श्रीनगर : कश्मीर पूरी दुनिया में अपनी सुंदरता के लिए जाना जाता है और इसे अक्सर 'एशिया का स्विट्जरलैंड' भी कहा जाता है, जबकि यह अपने लैंजस्केप और जल निकायों के लिए भी प्रसिद्ध है, लेकिन इन दिनों कश्मीर ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को तेजी से महसूस कर रहा है.
बड़े पैमाने पर औद्योगीकरण और जंगलों के कटने के कारण कश्मीर एक प्रतिकूल दर पर ग्लेशियरों के पिघलने सहित इसके प्रतिकूल प्रभाव को महसूस कर रहा है.
उत्तराखंड में ग्लेशियर के टूटने के बाद, जिसमें कई लोग मारे गए और सैकड़ों लापता हो गए, जम्मू-कश्मीर के विशेषज्ञों का मानना है कि सोनमर्ग के थजीवास ग्लेशियर पर सरकार को ध्यान देने की जरूरत है.
पर्यावरण विशेषज्ञों ने कहा है कि थजीवास ग्लेशियर ने पिछले तीन सालों में लगभग 50 मीटर से अधिक कम हो गए हैं, जो चिंता का कारण है. अगर ध्यान नहीं दिया गया तो सोनमर्ग क्षेत्र और आसपास के लोगों के लिए खतरा पैदा हो सकता है.
ईटीवी भारत के साथ बात करते हुए कश्मीर विश्वविद्यालय के जियोइन्फारमैटिक्स डिपार्टमेंट में सहायक प्रोफेसर डॉ इरफान रशीद ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के अधिकांश ग्लेशियर को हम पीछे पिघलते हुए देख रहे हैं.
उन्होंने कहा कि यदि हम 1948 और 2021 की तस्वीरों की तुलना करते हैं, तो आप देख सकते हैं कि ग्लेशियर खतरनाक दर पर पिघल रहे हैं. यदि ग्लेशियर टूट जाता है, तो यह आसपास के लोगों और संपत्तियों पर कहर बनकर टूट सकता है.
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एक सर्वेक्षण के अनुसार जम्मू कश्मीर में लगभग 300 ग्लेशियर हैं. विशेषज्ञों के अनुसार जम्मू कश्मीर में ग्लेशियरों का पिघलना और लद्दाख क्षेत्र में आश्रित आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव के कारण जल, भोजन और ऊर्जा सुरक्षा प्रभावित होने वाले हैं.