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मृत्युदंड पर सुप्रीम कोर्ट: परिस्थितियों पर विचार करने से संबंधित मामले को पांच जजों की बेंच को सौंपा

पीठ ने कहा कि ऐसे सभी मामलों में जहां मौत की सजा एक विकल्प है, कम करने वाली परिस्थितियों को रिकॉर्ड में रखना आवश्यक है. हालांकि, मौत की सजा को कम करने वाली परिस्थितियों को दोषसिद्धि के बाद ही फिर से दर्ज किया जा सकता है.

Supreme Court
उच्चतम न्यायालय
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Published : Sep 19, 2022, 11:18 AM IST

Updated : Sep 19, 2022, 12:13 PM IST

नई दिल्ली: मृत्युदंड (capital punishment) के प्रावधान वाले मामलों में अपराध की गंभीरता कम करने वाली संभावित परिस्थितियों पर कब और कैसे विचार किए जा सकता है, इस संबंध में दिशा-निर्देश बनाने से जुड़ी याचिका उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने सोमवार को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को सौंप दी. मुख्य न्यायाधीश उदय उमेश ललित की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि उनका मानना है कि इस मामले में एक वृहद पीठ द्वारा सुनवाई किए जाने की आवश्यकता है, ताकि इस बारे में स्पष्टता एवं एकरूपता आ सके कि मृत्युदंड के प्रावधान वाले मामलों के आरोपी के अपराध की गंभीरता कम करने वाली परिस्थतियों के संबंध में कब सुनवाई किए जाने की जरूरत है.

न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट ने फैसला सुनाते हुए कहा, इस संबंध में आदेश के लिए इस मामले को प्रधान न्यायाधीश के समक्ष पेश किया जाए. न्यायालय ने 17 अगस्त को कहा था कि मृत्युदंड अपरिवर्तनीय है इसलिए अभियुक्त को राहत संबंधी परिस्थितियों पर सुनवाई का हर अवसर उपलब्ध कराया जाना चाहिए ताकि अदालत यह निर्णय ले सके कि संबंधित मामले में मृत्युदंड वांछित नहीं है.

शीर्ष अदालत ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लिया था और कहा था कि यह सुनिश्चित करने की तत्काल आवश्यकता है कि उन अपराधों के लिए सजा कम करने वाली परिस्थितियों पर (निचली अदालत में) सुनवाई के स्तर पर ही विचार किया जाए, जिनमें मौत की सजा का प्रावधान है. इस मामले को 'मृत्युदंड देते समय अपराध की गंभीरता को कम करने वाली संभावित परिस्थितियों संबंधी दिशा-निर्देश तैयार करना' शीर्षक दिया गया है.

बता दें, मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित ने 17 अगस्त को मामले को लेकर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. उन्होंने कहा था, मृत्युदंड एक ऐसी सजा है जिसके बाद दोषी मृत्यु को प्राप्त हो जाता है और मरने के बाद फैसले को किसी भी हाल में पलटा या बदला नहीं जा सकता है. इस वजह से आरोपी को उसके अपराध गंभीरता को कम साबित करने का प्रत्येक अवसर देना जरूरी है. ताकि कोर्ट को इस बात के लिए राजी किया जा सके कि मामले में मृत्युदंड की जरूरत नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट इस याचिका के फैसले पर इस बात को सुनिश्चित करना चाहता है कि मृत्युदंड की संभावना वाले मामलों में ट्रायल के दौरान परिस्थितिजन्य साक्ष्यों को भलीभांति तरीके से शामिल किया जाए. सुप्रीम कोर्ट को ऐसा लगा कि इस मामले में त्वरित कार्रवाई की जरूरत है.

नई दिल्ली: मृत्युदंड (capital punishment) के प्रावधान वाले मामलों में अपराध की गंभीरता कम करने वाली संभावित परिस्थितियों पर कब और कैसे विचार किए जा सकता है, इस संबंध में दिशा-निर्देश बनाने से जुड़ी याचिका उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने सोमवार को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को सौंप दी. मुख्य न्यायाधीश उदय उमेश ललित की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि उनका मानना है कि इस मामले में एक वृहद पीठ द्वारा सुनवाई किए जाने की आवश्यकता है, ताकि इस बारे में स्पष्टता एवं एकरूपता आ सके कि मृत्युदंड के प्रावधान वाले मामलों के आरोपी के अपराध की गंभीरता कम करने वाली परिस्थतियों के संबंध में कब सुनवाई किए जाने की जरूरत है.

न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट ने फैसला सुनाते हुए कहा, इस संबंध में आदेश के लिए इस मामले को प्रधान न्यायाधीश के समक्ष पेश किया जाए. न्यायालय ने 17 अगस्त को कहा था कि मृत्युदंड अपरिवर्तनीय है इसलिए अभियुक्त को राहत संबंधी परिस्थितियों पर सुनवाई का हर अवसर उपलब्ध कराया जाना चाहिए ताकि अदालत यह निर्णय ले सके कि संबंधित मामले में मृत्युदंड वांछित नहीं है.

शीर्ष अदालत ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लिया था और कहा था कि यह सुनिश्चित करने की तत्काल आवश्यकता है कि उन अपराधों के लिए सजा कम करने वाली परिस्थितियों पर (निचली अदालत में) सुनवाई के स्तर पर ही विचार किया जाए, जिनमें मौत की सजा का प्रावधान है. इस मामले को 'मृत्युदंड देते समय अपराध की गंभीरता को कम करने वाली संभावित परिस्थितियों संबंधी दिशा-निर्देश तैयार करना' शीर्षक दिया गया है.

बता दें, मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित ने 17 अगस्त को मामले को लेकर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. उन्होंने कहा था, मृत्युदंड एक ऐसी सजा है जिसके बाद दोषी मृत्यु को प्राप्त हो जाता है और मरने के बाद फैसले को किसी भी हाल में पलटा या बदला नहीं जा सकता है. इस वजह से आरोपी को उसके अपराध गंभीरता को कम साबित करने का प्रत्येक अवसर देना जरूरी है. ताकि कोर्ट को इस बात के लिए राजी किया जा सके कि मामले में मृत्युदंड की जरूरत नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट इस याचिका के फैसले पर इस बात को सुनिश्चित करना चाहता है कि मृत्युदंड की संभावना वाले मामलों में ट्रायल के दौरान परिस्थितिजन्य साक्ष्यों को भलीभांति तरीके से शामिल किया जाए. सुप्रीम कोर्ट को ऐसा लगा कि इस मामले में त्वरित कार्रवाई की जरूरत है.

Last Updated : Sep 19, 2022, 12:13 PM IST
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