नई दिल्ली : यह देखते हुए कि समकालीन युद्ध की प्रकृति बदल गई है और मल्टी डोमेन ऑपरेशंस (एमडीओ) के तत्वों को शामिल करने की आवश्यकता बढ़ी है. भारतीय सेना के प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने कहा है कि युद्ध जीतने वाले बड़े प्लेटफार्मों की प्रासंगिकता समय के साथ मिट गई है.
जनरल नरवणे ने गुरुवार को सेंटर फॉर लैंड वारफेयर स्टडीज के द्विवार्षिक सम्मेलन में रणनीतिक अध्ययन और भूमि युद्ध पर स्वतंत्र थिंक टैंक आयोजन अवसर पर यह बातें कहीं. उन्होंने कहा कि बड़े मंच जो कभी 20वीं सदी के युद्धक्षेत्र का मुख्य आधार थे, जिसमें मुख्य युद्धक टैंक, लड़ाकू विमान और बड़े सतह वाले लड़ाकू विमान, नए डोमेन में उभरती रणभूमि चुनौतियों के सामने अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण हो गए हैं.
सेना प्रमुख ने कहा कि यह भारतीय सेना के स्पष्ट संदर्भ में हाल के दिनों में सैन्य विचारकों और नेताओं द्वारा व्यक्त की गई भावना है. सामान्य अभिव्यक्ति उस दिशा का संकेत हो सकती है, जिसमें सैन्य निवेश, विकास, अधिग्रहण और युद्ध प्लेटफार्मों की खरीद शामिल है.
किया पूर्वी लद्दाख का जिक्र
पूर्वी लद्दाख विवाद का जिक्र करते हुए थल सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने कहा कि उत्तरी सीमांत पर स्थिति ने हमारी क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता की रक्षा करने में भारत के समक्ष पेश आ रही चुनौतियों की प्रकृति को रेखांकित किया है. उन्होंने इस बात का उल्लेख किया कि अतीत से मिली चुनौतियों में सिर्फ वृद्धि ही हुई है.
सेना प्रमुख ने कहा कि भारतीय थल सेना तैयारी करना और भविष्य के लिहाज से खुद को अनुकूल बनाना जारी रखेगी. भारत की अशांत सीमाओं पर ये चुनौतियां कहीं अधिक करीबी, वास्तविक और खतरनाक हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
गौरतलब है कि पिछले नौ महीनों से हजारों की संख्या में भारत और चीन के सैनिक पूर्वी लद्दाख में तैनात हैं. वहां मौजूद गतिरोध ने दोनों देशों के बीच तनाव पैदा कर दिया है.
रक्षा मंत्री ने दिया संसद में बयान
इस बीच रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बृहस्पतिवार को संसद में कहा कि पूर्वी लद्दाख के पैंगोंग झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारों से सेनाओं को पीछे हटाए जाने को लेकर भारत और चीन के बीच सहमति बन गई है. जनरल नरवणे ने कहा कि उत्तरी सीमाओं पर चल रहे घटनाक्रमों को लेकर सशस्त्र बलों को देश की क्षेत्रीय अखंडता एवं संप्रभुता की रक्षा करने के साथ अनसुलझे सीमा विवाद और उसके परिणामस्वरूप पैदा हुई चुनौतियों की प्रकृति से अवगत रहना चाहिए.
उन्होंने कहा कि नि:संदेह नए खतरे भी हैं, लेकिन कड़वी सच्चाई यह है कि अतीत से मिली चुनौतियां खत्म नहीं हुई हैं. बल्कि उनके आकार और तीव्रता में वृद्धि ही हुई है.
भारतीय थल सेना तैयारी जारी रखेगी
उन्होंने चीन से लगी 3,500 किमी लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) का जिक्र करते हुए कहा कि भारतीय थल सेना तैयारी करना और भविष्य के लिहाज से खुद को अनुकूल बनाना जारी रखेगी. वहीं, हमारी अशांत सीमाओं पर कहीं अधिक करीबी, वास्तविक और वर्तमान खतरों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा कि भारतीय थल सेना भविष्य में भी युद्ध जीतने के लिए क्रमिक रूप से अपनी ताकत को बढ़ा रही है.
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उन्होंने कहा कि भविष्य के खतरों पर विचार करते हुए थल सेना 'मल्टी डोमेन ऑपरेशंस' पर भी ध्यान दे रही है.