कच्छ: गुजरात के कच्छ इलाके में मानव आबादी से अधिक मवेशी हैं. कच्छ जिले में 20 लाख मवेशी हैं. ढेलेदार त्वचा रोग (lumpy skin) के रूप में जानी जाने वाली बीमारी हाल ही में मांडवी, अबादसा और लखपत के तालुकों में गायों में फैल गई है. किसानों का कहना है कि इस बीमारी से ग्रसित जानवरों के शरीर में घाव और बुखार भी होता है और इसके परिणामस्वरूप 400 से 500 गायों की मौत हो गई है.
कच्छ में अजीबोगरीब बीमारी: कच्छ के सीमावर्ती क्षेत्र में कई सालों से मवेशी पालने वालों के पास 2500 से 3000 गायें हैं. इस समय इस क्षेत्र की गायें एक अजीबोगरीब बीमारी से जूझ रही हैं. इस बीमारी से ग्रस्त गायों के पूरे शरीर में फोड़े हो जाते हैं. इसके अतिरिक्त, पशु मालिकों का दावा है कि गायों के पैरों में सूजन दिखाई देती है. ढेलेदार त्वचा रोग जानवरों में इस स्थिति का वर्णन करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है.
ढेलेदार त्वचा रोग क्या है: यह एक वायरल बीमारी है जो गायों और भैंसों को प्रभावित करती है. अफ्रीका वह जगह है जहां पहली बार यह बीमारी सामने आई थी. वर्तमान में कई देशों में फैल चुकी है. व्यावहारिक रूप से हर देश में पाया जाता है जो भारत के करीब है. केरल वह जगह है जहां हमारे देश में सबसे पहले यह बीमारी सामने आई थी. यह बीमारी वर्तमान में कई राज्यों में मौजूद है. गायों की त्वचा में रूखापन पैदा करने वाली यह बीमारी फैलने के बाद से गांव के कई गायों की भी मौत हो चुकी है. इससे क्षेत्र के किसान और पशुपालक अपनी गायों को लेकर चिंतित हैं.
कांपता है गाय का पूरा शरीर: मांडवी के बिडाड़ा के अधिकांश निवासी कृषि और पशुपालन करते हैं. बिडाड़ा गांव में बहुत सारी गायें हैं और अभी इन गायों को लम्पी स्किन डिजीज (lumpy skin) नाम की बीमारी है. इससे आसपास की कई गायों को अब खतरे का सामना करना पड़ रहा है. किसानों और पशुपालकों का दावा है कि उनके बीच फैली बीमारी के कारण कई गायों की मौत हो चुकी है.
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गायों में बढ़ रही है बीमारी: मांडवी तालुका के बिडाड़ा गांव के किसान मोहन रमानी के मुताबिक पिछले डेढ़ महीने से कई गायें इस बीमारी से ग्रसित हैं. गांव की गायों में यह बीमारी तेजी से फैल रही है. गाय के शरीर पर कई बड़े-बड़े छाले होते हैं. बीमारी हवा से फैलती है, इस प्रकार यह हर दिन बढ़ती ही जा रही है. उन्होंने आरोप लगाया कि इस बीमारी के लिए आवश्यक उपाय सरकार द्वारा नहीं किए जा रहे हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि प्रत्येक तालुका में 400 से 500 गायें मर चुकी हैं.