ETV Bharat / bharat

लंबी दलीलों पर न्यायालय ने चिंता जताई, कहा 'आम आदमी' के लिए है न्याय प्रणाली

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्याय प्रणाली 'आम आदमी' के लिए है और मौखिक दलीलों के लिए समयसीमा जरूरी है. लंबी दलीलों पर चिंता व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा. पढ़ें पूरी खबर...

supreme court
supreme court
author img

By

Published : Jul 8, 2021, 8:02 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कोविड महामारी के दौरान भी वादियों की ओर से लंबी दलीलों पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि न्याय प्रणाली 'आम आदमी' के लिए है और मौखिक दलीलों के लिए समयसीमा जरूरी है.

शीर्ष अदालत ने कहा कि छोटे और स्पष्ट फैसलों के लिए संक्षिप्त लेखन के लिहाज से रेन और मार्टिन के सिद्धांतों को अपनाया जाना चाहिए जिन्हें वादी भी समझें. हालांकि अदालतों के सामने घंटों लंबी दलीलें चलती हैं और बहुत सारी सामग्री प्रस्तुत की जाती है.

न्यायालय ने एक फैसले में ये टिप्पणी कीं जिसमें उसने दिल्ली विधानसभा की शांति और सद्भावना समिति की ओर से जारी सम्मन को चुनौती देने वाली फेसबुक इंडिया के उपाध्यक्ष और प्रबंध निदेशक अजीत मोहन की याचिका को खारिज कर दिया. समिति ने पिछले साल फरवरी में उत्तर-पूर्व दिल्ली में हुए दंगों के सिलसिले में गवाह के तौर पर पेश नहीं होने पर मोहन को तलब किया था.

पढ़ें :- दिल्ली हिंसा मामला : सुप्रीम कोर्ट का आदेश, फेसबुक की भूमिका की जांच जरूरी

न्यायमूर्ति एस के कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि एक मई, 2021 को उसके सामने 67,898 लंबित मामले थे और नियमित मामलों में समय खर्च होने से बड़ी पीठों के समक्ष लंबित कानूनी सिद्धांतों के समाधान के लिए बहुत कम वक्त बचता है जिसका न्याय प्रणाली पर असर पड़ सकता है.

पीठ में न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय भी शामिल थे. पीठ ने कहा, इस वजह से यह कहा गया कि हम अंतरिम सुनवाइयों वाली अदालत बन गये हैं जहां अंतिम सुनवाई तो सालों बाद होती है.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कोविड महामारी के दौरान भी वादियों की ओर से लंबी दलीलों पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि न्याय प्रणाली 'आम आदमी' के लिए है और मौखिक दलीलों के लिए समयसीमा जरूरी है.

शीर्ष अदालत ने कहा कि छोटे और स्पष्ट फैसलों के लिए संक्षिप्त लेखन के लिहाज से रेन और मार्टिन के सिद्धांतों को अपनाया जाना चाहिए जिन्हें वादी भी समझें. हालांकि अदालतों के सामने घंटों लंबी दलीलें चलती हैं और बहुत सारी सामग्री प्रस्तुत की जाती है.

न्यायालय ने एक फैसले में ये टिप्पणी कीं जिसमें उसने दिल्ली विधानसभा की शांति और सद्भावना समिति की ओर से जारी सम्मन को चुनौती देने वाली फेसबुक इंडिया के उपाध्यक्ष और प्रबंध निदेशक अजीत मोहन की याचिका को खारिज कर दिया. समिति ने पिछले साल फरवरी में उत्तर-पूर्व दिल्ली में हुए दंगों के सिलसिले में गवाह के तौर पर पेश नहीं होने पर मोहन को तलब किया था.

पढ़ें :- दिल्ली हिंसा मामला : सुप्रीम कोर्ट का आदेश, फेसबुक की भूमिका की जांच जरूरी

न्यायमूर्ति एस के कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि एक मई, 2021 को उसके सामने 67,898 लंबित मामले थे और नियमित मामलों में समय खर्च होने से बड़ी पीठों के समक्ष लंबित कानूनी सिद्धांतों के समाधान के लिए बहुत कम वक्त बचता है जिसका न्याय प्रणाली पर असर पड़ सकता है.

पीठ में न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय भी शामिल थे. पीठ ने कहा, इस वजह से यह कहा गया कि हम अंतरिम सुनवाइयों वाली अदालत बन गये हैं जहां अंतिम सुनवाई तो सालों बाद होती है.

(पीटीआई-भाषा)

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.