कोलकाता: राजभवन में बिल अटकने पर सुप्रीम कोर्ट की पंजाब के राज्यपाल को फटकार के बाद पश्चिम बंगाल को झटका लगता दिख रहा है. राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पूर्व राज्यपाल जगदीप धनखड़ के समय से ही लगातार अपना गुस्सा जाहिर करती नजर आ रही हैं. वर्तमान गवर्नर सीवी आनंद बोस के कार्यकाल में भी बिलों को रोकने पर विवाद जारी है.
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को विधेयक को दिन-ब-दिन लटकाए रखने में पंजाब के राज्यपाल की भूमिका पर कड़ी आलोचना की. उस मामले में बंगाल और केरल का मुद्दा भी संदर्भ के तौर पर सामने आया था. गौरतलब है कि सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के जजों ने राज्यपाल की भूमिका की आलोचना करते हुए कहा था कि 'विलंब रोग' को खत्म करने के लिए राज्यपालों को कुछ आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता है.
सूत्रों के मुताबिक, पश्चिम बंगाल विधानसभा से मंजूरी मिलने के बाद कई बिल फिलहाल कोलकाता राजभवन में अटके हुए हैं. यह संख्या किसी भी तरह से 10 से कम नहीं है. इनमें से कुछ पूर्व राज्यपाल और देश के वर्तमान उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के समय से लंबित हैं. सूची काफी लंबी है.
मॉब लिंचिंग बिल, हावड़ा और बाली नगर पालिकाओं के विलय के लिए 2 बिल, मुख्यमंत्री को विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में नियुक्त करने के लिए लगभग आठ बिल और कुलपतियों की नियुक्ति के लिए खोज समिति पर एक बिल है. तृणमूल कांग्रेस पार्टी कह रही है कि लिस्ट लंबी है. वर्तमान गवर्नर बोस द्वारा लगभग किसी भी बिल को मंजूरी नहीं दी जा रही है और न ही वापस भेजा जा रहा है.
कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बिल रोके जाने को लेकर नाराजगी जाहिर की थी. उन्होंने कहा कि 'जब हम विधानसभा में विधेयक पारित करते हैं और राजभवन भेजते हैं, तो राज्यपाल एक भी विधेयक वापस नहीं भेजते हैं. वह हर बिल रोक लेते हैं. इ बात ठीक नै अछि. संविधान कहता है कि यदि राज्य वित्त विधेयक के अलावा कोई विधेयक भेजता है, तो उसे अनुमोदन के साथ वापस करना होगा.'
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए राज्यपाल ने हाल ही में कहा था कि राजभवन में केवल आठ फाइलें लंबित हैं. राज्यपाल ने कहा कि 'इनमें से सात बिलों में, मैंने कुछ स्पष्टीकरण मांगा और इसे कार्यालय को भेज दिया। उन्होंने अभी तक इस संबंध में कोई जवाब नहीं दिया है. नतीजा यह है कि अगर कहीं कोई बिल लंबित है तो वह राजभवन में नहीं बल्कि सरकारी आवास में ही अटका रहता है.'