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डिजिटल युग में महाराष्ट्र के इन 24 गांवों से कब दूर होगा अंधेरा?

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Published : Feb 14, 2021, 3:28 PM IST

मेलघाट में सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला की घाटियों में स्थित 24 गांवों को आज भी बिजली नहीं होने के कारण अंधेरे में रहना पड़ रहा है. इससे उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. वहीं अंधेरा होने से हमेशा सांप के काटने या जंगली जानवरों के हमले का डर बना रहता है. पढ़िये पूरी रिपोर्ट...

गांवों
गांवों

अमरावती : मेलघाट में सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला की घाटियों में स्थित 24 गांवों को आजादी के 74 साल बाद भी बिजली नहीं होने के कारण अंधेरे में रहना पड़ रहा है. एक तरफ, डिजिटल मेलघाट के बारे में दावे किए जा रहे हैं. वहीं दूसरी ओर, अंधेरे में रहने वाले आदिवासी गांवों की कई दुखद कहानियां हैं. ईटीवी भारत संवाददाता ने ऐसे गांवों में से एक, भवई का दौरा किया और तथ्यों को जानने की कोशिश की. इस दौरान कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं.

सांसद नवनीत राणा ने संसद का ध्यान खींचा था

मेलघाट का यह काला सच तब सामने आया, जब अमरावती से सांसद नवनीत राणा ने बिजली की कमी के कारण अंधेरे में रहने वाले 24 गांवों का मुद्दा संसद में उठाया. राणा ने मांग की कि केंद्र सरकार को इन गांवों में बिजली प्रदान करने के लिए एक विशेष योजना को मंजूरी देनी चाहिए.

गांवों में नहीं पहुंची बिजली

आटा चक्की के लिए जाना पड़ता है 16 किलोमीटर दूर

ग्राम पंचायत सदस्य नामली सीताराम कासडेकर ने ग्रामीणों की परेशानियों के बारे में बताया कि बिजली की कमी की समस्या कोई छोटी बात नहीं है. यही वजह है कि हमारे पास टीवी, आटा चक्की, पानी नहीं है और इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि अंधेरा होने से हमेशा सांप के काटने या जंगली जानवरों के हमले का डर बना रहता है. हमें हमेशा ऐसी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है जो हमारे जीवन को खतरे में डालती हैं. वहीं एक ग्रामीण, किशोर जामुनकर, ने बताया कि, मैंने 2007 में डीजल पर एक आटा चक्की शुरू की थी लेकिन, इसका प्रयोग सफल नहीं हुआ और अब ग्रामीणों को इसके लिए 16 किलोमीटर दूर सेमाडोह में स्थित आटा चक्की तक जाना पड़ता है.

पढ़ें : संसद में गूंजा उत्तराखंड ग्लेशियर आपदा का मामला

सौर ऊर्जा पर्याप्त नहीं

2010 में, भवाई के पास चट्टान पर स्थित मखला गांव ने पहली बार महाराष्ट्र ऊर्जा विकास एजेंसी के माध्यम से सौर ऊर्जा लगाई गई थी. 2010 में मखला गांव के घरों में रोशनी पहुंच गई थी. लेकिन भवाई में इस परियोजना को पहुंचने में 11 साल लग गए. महज चार महीने पहले, भवाई गांव में हर घर में 350, पीवी पैनल, 12.8 वाट की बैटरी, एमपीपीटी सोलर चार्ज कंट्रोलर, 7 वाट के 5 एलईडी बल्ब, 20 वॉट का एक पंखा और एक चार्जिंग सर्किट उपलब्ध कराया गया है. एलईडी बल्ब से लोगों को ना केवल रोशनी मिलती है, बल्कि छात्र भी पढ़ या लिख ​​सकते हैं.

ग्रामीणों ने कहा- हमें बिजली चाहिए

भवाई में आदिवासी ग्रामीण सौर ऊर्जा को लेकर काफी नाराज हैं और बिजली चाहते हैं. उनका कहना है कि सौर ऊर्जा पैनल किसी काम का नहीं है. खासकर मानसून के मौसम में, यह बेकार हो जाता है. यही वजह है कि हम टीवी चालू नहीं कर सकते, यह बैटरी कई बार फेल हो जाती है. ग्रामीणों ने कहा कि हम सेमाडोह जैसी बिजली चाहते हैं. यह केवल भवाई ही नहीं, बल्कि अन्य सभी गांवों की मांग है.

पढ़ें : जम्मू-कश्मीर में 50,000 परिवारों को स्वास्थ्य बीमा : शाह

पुनर्वास प्रक्रिया की बाधा

महाराष्ट्र वन्यजीव परिषद के सदस्य यादव तर्ते ने ईटीवी भारत को बताया कि, सरकार स्वैच्छिक आधार पर मेलघाट में कई गांवों के पुनर्वास के लिए प्रयास कर रही है. लेकिन, 10 से 15 गांव पुनर्वास प्रक्रिया के तहत आते हैं, वहीं सुदूर इलाकों में बिजली नहीं पहुंची है. कुछ गांव तो पुनर्वास के लिए तैयार हैं, जबकि कुछ मामलों में, हम कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि, इस भाग में वन्यजीवों को विकसित किया जाना चाहिए.

अमरावती : मेलघाट में सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला की घाटियों में स्थित 24 गांवों को आजादी के 74 साल बाद भी बिजली नहीं होने के कारण अंधेरे में रहना पड़ रहा है. एक तरफ, डिजिटल मेलघाट के बारे में दावे किए जा रहे हैं. वहीं दूसरी ओर, अंधेरे में रहने वाले आदिवासी गांवों की कई दुखद कहानियां हैं. ईटीवी भारत संवाददाता ने ऐसे गांवों में से एक, भवई का दौरा किया और तथ्यों को जानने की कोशिश की. इस दौरान कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं.

सांसद नवनीत राणा ने संसद का ध्यान खींचा था

मेलघाट का यह काला सच तब सामने आया, जब अमरावती से सांसद नवनीत राणा ने बिजली की कमी के कारण अंधेरे में रहने वाले 24 गांवों का मुद्दा संसद में उठाया. राणा ने मांग की कि केंद्र सरकार को इन गांवों में बिजली प्रदान करने के लिए एक विशेष योजना को मंजूरी देनी चाहिए.

गांवों में नहीं पहुंची बिजली

आटा चक्की के लिए जाना पड़ता है 16 किलोमीटर दूर

ग्राम पंचायत सदस्य नामली सीताराम कासडेकर ने ग्रामीणों की परेशानियों के बारे में बताया कि बिजली की कमी की समस्या कोई छोटी बात नहीं है. यही वजह है कि हमारे पास टीवी, आटा चक्की, पानी नहीं है और इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि अंधेरा होने से हमेशा सांप के काटने या जंगली जानवरों के हमले का डर बना रहता है. हमें हमेशा ऐसी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है जो हमारे जीवन को खतरे में डालती हैं. वहीं एक ग्रामीण, किशोर जामुनकर, ने बताया कि, मैंने 2007 में डीजल पर एक आटा चक्की शुरू की थी लेकिन, इसका प्रयोग सफल नहीं हुआ और अब ग्रामीणों को इसके लिए 16 किलोमीटर दूर सेमाडोह में स्थित आटा चक्की तक जाना पड़ता है.

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सौर ऊर्जा पर्याप्त नहीं

2010 में, भवाई के पास चट्टान पर स्थित मखला गांव ने पहली बार महाराष्ट्र ऊर्जा विकास एजेंसी के माध्यम से सौर ऊर्जा लगाई गई थी. 2010 में मखला गांव के घरों में रोशनी पहुंच गई थी. लेकिन भवाई में इस परियोजना को पहुंचने में 11 साल लग गए. महज चार महीने पहले, भवाई गांव में हर घर में 350, पीवी पैनल, 12.8 वाट की बैटरी, एमपीपीटी सोलर चार्ज कंट्रोलर, 7 वाट के 5 एलईडी बल्ब, 20 वॉट का एक पंखा और एक चार्जिंग सर्किट उपलब्ध कराया गया है. एलईडी बल्ब से लोगों को ना केवल रोशनी मिलती है, बल्कि छात्र भी पढ़ या लिख ​​सकते हैं.

ग्रामीणों ने कहा- हमें बिजली चाहिए

भवाई में आदिवासी ग्रामीण सौर ऊर्जा को लेकर काफी नाराज हैं और बिजली चाहते हैं. उनका कहना है कि सौर ऊर्जा पैनल किसी काम का नहीं है. खासकर मानसून के मौसम में, यह बेकार हो जाता है. यही वजह है कि हम टीवी चालू नहीं कर सकते, यह बैटरी कई बार फेल हो जाती है. ग्रामीणों ने कहा कि हम सेमाडोह जैसी बिजली चाहते हैं. यह केवल भवाई ही नहीं, बल्कि अन्य सभी गांवों की मांग है.

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पुनर्वास प्रक्रिया की बाधा

महाराष्ट्र वन्यजीव परिषद के सदस्य यादव तर्ते ने ईटीवी भारत को बताया कि, सरकार स्वैच्छिक आधार पर मेलघाट में कई गांवों के पुनर्वास के लिए प्रयास कर रही है. लेकिन, 10 से 15 गांव पुनर्वास प्रक्रिया के तहत आते हैं, वहीं सुदूर इलाकों में बिजली नहीं पहुंची है. कुछ गांव तो पुनर्वास के लिए तैयार हैं, जबकि कुछ मामलों में, हम कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि, इस भाग में वन्यजीवों को विकसित किया जाना चाहिए.

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