नई दिल्ली : कोरोना महामारी और लॉकडाउन के बीच दिल्ली में कैंपों में रह रहे पाकिस्तानी हिन्दू शरणार्थियों के सामने जीवनयापन की समस्या खड़ी हो गई है. दिल्ली के रोहिणी सेक्टर 11 स्थित पाकिस्तानी हिन्दू शरणार्थी शिविर में इस समय 103 परिवार रहते हैं और यहां इनकी कुल संख्या 600 के आस पास है.
इस बारे में ईटीवी भारत ने दिल्ली के रोहिणी सेक्टर 11 स्थित पाकिस्तानी हिन्दू शरणार्थी शिविर में वस्तु स्थिति के बारे में जानकारी ली. यहां के लोग बिना किसी सरकारी सहायता या अन्य आर्थिक मदद के या तो दिहाड़ी मजदूरी कर अपना भरण पोषण करते हैं या फिर रिक्शे,ठेले पर फल-सब्जी या अन्य उपयोग में आने वाली वस्तुओं को बेच कर अपना जीवनयापन कर रहे हैं.
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इनमें से ज्यादातर शरणार्थी परिवारों ने बताया कि घर के मुखिया सब्जी या फल बेच कर गुजारा कर रहे हैं क्योंकि इस समय केवल यही काम चल रहा है. हालांकि इनमें से सभी की स्थिति ऐसी नहीं है कि वह मंडी से सब्जियाँ खरीद कर ला सकें और आस पास के रिहायशी इलाकों में बेचने जा सकें.
लॉकडाउन के पहले दौर में मदद मिली थी, इस बार नही : प्रसाद
हालांकि लॉकडाउन के पहले दौर में इनके पास मदद के लिए कई लोग पहुंचे थे, लेकिन इस बार ऐसा नहीं है. इस बारे में शरणार्थी कैम्प के प्रधान हनुमान प्रसाद ने बताया कि पिछले वर्ष लॉकडाउन में उनके पास राशन व अन्य राहत सामग्री पर्याप्त मात्रा में पहुंची थी लेकिन दूसरे लॉकडाउन और कोरोना के दूसरे दौर में मददगारों की संख्या कम हो गई है, लिहाजा अब तक मदद का एक भी हाथ पाकिस्तान से आए हिन्दू शरणार्थियों तक नहीं पहुंच सका है.
पुलिस ने जब्त कर लिया तराजू
ठेले पर सब्जी और फल बेच कर अपने परिवार का भरण पोषण करने वाले कुछ शरणार्थियों का कहना है कि लॉकडाउन में फल सब्जियों के बेचने पर रोक नहीं है लेकिन इसके बावजूद उन्हें पुलिस कर्मियों के गुस्से का सामना करना पड़ता है. सब्जी की रेहड़ी लगाने वाले लाल ने बताया कि कुछ दिन पहले पुलिस ने उनकी रेहड़ी से तराजू जब्त कर लिया और कोर्ट से छुड़वा लेने की बात कही. अब सब्जी बेचने वाले लाल सिंह का कहना है कि वह न तो इतने शिक्षित हैं और न ही अभी कोर्ट ही खुल रहा है कि वह वहां जाकर अपने तराजू को वापस पाने का मुकदमा लड़ सकें.
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नागरिकता संशोधन कानून से उम्मीद
इस तरह की कई समस्याओं से इस कैम्प में रहने वाले शरणार्थियों को जूझना पड़ रहा है. लकड़ी, तिरपाल और गत्तों से बनाए गए घरों में रह रहे शरणार्थियों की स्थिति कहीं से भी आदर्श नहीं है. हनुमान प्रसाद बताते हैं कि जब नागरिकता संशोधन कानून पारित हुआ था तब उनके बीच खुशी की एक लहर दौड़ गई थी. उन्हें लगा था कि अब वह भारत देश के नागरिक होंगे और उसके साथ ही उन्हें एक सामान्य नागरिक वाले तमाम अधिकार और सुविधाएं सरकार मुहैया कराएगी, लेकिन अब तक कानून लागू न हो पाने के कारण उन्हें नागरिकता मिलने का मामला भी फिलहाल अधर में है.
महंगी दवाएं खरीदने की मजबूरी
अब तक कैम्प में रहने वाले लोग महामारी के कहर से बचे हुए हैं लेकिन उनका कहना है कि दिन रात वह भय के माहौल में रहते हैं. मामूली बुखार या तबियत बिगड़ने पर भी वह अस्पताल जाने से डरते हैं और प्राइवेट डॉक्टर्स के पास जाने पर उन्हें महंगी फीस और दवाइयां खरीदनी पड़ती हैं.