नई दिल्ली : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में जासूसी के एक मामले में नंबी नारायणन की गिरफ्तारी को लेकर केरल सरकार कठघरे में है. साल 1994 के इस मामले में दो वैज्ञानिकों और चार अन्य पर भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम से जुड़े कुछ गोपनीय दस्तावेजों को दूसरे देशों को दिए जाने के आरोप लगे हैं. पूर्व इसरो वैज्ञानिक नंबी नारायणन को उस वक्त गिरफ्तार किया गया था जब केरल में कांग्रेस की सरकार थी.
इस प्रकरण में तीन सदस्यीय जांच समिति ने हाल ही में शीर्ष अदालत को अपनी रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में सौंपी थी. इसी मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने अपनी जांच रिपोर्ट में कहा था कि केरल में तत्कालीन शीर्ष पुलिस अधिकारी ही नारायणन की गैरकानूनी गिरफ्तारी के लिये जिम्मेदार थे.
दो साल पहले 50 लाख रुपये का मुआवजा
नंबी नारायणन के खिलाफ हुई कार्रवाई को लेकर तत्कालीन कांग्रेस सरकार के अलावा पुलिस महकमे के रवैये पर भी गंभीर सवाल खड़े हुए हैं. बता दें कि शीर्ष अदालत ने 14 सितंबर, 2018 को केरल सरकार को नारायणन को 50 लाख रुपये बतौर मुआवजा देने का निर्देश दिया था. इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट के ही न्यायमूर्ति (अवकाशप्राप्त) डीके जैन की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति गठित की गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने आज (15-04-2021) को सीबीआई इसी समिति की रिपोर्ट के आधार पर आगे की जांच करने का निर्देश दिया.
तीन माह के भीतर रिपोर्ट देगी सीबीआई
कोर्ट ने कहा है कि डीके जैन कमेटी की रिपोट अभी सीलबंद लिफाफे में ही रखी जाए और इसका प्रकाशन न किया जाए. शीर्ष अदालत ने कहा कि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) दोषी पुलिस अधिकारियों की भूमिका पर डीके जैन समिति के निष्कर्षों को प्रारंभिक जांच का हिस्सा मान सकती है. न्यायालय ने एजेंसी को तीन माह के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया है.
एसआईटी प्रमुख की दलीलें खारिज
न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की अगुवाई वाली पीठ ने केरल के पूर्व डीजीपी सिबी मैथ्यूज की दलीलों को खारिज कर दिया, जो उस वक्त एसआईटी जांच टीम का नेतृत्व कर रहे थे. मैथ्यूज की ओर से दलील दी गई कि डीके जैन समिति ने नारायणन को सुना, लेकिन उनका पक्ष नहीं सुना.
कमेटी की भूमिका पर सुप्रीम कोर्ट
पीठ ने कहा कि समिति को इस मामले में फैसला नहीं करना था बल्कि उसे अप्रत्यक्ष प्रमाणों (परिस्थितिजन्य साक्ष्य) को देखना था और अधिकारियों की चूक पर पहली नजर में एक नजरिया बनाना था.
केंद्र सरकार की ओर से दायर याचिका
गौरतलब है कि शीर्ष अदालत केंद्र सरकार की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी. केंद्र ने नारायणन से जुड़े जासूसी मामले में दोषी पुलिस अधिकारियों की भूमिका पर डीके जैन समिति की रिपोर्ट पर विचार करने का अनुरोध किया गया था. केंद्र ने विगत पांच अप्रैल को, शीर्ष अदालत का रुख किया था. केंद्र ने डीके जैन समिति की रिपोर्ट पर तत्काल सुनवाई का अनुरोध करते हुए इसे 'राष्ट्रीय मुद्दा' बताया था.
बता दें कि बॉलीवुड अभिनेता आर माधवन ने नंबी नारायणन से जुड़े प्रकरण पर आधारित फिल्म का निर्माण का किया है. इसका नाम रॉकेट्री है.
पृष्ठभूमि-
कब हुई कार्रवाई की शुरुआत
नंबी नारायणन को केरल पुलिस ने 30 नवंबर, 1994 को गिरफ्तार किया था. उनके खिलाफ जासूसी के आरोप लगे थे. नारायणन पर इंडियन ऑफिसियल सीक्रेट्स एक्ट, 1923 की धारा 3, 4 और 5 के तहत आरोप लगाए गए थे. यह गैरकानूनी था क्योंकि इसके लिए केंद्र सरकार से अनुमति नहीं ली गई थी.
दबाव बनाकर बयान लेने के आरोप
नारायणन को पहले पुलिस कस्टडी में रखा गया और इसके बाद 50 दिनों की न्यायिक हिरासत में भी रखा गया. पुलिस कस्टडी में नारायणन को कथित रूप से प्रताड़ित किया गया. प्रताड़ना के आरोप केरल पुलिस और इंटेलिजेंस ब्यूरो के अधिकारियों पर लगे. नारायणन पर कथित रूप से दबाव बनाकर बयान भी लिए गए.
पाक को जानकारी देने का आरोप, सीबीआई ने बताया निराधार
केरल पुलिस की ओर से पेश दलीलों के मुताबिक नंबी नारायणन ने रॉकेट टेक्नोलॉजी और क्रायोजेनिक टेक्नोलॉजी से जुड़ी जानकारी गैर कानूनी तरीके से पाकिस्तान को दी. हालांकि, सीबीआई जांच में यह आरोप निराधार निकले.
केरल सरकार का शर्मनाक रवैया
नारायणन के मामले में के चंद्रशेखर बनाम केरल राज्य के मुकदमे की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने भी सीबीआई जांच की रिपोर्ट स्वीकार की. हालांकि, इसके बाद भी केरल सरकार ने नंबी नारायणन से जुड़ी फाइल ठंडे बस्ते में डाल दी और लगभग 15 साल के बाद एक सरकारी आदेश जारी हुआ.
हाईकोर्ट के आदेश के बाद बनी कमेटी
29 जून, 2011 को जारी सरकारी आदेश में केरल पुलिस के दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई न करने की बात कही गई. नंबी नारायणन ने सरकार के इस आदेश को केरल हाईकोर्ट में चुनौती दी. नारायण की याचिका पर न्यायमूर्ति रामा कृष्णा पिल्लई ने सुनवाई के बाद सरकार का आदेश निरस्त कर दिया. हाईकोर्ट ने सरकार को कानूनी तरीके से कार्रवाई करने का निर्देश दिया. हाईकोर्ट के आदेश के बाद केरल सरकार ने इस मामले में कमेटी का गठन किया.
दोषी अधिकारियों ने हाईकोर्ट में की अपील
हाईकोर्ट के आदेश के बाद एक और चौंकाने वाला घटनाक्रम सामने आया. दोषी अधिकारियों ने केरल हाईकोर्ट की दो जजों की खंडपीठ के समक्ष याचिका दायर कर जस्टिस रामा कृष्णा पिल्लई की कोर्ट द्वारा सुनाई गए फैसले को निरस्त करने की मांग की.
केरल पुलिस की जांच के बाद सीबीआई जांच
अपनी 17 दिनों की जांच के बाद केरल पुलिस और इंटेलिजेंस ब्यूरो ने इस मामले को सीबीआई को सौंप दिया था. इसके बाद सीबीआई ने लगभग डेढ़ वर्ष तक इस मामले की जांच की. अपनी क्लोजर रिपोर्ट में सीबीआई ने कहा था कि नंबी नारायणन पर लगे जासूसी के आरोप निराधार हैं.
दोषियों पर कार्रवाई की सिफारिश, सरकार ने किया दिखावा
क्लोजर रिपोर्ट के साथ सीबीआई ने केंद्र सरकार और राज्य सरकार को दो और भी रिपोर्ट्स सौंपी थी. इनमें केंद्रीय जांच एजेंसी ने गंभीर खामियों को उजागर किया था. सीबीआई ने केरल पुलिस और इंटेलिजेंस ब्यूरो के अधिकारियों पर आरोप लगाते हुए समुचित कार्रवाई की सिफारिश की. इसके बाद केंद्र सरकार ने साल 2004 में दिखावा करते हुए एक जांच कराई. इसके बाद अधिकारियों पर लगे आरोप हटा लिए गए. इस जांच को लेकर पीड़ित पक्ष को कोई नोटिस जारी नहीं किया गया.
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष नंबी नारायण की याचिका
केरल हाईकोर्ट में दो जजों की पीठ द्वारा सुनाए गए फैसले के खिलाफ नंबी नारायणन ने सुप्रीम कोर्ट में साल 2015 में याचिका दायर की. शीर्ष अदालत में जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस खानविलकर ने इस मामले को अप्रैल, 2017 में निष्पादित करने के लिए सूचीबद्ध किया था. नंबी नारायणन के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने साल 1998 में भी केरल सरकार की जबरदस्त खिंचाई भी की थी.
देश के प्रबुद्ध लोगों ने जताई नाराजगी
बता दें कि सीबीआई द्वारा क्लोजर रिपोर्ट दाखिल किए जाने के बाद केरल सरकार ने सीबीआई को आगे की जांच करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था. सरकार के इस रवैये पर छह प्रबुद्ध लोगों ने नाराजगी जताते हुए एक खुला पत्र लिखा था. इन लोगों में इसरो के पूर्व चेयरमैन सतीश धवन और यूआर राव के अलावा पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के पूर्व चेयरमैन प्रोफेसर यशपाल, स्पेस कमीशन के पूर्व सदस्य आर नरसिम्हा और भारतीय प्रबंध संस्थान (आईआईएम) बेंगलुरु के प्रोफेसर एस चंद्रशेखर शामिल थे.
मानवाधिकार आयोग की पूर्ण पीठ में मामला
नंबी नारायणन अपने खिलाफ की गई कार्रवाई को लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के समक्ष भी अपील कर चुके हैं. साल 2001 में उन्होंने पांच सदस्यों की पूर्ण पीठ के समक्ष कहा था कि उनके खिलाफ की गई कार्रवाई में मानवाधिकारों का हनन हुआ है.
मानवाधिकारों के हनन की पुष्टि
अपने अंतरिम आदेश में मानवाधिकार आयोग ने कहा था कि शिकायतकर्ता और उसके परिवार द्वारा उठाई गई हानि का आकलन करना मुश्किल है. उनके खिलाफ गैर कानूनी कार्रवाई की गई है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा सीबीआई जांच स्वीकार करने के बाद यह स्पष्ट है कि मानवाधिकार का हनन हुआ है, और लोक सेवकों ने गैरकानूनी कार्रवाई की है.
लगभग 22 साल से लंबित है मामला
इस मामले में यह भी एक चौंकाने वाला पहलू है कि वास्तविक दोषियों को अभी तक दोषी नहीं ठहराया गया है. साल 1999 में नंबी नारायणन की ओर से दाखिल कंपनसेशन सूट (compensation suit) आज भी लंबित है.
जीवन के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
इन तमाम बातों से इतर नंबी नारायणन आज भी न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने अपनी एक टिप्पणी में कहा है ‘एक व्यक्ति की प्रतिष्ठा, गरिमा के साथ जीवन जीने के उसके अधिकार का एक अविभाज्य पहलू है.’ (reputation of an individual is an insegregable facet of his right to life with dignity.)
नारायणन ने की कानूनी कार्रवाई की अपील
शीर्ष अदालत ने केरल सरकार की याचिका खारिज कर दी है, जबकि नारायणन की याचिका स्वीकार की गई है. केरल सरकार ने अपनी दलील में कहा था कि लंबा समय बीतने के कारण दोषी अधिकारियों पर कोई कार्रवाई करने की जरूरत नहीं है. नारायणन ने कहा है कि पिछले ढाई दशक से अधिक समय में उनके दिमाग पर जिस तरीके का खौफनाक असर हुआ है ऐसे में दोषी अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए.
नारायणन की गिरफ्तारी से नुकसान
यहां यह जानना दिलचस्प है कि अगर नंबी नारायणन को गिरफ्तार न किया गया होता तो भारत क्रायोजेनिक टेक्नोलॉजी साल 2000 में ही विकसित कर चुका होता. इस तकनीक की मदद से भारत अंतरराष्ट्रीय स्पेस मार्केट में अरबों की कमाई कर सकता था. इस तकनीक से भारत काफी कम खर्च में उपग्रहों का प्रक्षेपण करने में सक्षम बन सकता था. एक अनुमान के मुताबिक अमेरिका जैसे देशों की और से लिए जाने वाले पैसे के तुलना में भारत एक तिहाई खर्च में उपग्रहों का प्रक्षेपण कर सकता था.
VIKAS इंजन के सफल विकास में नंबी की भूमिका
नंबी नारायणन को जब गिरफ्तार किया गया तब वह क्रायोजेनिक तकनीक के विकास में प्रोजेक्ट डायरेक्टर के रूप में जुड़े हुए थे. इसमें रूस भी भागीदार था. इससे पहले नंबी नारायणन ने फ्रांस की भागीदारी में VIKAS इंजन (लिक्विड प्रोपल्शन टेक्नोलॉजी) का सफल विकास किया था. विकास इंजन अब तक 35 से अधिक सफल प्रक्षेपणों में प्रयोग किया जा चुका है, जिसमें चंद्रयान और मंगलयान भी शामिल हैं.
अमेरिका की नागरिकता ठुकराई, लौटे भारत
यह जानना भी दिलचस्प है कि नंबी नारायणन ने अपनी उच्चतर शिक्षा अमेरिका से हासिल की है. अमेरिका की प्रिंसटन यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने के बाद साल 1970 में उन्हें अमेरिकी नागरिकता का भी प्रस्ताव दिया गया था. नंबी नारायणन ने अमेरिका का ऑफर ठुकरा दिया और देश सेवा के लिए भारत वापस लौट आए. नंबी नारायणन ने लिक्विड प्रोपल्शन टेक्नोलॉजी पर अहम योगदान दिया है. इससे अंतरिक्ष की दुनिया में भारत को बढ़त हासिल हुई है.