नई दिल्ली: मार्गदर्शी चिटफंड मामले (Margadarsi Chit Fund case) में रामोजी राव और शैलजा किरण के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के मामले में आंध्र प्रदेश सरकार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से तगड़ा झटका लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मार्गदर्शी चिटफंड मामले को ट्रांसफर करने संबंधी आंध्र प्रदेश सरकार की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. शीर्ष कोर्ट ने कहा कि वह तेलंगाना हाई कोर्ट के अंतरिम आदेशों में हस्तक्षेप नहीं करेगा.
सुप्रीम कोर्ट ने एपी सरकार की ओर से दायर दो एसएलपी को खारिज कर दिया. साथ ही, यह भी स्पष्ट कर दिया कि मार्गदर्शी मामले से निपटने के लिए तेलंगाना हाईकोर्ट के कानूनी क्षेत्राधिकार को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने की कोई आवश्यकता नहीं है. कोर्ट ने आदेश जारी करते हुए याचिका का निस्तारण कर दिया. शीर्ष कोर्ट ने इस मामले से संबंधित सभी मामलों को तेलंगाना हाईकोर्ट में ही निपटाने के निर्देश जारी किए.
सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना हाईकोर्ट द्वारा जारी अंतरिम आदेशों में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया. शीर्ष कोर्ट ने कहा कि मार्गदर्शी चिट फंड कंपनी के खिलाफ आंध्र प्रदेश सीआईडी पुलिस द्वारा दर्ज मामलों को सुनने का कानूनी अधिकार क्षेत्र उसके पास (तेलंगाना हाईकोर्ट) है. इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने तेलंगाना हाईकोर्ट के अंतरिम आदेशों को चुनौती देने वाली आंध्र प्रदेश सरकार की याचिका का निपटारा कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि मामले के संबंध में सभी अंतिम दलीलें हाईकोर्ट के समक्ष ही प्रस्तुत की जानी होंगी.
न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा, 'मामले में कानूनी क्षेत्राधिकार मुख्य मुद्दा है, इसलिए हमने सोचा कि अंतरिम आदेशों को चुनौती देने के लिए दायर याचिका का निपटारा करना बेहतर होगा.'
बेंच ने कहा कि 'हमारा मानना है कि हाईकोर्ट को याचिका की मेरिट के आधार पर उस पर गौर करना चाहिए और उसके अनुसार निर्णय लेना चाहिए. यदि कोई विशिष्ठ संदर्भ सामने आता है तो याचिकाकर्ता (एपी सरकार) इस अदालत में आ सकता है और उसे उस समय क्षेत्राधिकार को चुनौती देने की स्वतंत्रता होगी.'
पीठ ने कहा कि इस पृष्ठभूमि में एपी सरकार की याचिका खारिज हो गई है. सुप्रीम कोर्ट ने मार्गदर्शी कंपनी के चेयरमैन रामोजी राव और एमडी शैलजा किरण के खिलाफ कड़ी कार्रवाई पर रोक लगाने वाले तेलंगाना हाई कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया.
ये हुआ कोर्ट में : सुनवाई शुरू होते ही जस्टिस माहेश्वरी ने कहा कि इससे जुड़े कुछ मामलों में अभी तक नोटिस नहीं मिले हैं, उन मामलों पर भी नोटिस आने के बाद हम आगे की दलीलें सुनेंगे. इस पर एपी सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मनिंदर सिंह ने कहा कि मामले में सभी उत्तरदाताओं को नोटिस भेजे जाएंगे. इस पर हस्तक्षेप करते हुए न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी ने कहा कि 'हम ट्रांसफर पिटीशन को लंबित रखें और अंतरिम आदेश पर शेष दो याचिकाओं पर गौर करें.'
इस पर न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन ने कहा कि चूंकि यह कानूनी क्षेत्राधिकार से संबंधित मामला है. यदि आपने जो मामला दायर किया है वह अनुमति योग्य है तो मेरिट के आधार पर अपनी दलीलें पेश करें. 'क्या यह नहीं कहा गया था कि मामले की कार्यवाही तेलंगाना उच्च न्यायालय में होगी?' यदि मामला वहां खारिज कर दिया जाता है तो कोई और प्रश्न नहीं होगा. यदि याचिका स्वीकार की जाती है, तो आप कानूनी क्षेत्राधिकार पर अपनी दलीलें पेश करने के लिए यहां आ सकते हैं.
इसके बाद न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी ने कहा कि मामले को गुण-दोष के आधार पर देखा जाएगा. यदि गुण-दोष के आधार पर याचिका खारिज हो जाती है तो आपको यहां आने की जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा, 'यदि याचिका स्वीकार की जाती है, तो आप क्षेत्राधिकार पर दलीलें पेश करने के लिए यहां आ सकते हैं.'
इस पर हस्तक्षेप करते हुए मार्गदर्शी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने अदालत का ध्यान इस पर दिलाया कि इस मामले में कुछ प्राथमिकियों के संबंध में पहले ही आरोप पत्र दायर किए जा चुके हैं. फिर एक अन्य वरिष्ठ वकील नीरज किशन कौल ने आंध्र प्रदेश सरकार की ओर से दलील पेश की. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि क्षेत्राधिकार का मुद्दा खुला है. यदि तेलंगाना उच्च न्यायालय का फैसला आपके खिलाफ जाता है तो आप इस अदालत में आ सकते हैं.
नीरज किशन कौल ने कहा कि एक एफआईआर के संबंध में आरोप पत्र पहले ही दायर किया जा चुका है. आंध्र प्रदेश की ट्रायल कोर्ट आरोप तय करेगी. दूसरी ओर, तेलंगाना हाईकोर्ट एफआईआर पर गौर कर रहा है. एफआईआर में लगाए गए हर आरोप का संबंध आंध्र प्रदेश से है. नीरज कौल ने पूछा, तेलंगाना हाईकोर्ट इसमें कैसे हस्तक्षेप कर सकता है.
दोनों जजों ने इस दलील से सहमत होने से इनकार कर दिया. जस्टिस माहेश्वरी ने कहा, 'इस मामले के अनुसार, कुछ चिटफंड कंपनी के कार्यालय आंध्र प्रदेश में स्थित हैं. बताया जा रहा है कि वहां से जुटाए गए फंड को हैदराबाद स्थित मुख्य कार्यालय में ट्रांसफर किया जा रहा है, वहां से इस फंड का इस्तेमाल विभिन्न गतिविधियों में किया जा रहा है. यह कोई साधारण मामला नहीं है.'
एपी सरकार की ओर से अपनी दलीलें जारी रखते हुए, नीरज किशन कौल ने कहा कि मुख्य आरोप यह है कि कंपनी की चिट फंड शाखाओं के लिए स्वतंत्र बैंक खाते बनाए रखने के बजाय पैसे को जानबूझकर एक कॉर्पोरेट अकाउंट में ट्रांसफर किया जा रहा था और इसे वहां से डायवर्ट किया जा रहा था. इसी प्रकार, विशेष खातों से संबंधित बैलेंस शीट का रखरखाव नहीं किया जा रहा है.
सफल बोलीदाता को सिक्योरिटी डिपॉजिट करनी होगी और पूरी राशि लेनी होगी. लेकिन इस कंपनी के प्रतिनिधि उन्हें ब्याज का लालच देकर जमा करने के लिए कह रहे हैं. एक राज्य में धन का दुरुपयोग किया जा रहा है और दूसरे राज्य में धन को म्यूचुअल फंड में ट्रांसफर किया जा रहा है. वकील कौल ने कहा, 'अंत में पैसा आंध्र प्रदेश में ही चुकाना होगा. इसलिए, यह तर्क देना उचित नहीं है चूंकि म्यूचुअल फंड में निवेश हैदराबाद से किया गया है.' उन्होंने कहा, 'चूंकि फोरमैन और गवाह आंध्र प्रदेश में हैं, इसलिए कार्यवाही भी वहीं की जानी चाहिए.'
इस पर जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि बेहतर होगा कि यहां जो दलीलें पेश की जा रही हैं और जो वक्त बिताया जा रहा है, उसका इस्तेमाल वहां के मुख्य मामले के लिए किया जाए. उन्होंने एपी सरकार के वकील से कहा, 'अगर मामले को गुण-दोष के आधार पर देखा जाएगा और अधिकार क्षेत्र के मामले पर आपकी दलीलों पर विचार किया जाएगा तो आपको सुरक्षा मिलेगी. अगर फैसला आपके खिलाफ जाता है, तो यहां आएं.'
इस पर मार्गदर्शी के वकील मुकुल रोहतगी ने बेंच को याद दिलाया कि जब तेलंगाना हाईकोर्ट ने कहा है कि ये मामला उसके अधिकार क्षेत्र में है, तो एपी सरकार द्वारा दायर स्थानांतरण याचिकाएं अमान्य हो जाती हैं और वे निरर्थक हो जाती हैं. इस पर आंध्र प्रदेश सरकार के वकील मनिंदर सिंह ने अदालत गुहार लगाई कि कम से कम ट्रांसफर पिटीशन पर गौर किया जाए. लेकिन अदालत ने ऐसा करने से भी इनकार कर दिया. न्यायमूर्ति माहेश्वरी ने कहा, 'सब कुछ हाईकोर्ट में देखा जाए. मामले की पृष्ठभूमि और क्षेत्राधिकार को ध्यान में रखते हुए, हाईकोर्ट को ही मामले की सुनवाई करनी चाहिए.'
चिट ऑडिटर की नियुक्ति संबंधी मामला भी खारिज : जज ने कहा, 'आप भी वहां अपनी दलीलें पेश कर सकते हैं.' जब वकील मनिंदर सिंह ने गुहार लगाई कि मामले को कम से कम लंबित तो रखा जाए, जज ने ऐसा करने से भी इनकार कर दिया. न्यायाधीश ने आदेश पारित करते हुए कहा, 'क्या फायदा, बेवजह हाईकोर्ट पर तलवार लटकती रहेगी.'
शीर्ष अदालत ने आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा दायर उस याचिका को भी खारिज कर दिया, जिसमें चिट ऑडिटर की नियुक्ति को गलत ठहराए जाने पर तेलंगाना उच्च न्यायालय द्वारा जारी अंतरिम आदेशों को चुनौती दी गई थी. न्यायमूर्ति माहेश्वरी ने कहा 'हम हाईकोर्ट के अंतरिम आदेशों में हस्तक्षेप करने से इनकार कर रहे हैं.' ऐसा कहने के साथ ही मामले का निपटारा कर दिया.