वाराणसी: बीते कुछ दिनों से सूबे की राजनीति में उथल-पुथल मची हुई है. कभी सीएम तो कभी डिप्टी सीएम की कुर्सी बदलती नजर आने लगती है. उत्तर प्रदेश के राजनैतिक हलकों में मची ये हलचल न तो अभी थमी है और न ही जल्द थमने वाली है. ऐसा मानना है बनारस के ज्योतिषाचार्य का, उनका कहना है कि आने वाले कुछ महीनों में सत्ता परिवर्तन के संकेत दिख रहे हैं. वह इसकी वजह सूर्य ग्रहण (surya grahan) और शनि जयंती (shani jayanti) की युति को मान रहे हैं.
वक्री चाल से चल रहे हैं शनि देव
ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि ऐसा कम देखने में आता है जब पूर्णिमा के बाद अमावस्या और अमावस्या के बाद पूर्णिमा पर लगातार दो ग्रहण पड़ रहे हों. 26 मई को पड़ा चंद्र ग्रहण और फिर 10 जून को सूर्य ग्रहण धरती लोक पर अपना गहरा प्रभाव छोड़ने वाला है. उस पर शनि जयंती का होना निश्चित तौर पर कई परिवर्तन के संकेत दे रहा है. इसकी बड़ी वजह यह है कि शनि देव 21 मई से ही श्रवण नक्षत्र में वक्री चल रहे हैं जो 10 अक्टूबर तक आकाश मंडल में वक्र गति से संचरण करते रहेंगे.
10 अक्टूबर से पहले परिवर्तन के संकेत
पंडित ऋषि द्विवेदी के अनुसार नवग्रहों में शनि का प्रमुख स्थान होता है और इनको जनतंत्र के कारक के साथ ही सेवक और न्याय तंत्र पर पूर्ण नियंत्रण वाला ग्रह माना जाता है. इनके वक्री होने का बड़ा प्रभाव न्याय तंत्र के साथ ही सत्ता पर पड़ने वाला है. 10 अक्टूबर से पहले परिवर्तन के संकेत साफ हैं. यह परिवर्तन कई मायने में हो सकते हैं. सत्ता से लेकर बड़े अधिकारियों और सत्तासीन लोगों के परिवर्तन के रूप में शनि और ग्रहण का यह योग निश्चित तौर पर देखा जा सकता है.
ग्रहण के साथ शनि जयंती का होना परिवर्तन की वजह
पंडित ऋषि द्विवेदी ने साफ तौर पर बताया कि ग्रहण और शनि जयंती का साथ होना कई बड़े परिवर्तनों की वजह बन सकता है. हालांकि ग्रहण भारत में दृश्य नहीं है. इसलिए इसका असर तो इतना ज्यादा नहीं पड़ेगा, लेकिन ग्रहण के साथ शनि जयंती का होना निश्चित तौर पर कई परिवर्तनों की वजह बनने वाला है. ज्योतिषाचार्य के मुताबिक ग्रहण काल तो शाम को 6:41 पर खत्म हो जाएगा, लेकिन शनि जो वर्तमान समय में वक्री है. वह 10 अक्टूबर तक आकाश मंडल में वक्री होकर संचरण करता रहेगा. शनि का वक्री होना निश्चित तौर पर सत्ता परिवर्तन की बड़ी वजह साबित होगा.
लग्न और ग्रह कह रहे हैं कुछ बात
ऋषि द्विवेदी के मुताबिक ज्योतिष शास्त्र में शनि ग्रह उपग्रह के रूप में मान्यता रखता है. धरती पर सबसे अधिक प्रभुत्व वाले ग्रहों में शनि का स्थान सर्वोपरि है. वहीं स्वतंत्र भारत की कुंडली वृषभ लग्न कर्क राशि की है. गोचर में शनि की दृष्टि कर्क राशि पर पड़ रही है और वृषभ लग्न के लिए शनि राजयोगकारी होता है. इन परिवर्तनों से यह स्पष्ट होता है कि आने वाले समय में कई बड़े परिवर्तन देश प्रदेश के कई हिस्सों में देखने को मिल सकते हैं, जो सत्ता से लेकर अन्य कई बड़े मायनों में हो सकते हैं.
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