नई दिल्ली: अफगानिस्तान के पूर्व खुफिया प्रमुख रहमतुल्लाह नबील ने कहा कि अफगानिस्तान में तालिबान शासन के साथ बातचीत करने के बाद भी भारत को अपनी सुरक्षा में कमी नहीं आने देनी चाहिए. नबील ने कहा कि भारत के 'स्वयं के हित' में तालिबान के साथ बातचीत आवश्यक थी. उन्होंने कहा कि भारत को पूर्व नेताओं के साथ भी चैनल खुले रखने चाहिए, भले ही वे अब सत्ता से बाहर हैं. अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ तालिबान विरोधी अफगान नेताओं के एक सम्मेलन के मौके पर एक समाचार पत्र को दिये गये साक्षात्कार में पूर्व अफगान सुरक्षा प्रमुख नबील ने कहा कि हम अभी भारत को सलाह देने की स्थिति में नहीं हैं.
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उन्होंने कहा भारत के नेता अपने राष्ट्रीय हित को बेहतर जानते हैं, लेकिन उन्हें किसी भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि तालिबान बदल गया है. भले ही उनकी अच्छी बातचीत हो रही हो. तालिबान के आंतरिक मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी या अन्य तालिबान मंत्रियों द्वारा गर्मजोशी से स्वागत किया गया हो. उन्हें पता होना चाहिए कि भारतीय विरोधी भावना तालिबान के खून में है. अल कायदा भारतीय उपमहाद्वीप (AQIS) और इस्लामिक स्टेट खुरासान (IS-K) सहित अफगानिस्तान में आतंकवादी समूहों की संख्या पर हेरात सुरक्षा संवाद की जानकारी देते हुए नबील ने कहा कि हजारों 'विदेशी लड़ाके' अब देश के कुछ हिस्सों में स्थित हैं. कुनार और नूरिस्तान प्रांतों में रह रहे हैं और भारत और ताजिकिस्तान सहित पड़ोसी देशों पर हमले की कर रहे हैं. उनके पास नवीनतम तकनीक है. अब उन्होंने क्रिप्टोकरेंसी के रूप में मदद मिल रही है. वे अफगानिस्तान को 'ड्रग और टेरर हब' में बदल रहे हैं. नबील ने कहा कि कई आतंकी संगठनों को तालिबान का संरक्षण मिल रहा है.
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उन्होंने कहा कि तालिबान के पास अमेरिकी सेना से लूटे गये हथियार हैं. बायोमेट्रिक डेटा तक उनकी पहुंच है. पूर्व अफगान सुरक्षा प्रमुख का दावा है कि तालिबान लश्कर और जैश को अफगानिस्तान में आधार स्थानांतरित करने की अनुमति दे रहा है. उन्होंने कहा कि आईएसआई को अब इन समूहों को प्रत्यक्ष समर्थन देने की आवश्यकता नहीं है. हक्कानी वे काम कर रहे हैं जो आईएसआई के संचालक पहले कर रहे थे. हक्कानी समूह के नेता अभी भी यूएनएससी की आतंकवादी सूची में हैं. अफगानिस्तान में भारतीय मिशनों पर हमलों के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं.
नबील अफगानिस्तान में राष्ट्रपति करजई और राष्ट्रपति गनी दोनों के अधीन राष्ट्रीय रक्षा सचिवालय (NDS) के निदेशक के रूप में काम कर चुके हैं. अपने कार्यकाल (2010-2015) के दौरान भारत के साथ निकटता से सहयोग किया था. नबील ने गनी की पाकिस्तान यात्रा के बाद इस्तीफा दे दिया था. भारत सहित कोई भी देश तालिबान सरकार को मान्यता नहीं देता है. हालांकि, काबुल में तालिबान सरकार की स्थापना के बाद से, मोदी सरकार ने विदेश मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों को तालिबान नेताओं के साथ बातचीत करने के लिए भेजा है, और इस साल जून में, काबुल में एक 'तकनीकी मिशन' स्थापित किया है ताकि अफगानों को सहायता और विकास सहायता प्रदान की जा सके.