हैदराबाद : चंद्रयान-3 की सफलता में तेलंगाना की कल्पना कालाहस्ती (Kalpana Kalahasti) ने भी अहम भूमिका निभाई. चंद्रयान-3 में एसोसिएट प्रोजेक्ट डायरेक्टर के रूप में काम करने वाली कल्पना ने ईटीवी भारत के साथ बातचीत की. उन्होंने बताया कि चंद्रयान-3 की सफलता को लेकर तनाव में थे कि हमने जो उपग्रह भेजा है वह चंद्रमा पर सुरक्षित पहुंचेगा. उन्होंने कहा कि यह सही है कि हमने समय की परवाह किए बिना इस लक्ष्य के लिए दिन-रात मेहनत की.
मूल रूप से चित्तूर जिले के पुत्तूर मंडल में ताडुकु की रहने वाली कल्पना के पिता मुनिरत्नम चेन्नई हाई कोर्ट में एक अधिकारी के रूप में रिटायर हुए थे. उनकी मां इंदिरा एक गृहणी हैं. कल्पना ने पूरी शिक्षा चेन्नई से पूरी करने के बाद मद्रास विश्वविद्यालय से इलेक्ट्रॉनिक्स और संचार इंजीनियरिंग में बी.टेक की पढ़ाई की. कल्पना ने बताया कि मेरा बचपन का सपना भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में काम करना था. मैंने बीटेक पूरा होने के बाद प्रयास शुरू किए. इसी दौरान 2000 में इसरो की ओर से नौकरियों की घोषणा की गई. फलस्वरूप मैंने भी वहां अप्लाई किया और मैंने एक रडार इंजीनियर के रूप में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसएचएआर) में कार्यभार ग्रहण कर लिया.
उन्होंने बताया कि वहां पांच साल तक काम करने के बाद 2005 में बेंगलुरु में यूआर राव सैटेलाइट सेंटर में उनका तबादला हो गया. यहां वह सैटेलाइट सिस्टम इंजीनियर के रूप में शामिल हुईं और वर्तमान में एक सहयोगी परियोजना निदेशक के रूप में कार्यरत हैं. कल्पना ने चंद्रयान-2 परियोजना समेत कई प्रमुख परियोजनाओं में अपनी सेवाएं दी हैं. वर्तमान चंद्रयान -3 परियोजना में उन्होंने एसोसिएट प्रोजेक्ट डायरेक्टर के रूप में काम किया. उन्होंने बताया कि प्रत्येक उपग्रह के निर्माण में आमतौर पर पांच साल से अधिक का समय लगता है. उन्होंने बताया कि हार्डवेयर के डिजाइन और निर्माण के बाद उपग्रह को विभिन्न परीक्षणों से गुजरना होता है उसके बाद ही उस पर फैसला लिया जाता है. कल्पना के मुताबिक यहां कुछ परीक्षण किए जाते हैं और फिर रॉकेट की मदद से उसे अंतरिक्ष में भेजा जाता है. उन्होंने कहाकि आज की चुनौती वह नहीं थी जो अगले दिन थी. बल्कि एक और नई चुनौती हमारा इंतज़ार कर रही थी. इन्हें सुलझाने के लिए बहुत समर्पण की जरूरत होती है. इसलिए बिना घड़ी देखे...कभी-कभी तो ऐसे भी दिन आते थे जब मैं 14 घंटे तक काम करती थी. कल्पना कहती हैं कि काम पूरा होने के बाद ही वे ऑफिस से निकलते हैं.
कल्पना का कहना है कि इसरो में महिलाओं के लिए कर्तव्य निर्वहन के लिए अनुकूल माहौल है. उन्होंने कहा कि यहां कोई लैंगिक भेदभाव नहीं है. काम और क्षमता के आधार पर पहचान मिलती है. हालांकि 1990 में महिला कर्मचारियों की संख्या बहुत कम थी, लेकिन अभी ऐसी स्थिति नहीं है. महिलाओं को समान अवसर मिल रहे हैं. वर्तमान में 24 प्रतिशत महिलाएं तकनीकी क्षेत्र में हैं. बता दे कि इस परियोजना के दौरान कल्पना को उनकी सेवाओं के लिए अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर दिल्ली आयोग से पुरस्कार मिला था.