भोपाल। एक तरफ केंद्र सरकार 2025 तक देश को टीबी मुक्त बनाने का संकल्प लिए हुए हैं. वहीं दूसरी ओर प्रदेश के 1.60 लाख से ज्यादा टीबी मरीजों को दवाएं ही नहीं मिल रहीं. हालात यह है कि मरीजों को आधा अधूरा या दूसरी सब्टीट्यूट दवाओं का डोज लेना पड़ रहा है. तीन महीने से दवाओं का पर्याप्त डोज न लेने से इन मरीजों पर टीबी का संक्रमण बढ़ने का खतरा मंडरा रहा है. (Messing with patients) (Human rights commission took cognizance)
चार की जगह मिल रहीं सिर्फ दो दवाएंः दरअसल टीबी के इलाज में काम आने वाली चार महत्वपूर्ण दवाओं में से दो दवा रिफामपसिन और पायराजिनामाइट दवा की सप्लाई नहीं हो रही. ऐसे में टीबी सेंटरों पर मरीजों को आधा डोज या दूसरी दवाओं का कॉम्बीनेशन दिया जा रहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि दोनों ही स्थितियों में मरीजों की सेहत के साथ खिलवाड़ हो रहा है. टीबी से ग्रसित विवेक शर्मा (बदला हुआ नाम) ने बताया कि पिछले दो महीने से वह चार की जगह सिर्फ दो दवाएं ही ले रहा हैं. कई बार शिकायत भी की, लेकिन सेंटर पर दवा सप्लाई ना होने की बात कही जा रही है. (Only two medicines are available instead of four)
ब्लैक फंगस: दवा-इंजेक्शन का भारी संकट, मरीजों को नहीं मिल रहा इलाज
छह माह तक चलती हैं चार दवाएंः टीबी मरीजों को छह महीने तक चार दवाएं रिफामपसिन, इथीम्बीटॉल, आईएनएच और पायराजिनामाइट दी जाती है. इसमें पहले दो महीने (इंटेसिव पीरिएड) में चारों दवाएं होती हैं. वहीं अगले चार महीनों में (कंन्टीन्यूशन फेज) में पहली तीन दवाएं देते हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक आईपी यानि इंटेसिव पीरिएड महत्वपूर्ण होता है. इन दौरान दवाओं की कमी से मरीजों का संक्रमण बढ़ने का खतरा रहता है. मध्यप्रदेश की सात करोड़ आबादी पर 1.64500 सक्रीय मरीज टीबी के हैं. वहीं प्रदेश में छतरपुर के बाद टीबी के सबसे ज्यादा मरीज भोपाल में मिल रहे हैं. भोपाल में टीबी मरीजोें की संख्या 10600 है. जबकि छतरपुर में 16,000 से ज्यादा मरीज हैं. (Four medicines last for six months)
अधूरे इलाज से हो सकती है समस्याः क्षेत्रीय श्वसन रोग संस्थान के विभागाध्यक्ष डॉ. लोकेंद्र दवे के मुताबिक अलग अलग दवाएं मौजूद नहीं है, लेकिन दवाओं का कॉम्बीनेशन दिया जा रहा है. आधी दवा या अधूरे इलाज से कई तरह की समस्या हो सकती है. मरीजों को इलाज आगे बढ़ाना पड़ सकता है. इसके साथ ही संक्रमण बढ़ने या टीबी के दोबारा लौटने की आशंका बनी रहती है. कॉम्बीनेशन में दवा देने से भी कई बार मरीजों को दिक्कत होती है. वहीं डॉक्टर वर्षा राय, राज्य टीबी अधिकारी का कहना है कि दवाओं की सप्लाई केंद्र के द्वारा की जाती है. जो कर्मचारी टेक्निकल काम करते हैं, उनमें अधिकतर संविदा कर्मचारी हैं जो पिछले 15 दिनों से हड़ताल पर थे, जिसके कारण कुछ समय से दिक्कत थी. हमने सभी जिलों को फंड जारी कर खुद दवाएं खरीदने के निर्देश दिए हैं. जिला टीबी अधिकारी डॉक्टर मनोज वर्मा के अनुसार दवाओं की शॉर्टेज चल रही है, हालांकि अब बजट मिल गया है. जल्द ही दवाओं की कमी दूर हो जाएगी. (Incomplete treatment can cause problems)
1.64 लाख टीबी मरीजों के सामने गंभीर संकटः अब इस मामले में मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग के सदस्य राजीव कुमार टंडन ने संज्ञान लिया है. आयोग के अनुसार मध्यप्रदेश में तीन महीने से टीबी. की दवा खत्म हो जाने के कारण 1.64 लाख टीबी मरीजों के सामने गंभीर संकट खड़ा हो जाने संबंधी रिपोर्ट पर संज्ञान लिया गया. रिपोर्ट में कहा गया है कि टीबी. दवा खत्म हो जाने के कारण इस रोग के मरीजों को आधे-अधूरे डोज या वैकल्पिक दवाओं (सब्स्टीट्यूट मेडिसिन्स) से काम चलाना पड़ रहा है. जिला टीबी. अधिकारी स्वयं यह मानते हैं कि दवाओं की कमी चल रही है. मरीजों को काॅम्बीनेशन वाली दवायें दी जा रही हैं. मामले में आयोग ने विभागाध्यक्ष, क्षेत्रीय श्वसन रोग संस्थान, भोपाल तथा जिला टीबी अधिकारी, भोपाल से जवाब-तलब किया है. (Serious crisis in front of 1.64 lakh TB patients)