग होना माना जा रहा है. साथ ही चिराग की जेडीयू अध्यक्ष व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ बयानबाजी भी उन पर भारी पड़ती दिख रही है.
चिराग पासवान ने विधानसभा चुनाव से पहले ही नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोला था. चिराग एक तरफ जहां नीतीश कुमार पर व्यक्तिगत हमले कर रहे थे तो वहीं पीएम नरेंद्र मोदी का गुणगान करते नहीं थके. जबकि जेडीयू भी एनडीए का ही हिस्सा थी.
चिराग के इस दोहरे आचरण के कारण उन पर विधानसभा चुनाव में भाजपा से साठगांठ के भी आरोप लगे थे, क्योंकि लोजपा ने सिर्फ जेडीयू उम्मीदवारों के खिलाफ ही अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे थे. माना जाता है कि चिराग की नीतीश कुमार के खिलाफ लगातार बयानबाजी के कारण ही बिहार विधानसभा चुनाव-2020 में जेडीयू की सीटें घटीं और भाजपा की सीटें बढ़ गईं.
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पशुपति पारस ने की थी नीतीश की तरीफ
चिराग पासवान के रवैये से उनके चाचा पशुपति पारस खुश नहीं थे. इस बात की जानकारी सीएम नीतीश को भी थी. इसके बाद नीतीश ने परिवार और पार्टी, दोनों में 'खेल' करने के लिए अपने योद्धाओं को मैदान में उतार दिया. बताया जाता है कि पशुपति पारस को मनाने के लिए जेडीयू के वरिष्ठ नेता और विधानसभा उपाध्यक्ष महेश्वर हजारी को कहा गया.पशुपति पारस कर चुके हैं नीतीश की तारीफ
बता दें कि पशुपति पारस ने नीतीश कुमार को विकास पुरुष कहते हुए उनकी तारीफों के पुल बांध दिए थे. प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान उन्होंने कहा कि मैं शुरुआत से एनडीए के साथ रहा हूं, हम एनडीए के साथ रहेंगे. उन्होंने कहा कि वह नीतीश कुमार को एक अच्छा लीडर मानते हैं, वे विकास पुरुष हैं.
कौन हैं पशुपति पारस?
पशुपति कुमार पारस अलौली से पांच बार विधायक रह चुके हैं. उन्होंने जेएनपी उम्मीदवार के रूप में 1977 में अपना पहला विधानसभा चुनाव जीता. तब से वे एलकेडी, जेपी और एलजेपी उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ते रहे हैं. उन्होंने बिहार सरकार में पशु और मछली संसाधन विभाग के मंत्री के रूप में कार्य किया. हाजीपुर से 2019 का संसदीय चुनाव जीता और संसद के सदस्य बने. इसके अलावा, वे लोक जनशक्ति पार्टी की बिहार इकाई के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं.
पशुपति पारस ही हैं पार्टी में इस टूट के सूत्रधार
6 में से 5 सांसदों का साथ पाकर वो अब पार्टी के अध्यक्ष भी बन चुके हैं. सूत्रों के अनुसार, चिराग पासवान के चाचा पशुपति पारस ही पार्टी में इस टूट के सूत्रधार हैं. पशुपति पारस का सीएम नीतीश से हमेशा से अच्छे संबंध रहे हैं. सूत्र ये भी बता रहे हैं कि पार्टी का नया गुणा गणित पांचों सांसदों ने लोकसभा के स्पीकर ओम बिरला को पत्र लिखकर सूचना दे दी है.
चिराग का क्या होगा ?
बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान एनडीए से अलग होकर बिहार चुनाव लड़ने का फैसला गले की फांस बन जाएगा ये चिराग ने भी नहीं सोचा होगा. चुनाव में पार्टी एक ही सीट जीत पाई और वो विधायक भी चुनाव के तीन महीने बाद जेडीयू में चले गए. अब अध्यक्ष की कुर्सी और सांसदों का साथ खोने के बाद एक बड़ा सवालिया निशान चिराग पासवान के सामने खड़ा है. जिसका जवाब शायद चिराग पासवान के पास भी नहीं होगा.