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तालिबान की राह में 'कांटों भरा ताज' पूर्व सिपहसालारों की चुनौती बन सकती है गृहयुद्ध का कारण

अफगानिस्तान की सत्ता पर अप्रत्याशित रूप से तालिबान के काबिज होने के बाद नए सिरे से गृह युद्ध छिड़ने की आशंकाएं जताई जाने लगीं है. बहरहाल, अभी तक ये खबरें गुमराह करने वाली साबित हुई हैं.

Bhasha
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Published : Sep 7, 2021, 5:34 PM IST

बर्मिंघम (ब्रिटेन) : 'गृह युद्ध' उस स्थिति को कहते हैं जब विद्रोही आंदोलन और सरकार आमने-सामने होते हैं. लेकिन फिलहाल अफगानिस्तान में कोई सरकार नहीं है लिहाजा इस समय सैद्धांतिक रूप से गृहयुद्ध छिड़ने की आशंका कम नजर आ रही है.

हालांकि तालिबान के सत्ता पर काबिज होने के बाद उसकी राह आसान नजर नहीं आ रही. पूर्व सिपहसालारों की चुनौती तालिबान का सिरदर्द बढ़ा सकती है. 2001 में केवल अमेरिका समर्थित नॉदर्न अलायंस ही नहीं बल्कि अन्य स्थानीय कमांडर और राजनीतिक नेता भी काबुल से तालिबान को हटाकर उनके अधिकार को चुनौती दे रहे थे. 2021 में तालिबान स्थानीय समूहों को साथ आने या तटस्थ रहने के लिए राजी करके सत्ता में आया.

अब जब तालिबान एक सरकार और शासन व्यवस्था स्थापित करने की कोशिश कर रहा है तो यह संभव है कि ये समूह तालिबान के मातहत रहने का विरोध कर सकते हैं. वे स्वायत्तता की कमी पर रोष प्रकट कर सकते हैं या काबुल में नई व्यवस्था के विरोध में राजनीतिक और आर्थिक लाभ देख सकते हैं. फिर भी इनमें से किसी भी समूह की तालिबान की तरह राष्ट्रीय पहुंच नहीं है. और 2001 के विपरीत अफगानिस्तान में किसी बाहरी शक्ति का समर्थन भी उन्हें हासिल नहीं है.

इसलिए अफगानिस्तान का निकट भविष्य अधर में है. तालिबान को वैधता मिलती है तो उसकी जमीन जरूर मजबूत होगी. ऐसे में अफगानिस्तान के अशांत सिंहासन के लिए फिलहाल किसी राष्ट्रीय विकल्प के उभरने की संभावना नहीं है.

किन समूहों से मिल सकती है तालिबान को चुनौती?

1. इस्लामिक स्टेट खुरासान

तालिबान को सबसे अधिक चुनौती इस्लामिक स्टेट खुरासान (आईएसआईएस-के) से मिल सकती है. 26 अगस्त को हामिद करजई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के बाहर हमले करके उसने ध्यान खींचा था. भले ही यह घातक संगठन है लेकिन अभी इसे तालिबान की सत्ता के लिए खतरा नहीं माना जा रहा है. आईएसआईएस-के के पास चार-पांच हजार लड़ाके हैं और यह अब भी पूर्वी अफगानिस्तान में स्थानीय गुट है, जो मुख्य रूप से पाकिस्तान से लगी सीमा पर नांगहार और कुनार प्रांतों में सक्रिय है.

2. पंजशीर घाटी के सिपहसालार

खबरें मिल रही हैं कि तालिबान ने अफगानिस्तान के उत्तर-पूर्व में पंजशीर घाटी को अपने नियंत्रण में ले लिया है. पंजशीर प्रांत की राजधानी बजारक में तालिबान के झंडे लगे होने की तस्वीरें भी सामने आई हैं. हालांकि अभी इसकी पुष्टि नहीं हुई है. पंजशीर को मुख्य रूप से ताजिक प्रतिरोध के लिए जाना जाता है. जिसका नेतृत्व पूर्व प्रसिद्ध सिपहसालार अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद और अपदस्थ सरकार में उपराष्ट्रपति रहे अमरुल्ला सालेह कर रहे हैं.

किसी भी महत्वपूर्ण विदेशी समर्थन के अभाव में मसूद का प्रतिरोध क्षेत्र की स्वायत्तता बनाए रखने और तालिबान के किसी भी हमले को लेकर ध्यान केंद्रित कर रहा है. उन्होंने जियो और जीने दो की व्यवस्था की दृष्टि से बातचीत की पेशकश की है लेकिन यह रणनीति अप्रचलित हो सकती है और आंदोलन फिलहाल पराजित हो गया है.

3. इस्माइल खान और ईरान

साल 2001 के बाद से देश के तीसरे सबसे बड़े शहर हेरात सहित पश्चिमी अफगानिस्तान में ताजिक समुदाय से आने वाले इस्माइल खान के बल का दबदबा रहा है. जिसे ईरान का समर्थन हासिल है. 1980 के दशक में खान ने एक बड़ी मुजाहिदीन सेना का नेतृत्व किया और इसके जरिए 1992 में हेरात के गवर्नर बने. तब से बल का भविष्य उतार-चढाव वाला रहा है. इस्माइल खान ने कई तरह की राजनीतिक भूमिकाएं निभाईं और खोईं.

तालिबान ने कई बार उनकी हत्या का प्रयास किया लेकिन वह बाल-बाल बचे. अगस्त में हेरात में उनकी सेना कमजोर पड़ गई. इसकी वजह तालिबान की धमकी भी हो सकती है या फिर गुप्त समझौते को भी इसका कारण बताया जा रहा है. अटकले हैं कि उन्हें ईरान का समर्थन मिल सकता है, लेकिन ईरान की रणनीति स्पष्ट नहीं है.

4. हिकमतयार का हिज्ब-ए-इस्लामी

तालिबान के पुराने दुश्मन गुलबुद्दीन हिकमतयार अब भी तालिबान के लिए चुनौती बने हुए हैं. हिकमतयार ने 1980 के दशक में हिज्ब-ए इस्लामी की स्थापना की, जो सोवियत संघ के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान के माध्यम से सीआईए के समर्थन से मजबूत हुआ. 1990 के दशक में सबसे क्रूर मिलिशिया नेताओं में से एक माने जाने वाले हिकमतयार 1996 में तालिबान के सत्ता में आने से पहले कुछ समय के लिए प्रधानमंत्री रहे.

यह भी पढ़ें-अफगानिस्तान बन सकता है चरमपंथी समूहों के बीच प्रतिस्पर्धा का रंगमंच : विशेषज्ञ

साल 2001 में तालिबान के सत्ता से हटने के बाद हिकमतयार पाकिस्तान भाग गए. उन्होंने अपनी सेना का इस्तेमाल करजई सरकार और अंतरराष्ट्रीय गठबंधन के खिलाफ किया. साल 2016 में अफगानिस्तान सरकार के साथ उनका समझौता हो गया और वह अफगानिस्तान वापस लौट आए. हिकमतयार ने कहा है कि वह मंत्री न बनें फिर भी तालिबान के साथ काम करने के लिए तैयार हैं. उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं कि सरकार में सक्षम व्यक्तियों को जगह मिले. इसके अलावा हमारी कोई शर्त नहीं है.

बर्मिंघम (ब्रिटेन) : 'गृह युद्ध' उस स्थिति को कहते हैं जब विद्रोही आंदोलन और सरकार आमने-सामने होते हैं. लेकिन फिलहाल अफगानिस्तान में कोई सरकार नहीं है लिहाजा इस समय सैद्धांतिक रूप से गृहयुद्ध छिड़ने की आशंका कम नजर आ रही है.

हालांकि तालिबान के सत्ता पर काबिज होने के बाद उसकी राह आसान नजर नहीं आ रही. पूर्व सिपहसालारों की चुनौती तालिबान का सिरदर्द बढ़ा सकती है. 2001 में केवल अमेरिका समर्थित नॉदर्न अलायंस ही नहीं बल्कि अन्य स्थानीय कमांडर और राजनीतिक नेता भी काबुल से तालिबान को हटाकर उनके अधिकार को चुनौती दे रहे थे. 2021 में तालिबान स्थानीय समूहों को साथ आने या तटस्थ रहने के लिए राजी करके सत्ता में आया.

अब जब तालिबान एक सरकार और शासन व्यवस्था स्थापित करने की कोशिश कर रहा है तो यह संभव है कि ये समूह तालिबान के मातहत रहने का विरोध कर सकते हैं. वे स्वायत्तता की कमी पर रोष प्रकट कर सकते हैं या काबुल में नई व्यवस्था के विरोध में राजनीतिक और आर्थिक लाभ देख सकते हैं. फिर भी इनमें से किसी भी समूह की तालिबान की तरह राष्ट्रीय पहुंच नहीं है. और 2001 के विपरीत अफगानिस्तान में किसी बाहरी शक्ति का समर्थन भी उन्हें हासिल नहीं है.

इसलिए अफगानिस्तान का निकट भविष्य अधर में है. तालिबान को वैधता मिलती है तो उसकी जमीन जरूर मजबूत होगी. ऐसे में अफगानिस्तान के अशांत सिंहासन के लिए फिलहाल किसी राष्ट्रीय विकल्प के उभरने की संभावना नहीं है.

किन समूहों से मिल सकती है तालिबान को चुनौती?

1. इस्लामिक स्टेट खुरासान

तालिबान को सबसे अधिक चुनौती इस्लामिक स्टेट खुरासान (आईएसआईएस-के) से मिल सकती है. 26 अगस्त को हामिद करजई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के बाहर हमले करके उसने ध्यान खींचा था. भले ही यह घातक संगठन है लेकिन अभी इसे तालिबान की सत्ता के लिए खतरा नहीं माना जा रहा है. आईएसआईएस-के के पास चार-पांच हजार लड़ाके हैं और यह अब भी पूर्वी अफगानिस्तान में स्थानीय गुट है, जो मुख्य रूप से पाकिस्तान से लगी सीमा पर नांगहार और कुनार प्रांतों में सक्रिय है.

2. पंजशीर घाटी के सिपहसालार

खबरें मिल रही हैं कि तालिबान ने अफगानिस्तान के उत्तर-पूर्व में पंजशीर घाटी को अपने नियंत्रण में ले लिया है. पंजशीर प्रांत की राजधानी बजारक में तालिबान के झंडे लगे होने की तस्वीरें भी सामने आई हैं. हालांकि अभी इसकी पुष्टि नहीं हुई है. पंजशीर को मुख्य रूप से ताजिक प्रतिरोध के लिए जाना जाता है. जिसका नेतृत्व पूर्व प्रसिद्ध सिपहसालार अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद और अपदस्थ सरकार में उपराष्ट्रपति रहे अमरुल्ला सालेह कर रहे हैं.

किसी भी महत्वपूर्ण विदेशी समर्थन के अभाव में मसूद का प्रतिरोध क्षेत्र की स्वायत्तता बनाए रखने और तालिबान के किसी भी हमले को लेकर ध्यान केंद्रित कर रहा है. उन्होंने जियो और जीने दो की व्यवस्था की दृष्टि से बातचीत की पेशकश की है लेकिन यह रणनीति अप्रचलित हो सकती है और आंदोलन फिलहाल पराजित हो गया है.

3. इस्माइल खान और ईरान

साल 2001 के बाद से देश के तीसरे सबसे बड़े शहर हेरात सहित पश्चिमी अफगानिस्तान में ताजिक समुदाय से आने वाले इस्माइल खान के बल का दबदबा रहा है. जिसे ईरान का समर्थन हासिल है. 1980 के दशक में खान ने एक बड़ी मुजाहिदीन सेना का नेतृत्व किया और इसके जरिए 1992 में हेरात के गवर्नर बने. तब से बल का भविष्य उतार-चढाव वाला रहा है. इस्माइल खान ने कई तरह की राजनीतिक भूमिकाएं निभाईं और खोईं.

तालिबान ने कई बार उनकी हत्या का प्रयास किया लेकिन वह बाल-बाल बचे. अगस्त में हेरात में उनकी सेना कमजोर पड़ गई. इसकी वजह तालिबान की धमकी भी हो सकती है या फिर गुप्त समझौते को भी इसका कारण बताया जा रहा है. अटकले हैं कि उन्हें ईरान का समर्थन मिल सकता है, लेकिन ईरान की रणनीति स्पष्ट नहीं है.

4. हिकमतयार का हिज्ब-ए-इस्लामी

तालिबान के पुराने दुश्मन गुलबुद्दीन हिकमतयार अब भी तालिबान के लिए चुनौती बने हुए हैं. हिकमतयार ने 1980 के दशक में हिज्ब-ए इस्लामी की स्थापना की, जो सोवियत संघ के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान के माध्यम से सीआईए के समर्थन से मजबूत हुआ. 1990 के दशक में सबसे क्रूर मिलिशिया नेताओं में से एक माने जाने वाले हिकमतयार 1996 में तालिबान के सत्ता में आने से पहले कुछ समय के लिए प्रधानमंत्री रहे.

यह भी पढ़ें-अफगानिस्तान बन सकता है चरमपंथी समूहों के बीच प्रतिस्पर्धा का रंगमंच : विशेषज्ञ

साल 2001 में तालिबान के सत्ता से हटने के बाद हिकमतयार पाकिस्तान भाग गए. उन्होंने अपनी सेना का इस्तेमाल करजई सरकार और अंतरराष्ट्रीय गठबंधन के खिलाफ किया. साल 2016 में अफगानिस्तान सरकार के साथ उनका समझौता हो गया और वह अफगानिस्तान वापस लौट आए. हिकमतयार ने कहा है कि वह मंत्री न बनें फिर भी तालिबान के साथ काम करने के लिए तैयार हैं. उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं कि सरकार में सक्षम व्यक्तियों को जगह मिले. इसके अलावा हमारी कोई शर्त नहीं है.

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