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Vultures survey in Karnataka: तीन राज्यों में सर्वे से हुआ खुलासा: 10 हजार से घटकर 250 हुई गिद्धों की संख्या

कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल में गिद्ध विलुप्त होने की कगार पर हैं. इनकी संख्या 10 हजार से घटकर 250 तक पहुंच गई है. इनको बचाने के लिए वन मंत्रालय मुस्तैद हो गया है. वन मंत्रालय ने आज से नीलगिरी रेंज में दो दिवसीय सर्वे शुरू कर दिया है.

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Published : Feb 25, 2023, 2:15 PM IST

Vultures survey in Karnataka
Vultures survey in Karnataka

चामराजनगर (कर्नाटक): कर्नाटक समेत तीन राज्यों में गिद्धों की घटती संख्या को लेकर वन मंत्रालय ने आज से दो दिवसीय सर्वे शुरू कर दिया है. वन विभाग का कहना है कि 80 के दशक में गिद्धों की संख्या लगभग 10 हजार थी, जो घटकर अब केवल 250 रह गई है. कर्नाटक के बांदीपुर, नागरहोल, बीआरटी तमिलनाडु में मधुमलाई और केरल के वायनाडु में गिद्धों की संख्या में काफी कमी आई है. यह सर्वेक्षण नीलगिरी रेंज में किया जा रहा है. बांदीपुर में बीते शुक्रवार कर्मचारियों को गिद्धों की निगरानी का प्रशिक्षण दिया गया.

गिद्ध क्यों महत्वपूर्ण हैं: एक सतत वातावरण में एक दूसरे के बीच एक श्रृंखला कड़ी होती है. गिद्ध शिकार करके जीवित नहीं रहते हैं. जंगल में गिद्धों की जरूरत जंगल के पर्यावरण स्वच्छता के लिए होती है, क्योंकि ये मरे हुए जानवरों को खाकर अपना जीवन यापन करते हैं. केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने गिद्धों को बचाने के लिए 2025 तक की योजना बनाई है. यह सर्वेक्षण उस योजना का पहला चरण है. वन संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले गिद्धों को बचाया जाना चाहिए.

गिद्धों के विलुप्त होने का मुख्य कारण: गिद्धों के विलुप्त होने की वजह गायों को दिया जाने वाला डाईक्लोफिनेक (Diclofenac) का इंजेक्शन है. इस इंजेक्शन को 2006 में प्रतिबंधित कर दिया गया था, जिन गिद्धों ने डाइक्लोफेनाक के इंजेक्शन के साथ मरे हुए मवेशियों को खाया था, वे गिद्ध किडनी की समस्या के कारण मर गए, जिससे गिद्धों की संख्या आश्चर्यजनक ढंग से कम हुई. वनों की आग भी इनके पतन का प्रमुख कारण है.

ये भी पढ़ें- White Tigers have live threats: पर्यावरणविदों ने किया आगाह, तमिलनाडु के सत्यमंगलम बाघ अभ्यारण्य में सफेद बाघों को खतरा

गिद्धों की कौन सी प्रजातियाँ हैं?: भारत में गिद्धों की 9 प्रजातियाँ हैं और कर्नाटक में गिद्धों की 6 प्रजातियां पाई मौजूद हैं, जिनमें दो प्रवासी गिद्ध भी शामिल हैं. नीलगिरी रेंज में मुख्य रूप से सफेद पीठ वाले गिद्ध, लाल सिर वाले गिद्ध, भारतीय गिद्ध, मिस्र के गिद्ध आमतौर पर जंगल के बाहर देखे जाते हैं. गिद्ध आमतौर पर हर 5 साल में केवल 1 अंडा ही देते हैं, इसलिए उनकी संख्या बहुत तेजी से नहीं बढ़ती है. गिद्ध भी बाघ जितना ही महत्वपूर्ण है.

3 राज्यों में एक साथ सर्वेक्षण: गिद्धों का सर्वेक्षण कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल में एक साथ किया जाएगा. सर्वेक्षण 25 और 26 फरवरी को कर्नाटक वन विभाग और डब्ल्यूसीएस (वन्यजीव संरक्षण सोसायटी) के सहयोग से किया जा रहा है. WCS प्रमुख राजकुमार देवराज अरस प्रभारी का नेतृत्व करेंगे.

ये भी पढ़ें- Menace of stray dogs in Telangana: तेलंगाना में आवारा कुत्तों का आतंक, अलग-अलग घटनाओं में सात लोग घायल

कैसे होगा सर्वे?: वन रक्षक जंगल में और जंगल से बाहर 20 स्थानों को चिन्हित कर गिद्धों की उड़ान का निरीक्षण करेंगे. वे गिद्धों के घोंसलों का पता लगाते हैं और गिद्धों की उपस्थिति सुनिश्चित करते हैं. पर्यावरण कार्यकर्ता जोसेफ हूवर ने कहा, चूंकि गिद्ध मृत जानवरों को खाते हैं, इसलिए वे उनके आने की प्रतीक्षा करते हैं, जिससे गिद्धों की संख्या का अनुमान लगाया जाता है.

चामराजनगर (कर्नाटक): कर्नाटक समेत तीन राज्यों में गिद्धों की घटती संख्या को लेकर वन मंत्रालय ने आज से दो दिवसीय सर्वे शुरू कर दिया है. वन विभाग का कहना है कि 80 के दशक में गिद्धों की संख्या लगभग 10 हजार थी, जो घटकर अब केवल 250 रह गई है. कर्नाटक के बांदीपुर, नागरहोल, बीआरटी तमिलनाडु में मधुमलाई और केरल के वायनाडु में गिद्धों की संख्या में काफी कमी आई है. यह सर्वेक्षण नीलगिरी रेंज में किया जा रहा है. बांदीपुर में बीते शुक्रवार कर्मचारियों को गिद्धों की निगरानी का प्रशिक्षण दिया गया.

गिद्ध क्यों महत्वपूर्ण हैं: एक सतत वातावरण में एक दूसरे के बीच एक श्रृंखला कड़ी होती है. गिद्ध शिकार करके जीवित नहीं रहते हैं. जंगल में गिद्धों की जरूरत जंगल के पर्यावरण स्वच्छता के लिए होती है, क्योंकि ये मरे हुए जानवरों को खाकर अपना जीवन यापन करते हैं. केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने गिद्धों को बचाने के लिए 2025 तक की योजना बनाई है. यह सर्वेक्षण उस योजना का पहला चरण है. वन संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले गिद्धों को बचाया जाना चाहिए.

गिद्धों के विलुप्त होने का मुख्य कारण: गिद्धों के विलुप्त होने की वजह गायों को दिया जाने वाला डाईक्लोफिनेक (Diclofenac) का इंजेक्शन है. इस इंजेक्शन को 2006 में प्रतिबंधित कर दिया गया था, जिन गिद्धों ने डाइक्लोफेनाक के इंजेक्शन के साथ मरे हुए मवेशियों को खाया था, वे गिद्ध किडनी की समस्या के कारण मर गए, जिससे गिद्धों की संख्या आश्चर्यजनक ढंग से कम हुई. वनों की आग भी इनके पतन का प्रमुख कारण है.

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गिद्धों की कौन सी प्रजातियाँ हैं?: भारत में गिद्धों की 9 प्रजातियाँ हैं और कर्नाटक में गिद्धों की 6 प्रजातियां पाई मौजूद हैं, जिनमें दो प्रवासी गिद्ध भी शामिल हैं. नीलगिरी रेंज में मुख्य रूप से सफेद पीठ वाले गिद्ध, लाल सिर वाले गिद्ध, भारतीय गिद्ध, मिस्र के गिद्ध आमतौर पर जंगल के बाहर देखे जाते हैं. गिद्ध आमतौर पर हर 5 साल में केवल 1 अंडा ही देते हैं, इसलिए उनकी संख्या बहुत तेजी से नहीं बढ़ती है. गिद्ध भी बाघ जितना ही महत्वपूर्ण है.

3 राज्यों में एक साथ सर्वेक्षण: गिद्धों का सर्वेक्षण कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल में एक साथ किया जाएगा. सर्वेक्षण 25 और 26 फरवरी को कर्नाटक वन विभाग और डब्ल्यूसीएस (वन्यजीव संरक्षण सोसायटी) के सहयोग से किया जा रहा है. WCS प्रमुख राजकुमार देवराज अरस प्रभारी का नेतृत्व करेंगे.

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कैसे होगा सर्वे?: वन रक्षक जंगल में और जंगल से बाहर 20 स्थानों को चिन्हित कर गिद्धों की उड़ान का निरीक्षण करेंगे. वे गिद्धों के घोंसलों का पता लगाते हैं और गिद्धों की उपस्थिति सुनिश्चित करते हैं. पर्यावरण कार्यकर्ता जोसेफ हूवर ने कहा, चूंकि गिद्ध मृत जानवरों को खाते हैं, इसलिए वे उनके आने की प्रतीक्षा करते हैं, जिससे गिद्धों की संख्या का अनुमान लगाया जाता है.

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