मुंबई: महाराष्ट्र की शिवसेना सरकार ने अपने मुखपत्र सामना के संपादकीय में केंद्र की मोदी सरकार पर हमला बोला है. सामना के संपादकीय में शिवसेना ने लिखा कि विपक्ष को एकजुट होकर 2024 के चुनाव का सामना करना होगा, ऐसा विचार चल रहा है. कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्षा सोनिया गांधी की अगुवाई में देश के विपक्षी दलों की बैठक संपन्न हुई. कांग्रेस सहित 19 राजनैतिक दल इस बैठक में शामिल हुए. 19 दल एकसाथ आए और उन्होंने विपक्ष का 'गठबंधन' बनाने के संदर्भ में चर्चा की.
संपादकीय में लिखते हुए शिवसेना ने कहा कि इस चर्चा से क्या परिणाम हासिल हुआ, यह महत्वपूर्ण है. लोकतंत्र है कहने पर चर्चा तो होगी ही, लेकिन सिर्फ 'चर्चा पे चर्चा' नहीं चाहिए बल्कि देश के सामने एक ठोस कार्यक्रम लेकर जाने की जरूरत है. मोदी सरकार ने फिलहाल अपने मंत्रियों की एक जन आशीर्वाद 'यात्रा' शुरू की है. उस यात्रा में सिर्फ विपक्षी दलों को गाली देना और कोसने का ही काम किया जा रहा है. इस जन आशीर्वाद यात्रा में आधे मंत्री विचार और आचरण से बाहरी अथवा धृष्ट लगते हैं. मतलब कल-परसों भाजपा में घुसे और मंत्री पद की हल्दी लगाकर विवाह की वेदी पर चढ़ गए.
सामना के संपादकीय में लिखा गया कि ये बाहरी भाजपा का प्रचार करते घूम रहे हैं और सालों-साल भाजपा की पालकी ढोने वाले कार्यकर्ता उस 'मेले' में मूर्खों की तरह शामिल हो रहे हैं. ऐसा मजाक महाराष्ट्र सहित देशभर में चलने के दौरान विपक्ष को अधिक सोच-विचार कर कदम बढ़ाने होंगे. 19 राजनीतिक दलों के एकसाथ आने भर से मोदी सरकार हिल जाएगी और चली गई, इस भ्रम में नहीं रहा जा सकता क्योंकि इन 19 में कई पार्टियां ऐसी हैं जिनके किले उजाड़ और जर्जर हो गए हैं. इन जर्जर किलों की मरम्मत करके उन्हें व्यवस्थित किए बिना एकजुटता का असर सामनेवालों पर नहीं होगा.
विपक्ष की एकजुटता का प्रदर्शन करते समय उनकी किलाबंदी जर्जर खंभों पर नहीं होनी चाहिए. पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में मोदी और शाह ने ममता बनर्जी को परास्त करने के लिए आकाश-पाताल एक कर दिया. मोदी की सभा और शाह का चुनावी प्रबंधन मतलब विजय पताका लहराने का विश्वास ही, यह भ्रम ममता बनर्जी ने मिट्टी में मिला दिया. मोदी की 19 सभा होने के बाद भी प. बंगाल में ममता का ही झंडा लहराया और शाह की तमाम राजनैतिक योजनाएं, आर्थिक प्रबंधन परास्त हो गया. मतलब मोदी-शाह की पराजय हो सकती है.
ममता बनर्जी को परेशान करने के लिए केंद्र सरकार सीबीआई, न्यायालय और अन्य सभी एजेंसियों का इस्तेमाल आज भी कर रही है. उसके खिलाफ भी सभी का एकजुट हो जाना चाहिए. प. बंगाल में मोदी-शाह तंत्र-मंत्र नहीं कर सकते. उसी तरह दो साल पहले महाराष्ट्र में राजभवन की प्रतिष्ठा दांव पर लगाकर भी सरकार स्थापित नहीं की जा सकी. तीन पार्टियों की सरकार महाराष्ट्र में बेहतरीन चल रही है. प. बंगाल और महाराष्ट्र में जो हुआ व विपक्ष के लिए एक मार्गदर्शन है. भाजपा की पराजय चुनाव के मैदान में और शतरंज की बिसात में की जा सकती है. यह दो राज्यों ने दिखाया है.
उसके लिए मन व कलाई में लड़ने का साहस होना चाहिए इतना ही. तमिलनाडु में द्रमुक के स्टालिन जीते, केरल में वामपंथियों ने जीत हासिल की. आज उत्तर प्रदेश, असम को छोड़ दें तो किस राज्य में भाजपा की सरकार है. मध्य प्रदेश, कर्नाटक की सरकारें तोड़फोड़, तांबा-पितल से बनाई गई हैं. बिहार में चुनाव आयोग की मदद से साजिश नहीं रची गई होती तो तेजस्वी यादव भारी ही पड़ा होता. राज्यों-राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों का जोर है. ओडिशा, आंध्र प्रदेश की सरकारें फिलहाल दिल्ली में 'जिसका खाएंगे उसी का गाएंगे' ऐसे महान विचारों वाली हैं परंतु कुल मिलाकर देश का माहौल विपक्ष के अनुकूल हो रहा है.
सिर्फ जनता पार्टी की स्थापना के समय सत्ताधारी पार्टी से एक जगजीवन राम बाहर निकले व देश का नजारा बदल गया. उसी तरह एक जगजीवन बाबू को साहस के साथ राष्ट्रहित में खड़ा रहना होगा. भविष्य में ऐसा होगा ही. देश में किसानों की समस्या खड़ी हो गई है, महंगाई, बेरोजगारी है, पेगासस की गंभीरता सरकार समझ नहीं रही है. परंतु कभी तालिबान का भय निर्माण किया जा रहा तो कभी पाकिस्तानियों का डर दिखाकर लोगों को उकसाकर भावनाओं से खेला जा रहा है. आज तालिबानी अफगानिस्तान में खून-खराबा कर रहे हैं और यहां भाजपा के लोग कहते हैं, 'हिंदुस्थान में मोदी हैं इसलिए तालिबानी नहीं है बोलो, भारत माता की जय!' ऐसा प्रचार ये 'यात्रा’ मंत्री-संत्री प्रचार कर रहे हैं. इन तमाम हथकंडों के खिलाफ सभी के एकजुट होने की आवश्यकता है.
एकत्र आने का मतलब सिर्फ लंबी उबाऊ चर्चा करना नहीं है. लोगों को पर्याय चाहिए ही. वह देने की क्षमता हममें हैं ऐसा विश्वास तमाम विपक्षी दलों द्वारा जनता को देना होगा. '2024 का लक्ष्य' आदि ठीक है, लेकिन मोदी-शाह की तरह हाथ की सफाई का कुछ प्रयोग विपक्ष को करना ही होगा. 'मोदी नामा' का जादू उतर गया है. इसलिए 2024 की जय-पराजय हाथ की सफाई के खेल पर ही निर्भर होगी. उसकी तैयारी के लिए जमकर रिहर्सल करनी होगी अन्यथा जन आशीर्वाद की 'यात्रा' लोगों को बेहोशी का मंत्र देकर आगे बढ़ जाएगी!