नई दिल्ली : पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी के 28 मार्च 2021 (रविवार) के पत्र में राजनीतिक दलों के नेताओं से गैर-भाजपा मोर्चे को मजबूत करने की बात कही गई है.
इसके बाद आए ढेरों बयान यह स्पष्ट करते हैं कि गैर-बीजेपी ताकतों को एकजुट करने के लिए यह प्रेरित करने वाला कदम है. राज्यों में चल रहे विधानसभा चुनाव, जिसका पहला चरण खत्म हो गया है, के बाद की रणनीति को दर्शाता है. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि गैर-भाजपा ताकतों के बीच प्रमुखता के अपने स्थान को मजबूत करने के लिए ममता ने यह कदम उठाया है.
दो मई के नतीजों पर नजर
पश्चिम बंगाल के अलावा राज्य विधानसभाओं के चुनाव चार अन्य राज्यों असम, केरल, पुदुचेरी और तमिलनाडु में हो रहे हैं. जिनमें से भाजपा के लिए यथार्थवादी संभावनाएं केवल असम में ही मौजूद हैं. हालांकि 2 मई के नतीजों का इंतजार करना होगा.
पहले चरण के बाद लिखा गया पत्र
पश्चिम बंगाल में चुनाव आठ चरणों में हो रहे हैं और ममता का पत्र रविवार को 27 मार्च को पहले चरण के मतदान के अगले दिन लिखा गया है. पत्र पाने वालों में कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी, राकांपा सुप्रीमो शरद पवार, द्रमुक, समाजवादी पार्टी, राजद, शिवसेना, झारखंड मुक्ति मोर्चा, आम आदमी पार्टी, बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस, सीपीआई (एमएल), नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी शामिल है.
भाजपा विरोध की रणनीति पर कायम
दरअसल, इन सभी दलों के पास केंद्र के विरोध का कारण है जो ममता के आह्वान को राष्ट्रीय भाजपा-विरोधी मोर्चे को अस्तित्व में लाने का प्रयास माना जा सकता है. जबकि पत्र स्वयं अपनी स्थिति को मजबूत करने का भी एक प्रयास हो सकता है. सबसे दिलचस्प यह है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने मुख्य रूप में सत्तारूढ़ भाजपा के लोकतंत्र और संवैधानिक संघवाद पर हमलों की एक श्रृंखला को संदेश देने के लिए चुना गया.
दिल्ली के विधेयक को बनाया आधार
यहां विवादास्पद कृषि कानूनों या जीएसटी के मुद्दे का विरोध नहीं बल्कि संसद में दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र विधेयक को पारित करने और उप राज्यपास को राष्ट्रीय राजधानी में सर्वव्यापी अधिकार देने संबंधी विधेयक को आधार बनाया गया. पत्र में कहा गया कि यह कदम अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली AAP सरकार को कमजोर करने की नीति है.
दलों के बीच आपसी विवाद भी हैं
इस तरह से विरोधी दलों के विचार भाजपा विरोधी मंच का एक विचार हो यह संभव नहीं दिखता. यह सवाल कि क्या बीजद, वाईएसआर कांग्रेस या सपा जैसे दल इस तरह के मंच में शामिल हो सकते हैं या नहीं. दूसरी बात यह है कि जिन दलों से संपर्क किया है उनमें से कई के बीच आपस में अनबन है. दिल्ली में कांग्रेस व AAP या ममता के साथ CPI (ML) का जाना भी संदेह भरा है.
तीसरे मोर्चे का नेता कौन होगा
तीसरा यह सवाल कि इस मंच में नेतृत्व कौन करेगा. क्या कांग्रेस किसी और के नेतृत्व को स्वीकार करेगी. या फिर ममता जैसी गैर-हिंदी बेल्ट से किसी को संभावित मंच के निर्विवाद नेता के रूप में स्वीकार किया जाएगा?
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संक्षेप में कहा जा सकता है कि यह प्रयास राजनीतिक रूप से गहरी गंभीरता का गुण रखता है लेकिन नतीजे पर बात करना जल्दबाजी होगी. क्योंकि इस तरह की इकाई के आकार लेने से पहले कुछ विरोधाभासों को हल करना होगा.