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'ममता को मात देकर बड़ा 'उलटफेर' करने वाले शुभेंदु को भाजपा में मिलेगी बड़ी जिम्मेदारी'

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Published : May 3, 2021, 9:01 PM IST

Updated : May 3, 2021, 9:47 PM IST

भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी पश्चिम बंगाल में हुए विधानसभा चुनाव में नंदीग्राम सीट से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को हराकर 'बड़ा उलटफेर करने वाले’ के रूप में उभरे हैं. उनकी जीत को भाजपा के लिए मनोबल बढ़ाने वाली जीत के तौर पर देखा जा रहा है,

शुभेंदु
शुभेंदु

कोलकाता : भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी पश्चिम बंगाल में हुए विधानसभा चुनाव में नंदीग्राम सीट से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को हराकर 'बड़ा उलटफेर करने वाले’ के रूप में उभरे हैं, हालांकि उनकी पार्टी को चुनाव में करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है.

अधिकारी ने मतगणना के अंतिम दौर तक चली खींचतान के बाद बनर्जी को 1,900 से अधिक मतों के अंतर से हार का स्वाद चखा दिया. तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) छोड़ भाजपा में आए अधिकारी की जीत को भगवा पार्टी के लिए केवल मनोबल बढ़ाने वाली जीत के तौर पर देखा जा रहा है, क्योंकि बनर्जी के नेतृत्व में टीएमसी ने 292 सीटों पर हुए चुनाव में से 213 पर विजय प्राप्त की है.

भाजपा के हलकों में शुभेंदु की चर्चा
मतगणना के दौरान अनियमितता बरते जाने की जानकारी मिलने के बाद दोबारा मतगणना की मांग करने वाली बनर्जी ने अब कहा है कि वह परिणाम को लेकर अदालत का रुख करेंगी. फिलहाल अधिकारी भाजपा के हलकों में चर्चा का विषय बने हुए हैं.

दशकों से रहा है दबदबा
अधिकारी के लिए नंदीग्राम उस समय महज राजनीतिक अखाड़े से अस्तित्व की जंग के मैदान में बदल गया था. जब बनर्जी ने अधिकारी और उनके परिवार को मजा चखाने की चुनौती दे डाली थी, जिनका दशकों से इस क्षेत्र पर दबदबा रहा है.

भाजपा में मिल सकती है बड़ी जिम्मेदारी
इस जीत के साथ ही अधिकारी बंगाल में भाजपा की पहली पंक्ति के नेताओं में शामिल हो गए हैं और कयास लगाए जा रहे हैं कि पार्टी उन्हें बड़ी जिम्मेदारियां सौंप सकती है.

भवानीपुर से नंदीग्राम पहुंचीं ममता
पूर्वी मेदिनीपुर जिले का नंदीग्राम इलाका 2007 में रसायन हब के लिए जमीन के बलपूर्वक अधिग्रहण के खिलाफ टीएमसी के नेतृत्व में हुए किसानों के आंदोलन का गवाह रहा है. बनर्जी ने जब भवानीपुर सीट के बजाय इस बार नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का फैसला किया, तो सबकी निगाहें इस सीट पर टिक गईं.

'दीदी' को घेरने उतरे दिग्गज
भाजपा ने अधिकारी का गढ़ बचाने और 'दीदी' को घेरने के लिए केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, सुपरस्टार मिथुन चक्रवर्ती को प्रचार मैदान में उतारा.

टीएमसी की जीत, शुभेंदु के बेलगाम बोल
शुभेंदु अधिकारी ने खुद को नई पार्टी की विचारधारा और भविष्य की भूमिकाओं में खुद को ढालने के लिए अपनी छवि को भूमि अधिग्रहण आंदोलन के समावेशी नेता से हिंदुत्व ब्रिगेड के सिरमौर के रूप में स्थापित करने की कोशिश की. उन्होंने दावा किया कि यदि टीएमसी चुनाव जीती, तो नंदीग्राम 'मिनी पाकिस्तान' बन जाएगा.

छात्र राजनीति से शुरू हुआ जीवन

अपने जीवन के प्रारंभिक वर्षों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की शाखाओं में प्रशिक्षण पाने वाले अधिकारी ने 1980 में कांग्रेस की छात्र इकाई छात्र परिषद के सदस्य के तौर पर राजनीति में कदम रखा था. हालांकि वह पहली बार 1995 में चुनाव राजनीति में उतरे जब उन्हें कांठी नगरपालिका में पार्षद चुना गया.

दो चुनाव हारे शुभेंदु
साल 1999 में तृणमूल कांग्रेस की स्थापना के बाद अधिकारी और उनके पिता शिशिर अधिकारी उसमें शामिल हो गए. इसके बाद उन्होंने 2001 में विधानसभा चुनाव और 2004 में विधानसभा चुनाव लड़े. दोनों में हार का सामना करना पड़ा. 2006 में कांठी से जीतकर वह पहली बार विधानसभा पहुंचे.

पढ़ें - नंदीग्राम के चुनाव अधिकारी को जान का खतरा था, इसलिए पुनर्मतगणना नहीं करवाई : ममता

साल 2007 में नंदीग्राम में टीएमसी के आंदोलन के दौरान वह बड़े नेता बनकर उभरे और जल्द ही उन्हें टीएमसी के कोर समूह का सदस्य और टीएमसी की युवा इकाई का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. उन्होंने 2009 और 2014 में तामलुक लोकसभा सीट से जीत हासिल की.

टीएमसी का साथ छोड़ भाजपा से मिले
हालांकि, टीएमसी से उनकी अदावत के बीज 2011 में पड़ चुके थे, जब ममता बनर्जी ने टीएमसी के यूथ कांग्रेस के समानांतर ऑल इंडिया यूथ कांग्रेस का गठन कर ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी को इसका अध्यक्ष बना दिया गया. इसके बाद धीरे-धीरे पार्टी में अधिकारी हाशिये पर जाते रहे और नतीजा यह हुआ कि विधानसभा चुनाव से ऐन पहले उन्होंने और उनके परिवार ने टीएमसी का साथ छोड़ भाजपा से हाथ मिला लिया.

कोलकाता : भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी पश्चिम बंगाल में हुए विधानसभा चुनाव में नंदीग्राम सीट से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को हराकर 'बड़ा उलटफेर करने वाले’ के रूप में उभरे हैं, हालांकि उनकी पार्टी को चुनाव में करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है.

अधिकारी ने मतगणना के अंतिम दौर तक चली खींचतान के बाद बनर्जी को 1,900 से अधिक मतों के अंतर से हार का स्वाद चखा दिया. तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) छोड़ भाजपा में आए अधिकारी की जीत को भगवा पार्टी के लिए केवल मनोबल बढ़ाने वाली जीत के तौर पर देखा जा रहा है, क्योंकि बनर्जी के नेतृत्व में टीएमसी ने 292 सीटों पर हुए चुनाव में से 213 पर विजय प्राप्त की है.

भाजपा के हलकों में शुभेंदु की चर्चा
मतगणना के दौरान अनियमितता बरते जाने की जानकारी मिलने के बाद दोबारा मतगणना की मांग करने वाली बनर्जी ने अब कहा है कि वह परिणाम को लेकर अदालत का रुख करेंगी. फिलहाल अधिकारी भाजपा के हलकों में चर्चा का विषय बने हुए हैं.

दशकों से रहा है दबदबा
अधिकारी के लिए नंदीग्राम उस समय महज राजनीतिक अखाड़े से अस्तित्व की जंग के मैदान में बदल गया था. जब बनर्जी ने अधिकारी और उनके परिवार को मजा चखाने की चुनौती दे डाली थी, जिनका दशकों से इस क्षेत्र पर दबदबा रहा है.

भाजपा में मिल सकती है बड़ी जिम्मेदारी
इस जीत के साथ ही अधिकारी बंगाल में भाजपा की पहली पंक्ति के नेताओं में शामिल हो गए हैं और कयास लगाए जा रहे हैं कि पार्टी उन्हें बड़ी जिम्मेदारियां सौंप सकती है.

भवानीपुर से नंदीग्राम पहुंचीं ममता
पूर्वी मेदिनीपुर जिले का नंदीग्राम इलाका 2007 में रसायन हब के लिए जमीन के बलपूर्वक अधिग्रहण के खिलाफ टीएमसी के नेतृत्व में हुए किसानों के आंदोलन का गवाह रहा है. बनर्जी ने जब भवानीपुर सीट के बजाय इस बार नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का फैसला किया, तो सबकी निगाहें इस सीट पर टिक गईं.

'दीदी' को घेरने उतरे दिग्गज
भाजपा ने अधिकारी का गढ़ बचाने और 'दीदी' को घेरने के लिए केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, सुपरस्टार मिथुन चक्रवर्ती को प्रचार मैदान में उतारा.

टीएमसी की जीत, शुभेंदु के बेलगाम बोल
शुभेंदु अधिकारी ने खुद को नई पार्टी की विचारधारा और भविष्य की भूमिकाओं में खुद को ढालने के लिए अपनी छवि को भूमि अधिग्रहण आंदोलन के समावेशी नेता से हिंदुत्व ब्रिगेड के सिरमौर के रूप में स्थापित करने की कोशिश की. उन्होंने दावा किया कि यदि टीएमसी चुनाव जीती, तो नंदीग्राम 'मिनी पाकिस्तान' बन जाएगा.

छात्र राजनीति से शुरू हुआ जीवन

अपने जीवन के प्रारंभिक वर्षों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की शाखाओं में प्रशिक्षण पाने वाले अधिकारी ने 1980 में कांग्रेस की छात्र इकाई छात्र परिषद के सदस्य के तौर पर राजनीति में कदम रखा था. हालांकि वह पहली बार 1995 में चुनाव राजनीति में उतरे जब उन्हें कांठी नगरपालिका में पार्षद चुना गया.

दो चुनाव हारे शुभेंदु
साल 1999 में तृणमूल कांग्रेस की स्थापना के बाद अधिकारी और उनके पिता शिशिर अधिकारी उसमें शामिल हो गए. इसके बाद उन्होंने 2001 में विधानसभा चुनाव और 2004 में विधानसभा चुनाव लड़े. दोनों में हार का सामना करना पड़ा. 2006 में कांठी से जीतकर वह पहली बार विधानसभा पहुंचे.

पढ़ें - नंदीग्राम के चुनाव अधिकारी को जान का खतरा था, इसलिए पुनर्मतगणना नहीं करवाई : ममता

साल 2007 में नंदीग्राम में टीएमसी के आंदोलन के दौरान वह बड़े नेता बनकर उभरे और जल्द ही उन्हें टीएमसी के कोर समूह का सदस्य और टीएमसी की युवा इकाई का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. उन्होंने 2009 और 2014 में तामलुक लोकसभा सीट से जीत हासिल की.

टीएमसी का साथ छोड़ भाजपा से मिले
हालांकि, टीएमसी से उनकी अदावत के बीज 2011 में पड़ चुके थे, जब ममता बनर्जी ने टीएमसी के यूथ कांग्रेस के समानांतर ऑल इंडिया यूथ कांग्रेस का गठन कर ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी को इसका अध्यक्ष बना दिया गया. इसके बाद धीरे-धीरे पार्टी में अधिकारी हाशिये पर जाते रहे और नतीजा यह हुआ कि विधानसभा चुनाव से ऐन पहले उन्होंने और उनके परिवार ने टीएमसी का साथ छोड़ भाजपा से हाथ मिला लिया.

Last Updated : May 3, 2021, 9:47 PM IST
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