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पाबंदी की चर्चा के बीच गिलानी के आवास से हुर्रियत का बोर्ड हटाया गया

श्रीनगर में हैदरपोरा (Hyderpora) में सैयद अली शाह गिलानी के आवास पर हुर्रियत कार्यालय से साइन बोर्ड हटा दिया गया है. हाल ही में ऐसी खबरें सामने आई हैं कि हुर्रियत कॉन्फ्रेंस पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत प्रतिबंध लगाया जा सकता है.

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Published : Aug 23, 2021, 2:54 PM IST

सैयद अली शाह गिलानी
सैयद अली शाह गिलानी

श्रीनगर : पाकिस्तान स्थित संस्थानों के कश्मीरी छात्रों को एमबीबीएस (MBBS) सीट देने के मामले में हाल में की गई जांच के बाद हुर्रियत कॉन्फ्रेंस (Hurriyat Conference) पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत प्रतिबंध लगाया जा सकता है. ऐसी खबरें सामने आने के बाद हैदरपोरा (Hyderpora) में सैयद अली शाह गिलानी के आवास पर हुर्रियत कार्यालय से साइन बोर्ड हटा दिया गया है.

रिपोर्ट्स में कहा गया है कि संगठन के कुछ सदस्यों ने कार्यालय से साइन बोर्ड हटा दिया है, हालांकि अभी यह पता नहीं चल पाया है कि हुर्रियत कार्यालय से साइन बोर्ड हटाने की असली वजह क्या है.

गौरतलब है कि सोशल मीडिया पर खबर वायरल है कि मीरवाइज उमर फारूक और सैयद अली शाह गिलानी के नेतृत्व वाली अलगाववादी पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस के दोनों गुटों को यूएपीए के तहत प्रतिबंधित किया जा सकता है.

दरअसल पाकिस्तानी मेडिकल कॉलेजों में कश्मीरी छात्रों को एमबीबीएस सीटें देने की सुरक्षा एजेंसियों द्वारा की गई जांच से पता चला है कि कुछ अलगाववादी दलों ने कथित तौर पर पाकिस्तानी कॉलेजों में सीटों के बदले कश्मीरी छात्रों से पैसे उगाही की थी और कथित तौर पर पैसा वसूल किया गया था. जांच में पता चला कि इस धन का इस्तेमाल आतंकवाद और पथराव जैसी अलगाववाद संबंधी गतिविधियों में मदद करने के लिए किया जाता है. अधिकारियों ने जांच के हवाले से बताया कि पाकिस्तान में एमबीबीएस सीट की औसत कीमत 10 लाख रुपये से 12 लाख रुपये के बीच है. कुछ मामलों में, हुर्रियत नेताओं के हस्तक्षेप पर यह शुल्क कम किया गया. उन्होंने कहा कि हस्तक्षेप करनेवाले हुर्रियत नेता की राजनीतिक ताकत के आधार पर इच्छुक छात्रों को रियायतें दी गईं.

1993 में हुआ था हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का गठन
हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का गठन 1993 में हुआ था, जिसमें कुछ पाकिस्तान समर्थक और जमात-ए-इस्लामी, जेकेएलएफ (जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट) और दुख्तरान-ए-मिल्लत जैसे प्रतिबंधित संगठनों समेत 26 समूह शामिल हुए. इसमें पीपुल्स कॉन्फ्रेंस और मीरवाइज उमर फारूक की अध्यक्षता वाली अवामी एक्शन कमेटी भी शामिल हुई. यह अलगाववादी समूह 2005 में दो गुटों में टूट गया. नरमपंथी गुट का नेतृत्व मीरवाइज और कट्टरपंथी गुट का नेतृत्व सैयद अली शाह गिलानी के हाथों आया.

पढ़ें- हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के दोनों धड़ों पर UAPA के तहत लगाए जा सकते हैं प्रतिबंध

केंद्र जमात-ए-इस्लामी और जेकेएलएफ को यूएपीए के तहत प्रतिबंधित कर चुका है. यह प्रतिबंध 2019 में लगाया गया था. अधिकारियों ने बताया कि आतंकवादी समूहों के वित्तपोषण की जांच में अलगाववादी नेताओं की कथित संलिप्तता का संकेत मिलता है. इन नेताओं में हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के लोग भी शामिल हैं.

श्रीनगर : पाकिस्तान स्थित संस्थानों के कश्मीरी छात्रों को एमबीबीएस (MBBS) सीट देने के मामले में हाल में की गई जांच के बाद हुर्रियत कॉन्फ्रेंस (Hurriyat Conference) पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत प्रतिबंध लगाया जा सकता है. ऐसी खबरें सामने आने के बाद हैदरपोरा (Hyderpora) में सैयद अली शाह गिलानी के आवास पर हुर्रियत कार्यालय से साइन बोर्ड हटा दिया गया है.

रिपोर्ट्स में कहा गया है कि संगठन के कुछ सदस्यों ने कार्यालय से साइन बोर्ड हटा दिया है, हालांकि अभी यह पता नहीं चल पाया है कि हुर्रियत कार्यालय से साइन बोर्ड हटाने की असली वजह क्या है.

गौरतलब है कि सोशल मीडिया पर खबर वायरल है कि मीरवाइज उमर फारूक और सैयद अली शाह गिलानी के नेतृत्व वाली अलगाववादी पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस के दोनों गुटों को यूएपीए के तहत प्रतिबंधित किया जा सकता है.

दरअसल पाकिस्तानी मेडिकल कॉलेजों में कश्मीरी छात्रों को एमबीबीएस सीटें देने की सुरक्षा एजेंसियों द्वारा की गई जांच से पता चला है कि कुछ अलगाववादी दलों ने कथित तौर पर पाकिस्तानी कॉलेजों में सीटों के बदले कश्मीरी छात्रों से पैसे उगाही की थी और कथित तौर पर पैसा वसूल किया गया था. जांच में पता चला कि इस धन का इस्तेमाल आतंकवाद और पथराव जैसी अलगाववाद संबंधी गतिविधियों में मदद करने के लिए किया जाता है. अधिकारियों ने जांच के हवाले से बताया कि पाकिस्तान में एमबीबीएस सीट की औसत कीमत 10 लाख रुपये से 12 लाख रुपये के बीच है. कुछ मामलों में, हुर्रियत नेताओं के हस्तक्षेप पर यह शुल्क कम किया गया. उन्होंने कहा कि हस्तक्षेप करनेवाले हुर्रियत नेता की राजनीतिक ताकत के आधार पर इच्छुक छात्रों को रियायतें दी गईं.

1993 में हुआ था हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का गठन
हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का गठन 1993 में हुआ था, जिसमें कुछ पाकिस्तान समर्थक और जमात-ए-इस्लामी, जेकेएलएफ (जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट) और दुख्तरान-ए-मिल्लत जैसे प्रतिबंधित संगठनों समेत 26 समूह शामिल हुए. इसमें पीपुल्स कॉन्फ्रेंस और मीरवाइज उमर फारूक की अध्यक्षता वाली अवामी एक्शन कमेटी भी शामिल हुई. यह अलगाववादी समूह 2005 में दो गुटों में टूट गया. नरमपंथी गुट का नेतृत्व मीरवाइज और कट्टरपंथी गुट का नेतृत्व सैयद अली शाह गिलानी के हाथों आया.

पढ़ें- हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के दोनों धड़ों पर UAPA के तहत लगाए जा सकते हैं प्रतिबंध

केंद्र जमात-ए-इस्लामी और जेकेएलएफ को यूएपीए के तहत प्रतिबंधित कर चुका है. यह प्रतिबंध 2019 में लगाया गया था. अधिकारियों ने बताया कि आतंकवादी समूहों के वित्तपोषण की जांच में अलगाववादी नेताओं की कथित संलिप्तता का संकेत मिलता है. इन नेताओं में हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के लोग भी शामिल हैं.

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