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ई संजीवनी सेवा लेने में तमिलनाडु अव्वल वहीं बिहार फिसड्डी - helth department of bihar

केंद्र सरकार ने देशभर में ई संजीवनी ओपीडी सेवा 2019 में लॉन्च की. कोरोना काल के दौरान इस सेवा का बिहार को छोड़कर अन्य राज्यों को बहुत अच्छा लाभ मिला. आंकड़ें यही बयां कर रहे हैं.

sanjeevani opd service
स्वास्थ्य व्यवस्था
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Published : Dec 4, 2020, 6:46 PM IST

पटना : बिहार की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था हमेशा से सुर्खियों में रही है. सरकार लाख दावे कर ले कि उसने स्वास्थ्य के क्षेत्र में असीम विकास किया है, लेकिन धरातल पर तो दूर की बात, आंकड़ों पर भी ये दावे खरे उतरते नहीं दिखाई देते. ये साल बिहार का चुनावी साल था. कोरोना और डिजिटल दौर में जहां प्रचार प्रसार के लिए नेताओं की सक्रियता दिखाई दी. वहीं, लोगों के स्वास्थ्य के लिए सरकार सोती रही. ऐसा हम नहीं कह रहे, भारत सरकार द्वारा जारी ई-संजीवनी ओपीडी के आंकड़े कह रहे हैं.

sanjeevani opd service
जारी आंकड़े

केंद्र सरकार की ओर से डिजिटल स्वास्थ्य की पहल की गई थी. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की राष्ट्रीय टेलीमेडिसिन पहल ई-संजीवनी ने आठ लाख परामर्श पूरे कर लिए हैं, लेकिन बिहार के कितने लोगों को परामर्श मिला, ये जानकर आप हैरान हो जाएंगे. सवाल बहुत गंभीर और बड़ा है क्योंकि केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी चौबे बिहार से ही आते हैं.

सिर्फ चार लोगों को ही दिया गया परामर्श
भारत सरकार द्वारा जारी ई-संजीवनी ओपीडी के जारी आंकड़ों के अनुसार परामर्श लेने वाले राज्यों में अव्वल नंबर पर तमिलनाडु (259904), उत्तर प्रदेश (219715), केरल (58000), हिमाचल प्रदेश (46647), मध्य प्रदेश (43045), गुजरात (41765), आंध्र प्रदेश (35217) उत्तराखंड (26819), कर्नाटक (23008), महाराष्ट्र (9741) हैं. जबकि बिहार में सिर्फ चार लोगों को ही परामर्श दिया गया.

बिहार सबसे पीछे क्यों?
बिहार, देश के सबसे बड़े राज्यों की लिस्ट में आता है. ऐसे में केंद्र सरकार की ओर से ई-संजीवनी ऐप के माध्यम से लोगों को डॉक्टरी सलाह दी जा रही है, लेकिन बिहार में सिर्फ चार लोगों को इसका लाभ मिला. ये चौंकाने वाला आंकड़ा है. क्या सरकार ने लोगों को इस दिशा में जागरूक नहीं किया या बिहार में चुनावी माहौल के बीच डॉक्टरों ने लोगों को परामर्श देना उचित ही नहीं समझा या कोरोना का रिकवरी रेट देख पीठ थपथपा रही सरकार इसकी समीक्षा करने से ही चूक गई.

पढ़ें: कोरोना टीके पर एम्स का दावा, तीसरे चरण में ट्रायल, इस महीने आ सकती है वैक्सीन

बहरहाल, बिहार अपने रिकवरी रेट की वजह से हर जंग जीत रहा है. यहां लोगों का इम्युनिटी सिस्टम ही मजबूत दिखाई देता है, बाकि सरकार का सिस्टम कितना मजबूत है, ये तो जारी हुए ये आकंड़े बयां कर रहे हैं.

क्या है ई-संजीवनी

  • ई-संजीवनी एक ओपीडी प्लेटफॉर्म है.
  • ई-संजीवनी ओपीडी सेवाओं को उनके घरों की परिधि में मरीजों तक पहुंचाने में सक्षम बनाता है.
  • ई-संजीवनी एबी-एचडब्ल्यूसी को नवंबर 2019 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा लॉन्च किया गया था.
  • दिसंबर 2022 तक इसे 'हब एंड स्पोक' मॉडल में भारत की आयुष्मान भारत योजना के तहत 1,55,000 हेल्थ एंड वेलनेस सेंटरों में लागू किया जाना है.
  • ई-संजीवनी एबी-एचडब्ल्यूसी 4,700 से अधिक स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों में कार्यात्मक है और 17,000 से अधिक डॉक्टरों और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को इसके उपयोग के लिए प्रशिक्षित किया गया है.
  • इसका मुख्य उद्देश्य ऐसे जिलों तक डॉक्टरों की सलाह पहुंचाना था, जहां या तो डॉक्टरों का अभाव है या लोग अस्पताल तक जाने में अक्षम हैं.

पटना : बिहार की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था हमेशा से सुर्खियों में रही है. सरकार लाख दावे कर ले कि उसने स्वास्थ्य के क्षेत्र में असीम विकास किया है, लेकिन धरातल पर तो दूर की बात, आंकड़ों पर भी ये दावे खरे उतरते नहीं दिखाई देते. ये साल बिहार का चुनावी साल था. कोरोना और डिजिटल दौर में जहां प्रचार प्रसार के लिए नेताओं की सक्रियता दिखाई दी. वहीं, लोगों के स्वास्थ्य के लिए सरकार सोती रही. ऐसा हम नहीं कह रहे, भारत सरकार द्वारा जारी ई-संजीवनी ओपीडी के आंकड़े कह रहे हैं.

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जारी आंकड़े

केंद्र सरकार की ओर से डिजिटल स्वास्थ्य की पहल की गई थी. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की राष्ट्रीय टेलीमेडिसिन पहल ई-संजीवनी ने आठ लाख परामर्श पूरे कर लिए हैं, लेकिन बिहार के कितने लोगों को परामर्श मिला, ये जानकर आप हैरान हो जाएंगे. सवाल बहुत गंभीर और बड़ा है क्योंकि केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी चौबे बिहार से ही आते हैं.

सिर्फ चार लोगों को ही दिया गया परामर्श
भारत सरकार द्वारा जारी ई-संजीवनी ओपीडी के जारी आंकड़ों के अनुसार परामर्श लेने वाले राज्यों में अव्वल नंबर पर तमिलनाडु (259904), उत्तर प्रदेश (219715), केरल (58000), हिमाचल प्रदेश (46647), मध्य प्रदेश (43045), गुजरात (41765), आंध्र प्रदेश (35217) उत्तराखंड (26819), कर्नाटक (23008), महाराष्ट्र (9741) हैं. जबकि बिहार में सिर्फ चार लोगों को ही परामर्श दिया गया.

बिहार सबसे पीछे क्यों?
बिहार, देश के सबसे बड़े राज्यों की लिस्ट में आता है. ऐसे में केंद्र सरकार की ओर से ई-संजीवनी ऐप के माध्यम से लोगों को डॉक्टरी सलाह दी जा रही है, लेकिन बिहार में सिर्फ चार लोगों को इसका लाभ मिला. ये चौंकाने वाला आंकड़ा है. क्या सरकार ने लोगों को इस दिशा में जागरूक नहीं किया या बिहार में चुनावी माहौल के बीच डॉक्टरों ने लोगों को परामर्श देना उचित ही नहीं समझा या कोरोना का रिकवरी रेट देख पीठ थपथपा रही सरकार इसकी समीक्षा करने से ही चूक गई.

पढ़ें: कोरोना टीके पर एम्स का दावा, तीसरे चरण में ट्रायल, इस महीने आ सकती है वैक्सीन

बहरहाल, बिहार अपने रिकवरी रेट की वजह से हर जंग जीत रहा है. यहां लोगों का इम्युनिटी सिस्टम ही मजबूत दिखाई देता है, बाकि सरकार का सिस्टम कितना मजबूत है, ये तो जारी हुए ये आकंड़े बयां कर रहे हैं.

क्या है ई-संजीवनी

  • ई-संजीवनी एक ओपीडी प्लेटफॉर्म है.
  • ई-संजीवनी ओपीडी सेवाओं को उनके घरों की परिधि में मरीजों तक पहुंचाने में सक्षम बनाता है.
  • ई-संजीवनी एबी-एचडब्ल्यूसी को नवंबर 2019 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा लॉन्च किया गया था.
  • दिसंबर 2022 तक इसे 'हब एंड स्पोक' मॉडल में भारत की आयुष्मान भारत योजना के तहत 1,55,000 हेल्थ एंड वेलनेस सेंटरों में लागू किया जाना है.
  • ई-संजीवनी एबी-एचडब्ल्यूसी 4,700 से अधिक स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों में कार्यात्मक है और 17,000 से अधिक डॉक्टरों और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को इसके उपयोग के लिए प्रशिक्षित किया गया है.
  • इसका मुख्य उद्देश्य ऐसे जिलों तक डॉक्टरों की सलाह पहुंचाना था, जहां या तो डॉक्टरों का अभाव है या लोग अस्पताल तक जाने में अक्षम हैं.
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