चेन्नई: तमिलनाडु में एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली डीएमके सरकार ने राज्यपाल आरएन रवि के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. सरकार ने राज्यपाल पर 'लोगों की इच्छा को कमजोर करने' और 'औपचारिक प्रमुख के पद का दुरुपयोग' करने का आरोप लगाया है. इसके साथ ही उनपर आरोप लगाया गया है कि आरएन रवि एक राजनीतिक विरोधी के रूप में काम कर रहे हैं.
जानकारी के मुताबिक, यह पता चला है कि एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली डीएमके सरकार ने राज्यपाल आरएन रवि के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की है, जिसमें राज्यपाल को विधानसभा की ओर से पारित विधेयकों पर सहमति देने का निर्देश देने की मांग की गई है, लेकिन उनकी मंजूरी में देरी के कारण यह बिल रुक गया है.
सूत्रों ने कहा कि रिट याचिका में, द्रमुक सरकार ने आरोप लगाया है कि राज्यपाल रवि ने एक निर्दिष्ट समय सीमा के भीतर लंबित बिलों को मंजूरी देने के लिए निर्देश देने की मांग करते हुए बिलों में 'जानबूझकर' देरी की है. एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली द्रमुक सरकार ने याचिका में कहा कि तमिलनाडु विधानसभा की ओर से भेजे जा रहे विधेयकों और आदेशों को राज्यपाल समय पर मंजूरी नहीं दे रहे हैं.
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, तमिलनाडु विधानसभा ने राज्य की जेलों से 54 कैदियों की समयपूर्व रिहाई से संबंधित 12 विधेयक, चार अभियोजन मंजूरी और फाइलें राज्यपाल आरएन रवि को भेजी हैं, जो वर्तमान में राजभवन के समक्ष लंबित हैं. तमिलनाडु में द्रमुक सरकार और राज्यपाल रवि विभिन्न मुद्दों, खासकर द्रमुक के शासन के द्रविड़ मॉडल को लेकर एक-दूसरे के साथ आमने-सामने रहे हैं.
इस साल जनवरी में, राज्य विधानसभा के पटल पर तीखा संबंध सामने आया जब राज्यपाल रवि ने सदन में अपने संबोधन में राज्य का नाम 'तमिलनाडु' और द्रविड़ दिग्गजों के नाम नहीं लिए, जिससे पूरे राज्य के राजनीतिक जगत में इसकी निंदा हुई. रवि के अभूतपूर्व कदम के खिलाफ हंगामे के बीच, स्टालिन के नेतृत्व वाली द्रमुक सरकार ने विधान सभा में राज्यपाल के खिलाफ एक प्रस्ताव पेश किया, जिसके बाद राज्यपाल परंपरा से हटकर राष्ट्रगान से पहले सदन से बाहर चले गए.